मोदी को मौत का सौदागर सबसे पहले 2007 में कांग्रेस सुप्रीमों सोनिया गांधी ने कहा था। लेकिन 2007 के पांच वर्ष बाद 2012 में एकबार फिर एक क्षण ऐसा आया जब किसी ने मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कहा था। ऐसा कहने वाला कोई और नहीं नरेंद्र मोदी के अपने दोस्त और तमिल सप्ताहिक पत्रिका तुगलक के संपादक चो रामास्वामी थे। फर्क सिर्फ इतना था कि 2007 में सोनिया गांधी ने मोदी से नफरत में आकंठ डूबकर ऐसी बात कही थी और चो रामास्वामी ने तीसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद बेहद दोस्ताना अंदाजा में मोदी को एक कार्यक्रम के मंच पर बुलाने के लिए कहा था। रामास्वामी ने कहा था, “अब मै आमंत्रित करता हूँ मौत के सौदागर को……(फिर खूब तालियाँ बजीं)……भ्रष्टाचार के लिए मौत का सौदागर, आतंकवाद के लिए मौत का सौदागर, भाई-भतीजावाद के लिए मौत का सौदागर, अधिकारियों के नकारापन के लिए मौत का सौदागर, नौकरशाही की लापरवाही के लिए मौत का सौदागर, गरीबी और अज्ञान के लिए मौत का सौदागर, अन्धकार और हताशा के लिए मौत का सौदागर।“
मोदी को मौत का सौदागर सबसे पहले 2007 में कांग्रेस सुप्रीमों सोनिया गांधी ने कहा था। लेकिन 2007 के पांच वर्ष बाद 2012 में एकबार फिर एक क्षण ऐसा आया जब किसी ने मोदी को ‘मौत का सौदागर’ कहा था। ऐसा कहने वाला कोई और नहीं नरेंद्र मोदी के अपने दोस्त और तमिल सप्ताहिक पत्रिका तुगलक के संपादक चो रामास्वामी थे। फर्क सिर्फ इतना था कि 2007 में सोनिया गांधी ने मोदी से नफरत में आकंठ डूबकर ऐसी बात कही थी और चो रामास्वामी ने तीसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद बेहद दोस्ताना अंदाजा में मोदी को एक कार्यक्रम के मंच पर बुलाने के लिए कहा था।
आज चो रामास्वामी की यह बात इसलिए मौजू है, क्योंकि अब वे हमारे बीच नहीं रहे। तामिलनाडू के अपोलो अस्पताल में उनका निधन हो गया। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी उनसे मिलने और उनके स्वास्थ्य का हाल जानने भी गए थे। उनकी मौत के बाद खुद प्रधानमंत्री ने ट्वीट के माध्यम से उन्हें एक निडर एवं राष्ट्रवादी पत्रकार बताया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि चो रामास्वामी सबकी पसंद थे। हर दिल में सम्मानपूर्वक जगह बनाने में कामयाब शख्सियत थे। वे पत्रकार थे, कलाकार थे, कॉमेडियन थे, समीक्षक थे, राज्यसभा के सदस्य भी रहे। किसी एक व्यक्ति के जीवन का इतना विराट और बहुआयामी पक्ष बहुत कम देखने को मिलता है। लेकिन, चो रामास्वामी उन कम लोगों में से एक थे।
वैचारिक रूप से चो रामास्वामी राष्टवाद की विचारधारा के प्रखर हिमायती रहे। मगर, एक पत्रकार के रूप में उनके तेवर सत्ता के समक्ष चट्टान की तरह टिके रहने का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। आपातकाल के दौरान रामास्वामी ने अपनी साप्ताहिक पत्रिका तुगलक का आवरण पृष्ठ ब्लैक करके प्रकाशित किया था। संभवत: नरेंद्र मोदी और रामास्वामी की पहली मुलाकात आपातकाल के दौरान ही हुई थी। इसके बाद भी कुछेक अवसर आए जब उन्होंने तुगलक पत्रिका के माध्यम से पुरजोर विरोध दर्ज कराया। वर्ष 2008 में एक कार्यक्रम के दौरान किसी सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा था कि वो नरेंद्र मोदी में भावी भारत का प्रधानमंत्री देखते हैं। उनकी तब की भविष्यवाणी आज सच साबित हुई है। चो रामास्वामी को करीब से जानने वाले लोग यह स्वीकार करते हैं कि राजनीतिक हलको में उनकी सलाह को पर्याप्त तरजीह दी जाती थी। राजनीति में उनकी दूरदृष्टि के सभी कायल थे। कई बार वे अपने विचारों से लोगों को चकित कर देते थे। पत्रकारिता के मोर्चे पर वे एक पूरे पत्रकार की भूमिका में होते थे। अभिव्यक्ति की आजादी के प्रश्न पर वे सारी वैचारिक सीमाओं को लांघ कर अपनी बात अभिव्यक्ति की आजादी के पक्ष में रखने के लिए जाने जाते थे। इसमें कोई शक नहीं कि एक व्यक्ति में समाहित बहुआयामी व्यक्तित्व वाले चो रामास्वामी के रूप में हमने कई क्षेत्रों से जुड़े एक परफेक्ट शख्सियत को खोया है। जिन-जिन क्षेत्रों में उन्होंने काम किया है, हर क्षेत्र में किये गए कार्यों के लिए वे लोगों की स्मृतियों में बने रहेंगे।
(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च फेलो एवं नेशनलिस्ट ऑनलाइन डॉट कॉम के संपादक हैं।)