यह सब विपक्षी दलों की वोटबैंक की सियासत के तहत हुआ है। कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने अपनी राष्ट्रीय जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया। इस कानून को मुस्लिम विरोधी कह कर कु-प्रचारित किया गया जिससे उन तत्वों को बढ़ावा मिला जो शुरू से ही नरेंद्र मोदी की निर्वाचित सरकार को बर्दाश्त नहीं कर सके थे। उन्हें इस बात का भी मलाल था कि अनुच्छेद तीन सौ सत्तर, तीन तलाक, राममंदिर के ऐतिहासिक निर्णय बड़ी आसानी से हो गए। इसलिए नागरिकता कानून पर नफरत फैलाने का कार्य किया गया।
नागरिकता संशोधन कानून से भारत के नागरिकों को किसी प्रकार की असुविधा नहीं थी, न उनसे सरकार नागरिकता पूछने जाती। सब कुछ यथावत चलता रहता। धार्मिक आधार पर उत्पीड़ित कुछ लोगों को पनाह मिल जाती, अवैध घुसपैठ के प्रति सावधानी बढ़ती। हर प्रकार से यह क़ानून देशहित में है। लेकिन ऐसे क़ानून को भी अराजकता में बदल दिया गया।
यह सब विपक्षी दलों की वोटबैंक की सियासत के तहत हुआ है। कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने अपनी राष्ट्रीय जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया। इस कानून को मुस्लिम विरोधी कह कर कु-प्रचारित किया गया जिससे उन तत्वों को बढ़ावा मिला जो शुरू से ही नरेंद्र मोदी की निर्वाचित सरकार को बर्दाश्त नहीं कर सके थे।
उन्हें इस बात का भी मलाल था कि अनुच्छेद तीन सौ सत्तर, तीन तलाक, राममंदिर के ऐतिहासिक निर्णय बड़ी आसानी से हो गए। इसलिए नागरिकता कानून पर नफरत फैलाने का कार्य किया गया। जबकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश घोषित रूप से इस्लामिक मुल्क हैं। भारत के इस नए नागरिकता क़ानून में धार्मिक रूप से इन मुल्कों में प्रताड़ित अल्पसंख्यको को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है। इन मुल्कों में अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किया जाता है। इसका प्रमाण इनकी घटती जनसंख्या को देख कर लगाया जा सकता है।
यह ध्यान रखना चाहिए कि नागरिकता कानून केवल इन तीन मुल्कों के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों पर लागू है। मुसलमान तो दुनिया के अनेक देशों में हिंसक संघर्ष के शिकार हैं। इन सबको भारत में नहीं बसाया जा सकता। इसी प्रकार इन तीन देशों के अल्पसंख्यको के अलावा किसी अन्य देश के संबन्ध में भी यह बात लागू नहीं की गयी है। यह भी गौरतलब है कि नागरिकता धार्मिक रूप से प्रताड़ित उन्हीं लोगों को मिलेगी जो 2014 तक भारत आ गए हैं।
इस कानून से संविधान का किसी प्रकार उल्लंघन नहीं हुआ है। जब अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में आरक्षण नहीं लागू होता तब कोई संविधान की दुहाई नहीं देता। जम्मू कश्मीर में सत्तर वर्षों तक दलितों को सुविधाएं नहीं मिली थीं, तब कोई सरकार संविधान की दुहाई नहीं देती थी। संविधान का अनुच्छेद चौदह अवैध घुसपैठियों पर लागू नहीं होता। यह अनुच्छेद केवल भारतीय नागरिकों पर लागू है।
ऐसा नहीं कि कांग्रेस व उसकी सहयोगी पार्टियों के नेता नागरिकता कानून के औचित्य को नहीं समझते। लेकिन कांग्रेस सहित कई अन्य दलों ने इसे वोटबैंक सियासत से जोड़ दिया है। इसीलिए नागरिकता क़ानून पर हंगामा हो रहा है। ये लोग अनुच्छेद चौदह और इक्कीस की दुहाई दे रहे हैं। अनुच्छेद चौदह के अनुसार राज्य किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या भारत के क्षेत्र के भीतर कानूनों के समान संरक्षण से इनकार नहीं करेगा।
बेशक यह समानता का अधिकार है। लेकिन संविधान की भावना को भी समझना होगा। अपराधी और निर्दोष व्यक्ति के साथ समानता का व्यवहार कैसे संभव है। इसी प्रकार अवैध घुसपैठियों और धर्म के आधार पर पीड़ित किये गए शरणार्थियों के साथ समान व्यवहार संभव नहीं है।
अनुच्छेद पन्द्रह को भी ऐसे ही संदर्भ में देखना होगा। इसमें कहा गया है कि राज्य किसी नागरिक के खिलाफ सिर्फ धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेद नहीं करेगा। यह बात भी अवैध घुसपैठियों पर लागू नहीं होती।
अनुच्छेद इक्कीस में जीवन का अधिकार दिया गया है तो यह भी ध्यान रखना होगा कि राज्य अवैध घुसपैठियों के जीवन के अधिकार को समाप्त नही कर रहा है। लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा का तकाजा यह है कि देश को अवैध घुसपैठियों की पनाहगाह न बनने दिया जाए।
नागरिकता कानून में धर्म के आधार पर भेद नहीं है। अवैध घुसपैठ के आधार पर ही इसमें भेद किया गया है। इसी में राष्ट्रीय हित है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून तीन पड़ोसी देशों में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देगा न कि भारत में किसी की नागरिकता छीनेगा। नए कानून का मतलब यह नहीं है कि सभी शरणार्थियों को अपने आप ही भारतीय नागरिकता मिल जाएगी।उन्हें भारत की नागरिकता पाने के लिए आवेदन करना होगा जिसे सक्षम प्राधिकरण देखेगा। संबंधित आवेदक को जरूरी मानदंड पूरे होने के बाद ही भारतीय नागरिकता दी जाएगी।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विपक्ष के नेता के रूप में ऐसे ही नागरिकता कानून की मांग की थी। 2003 में उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार से मांग की थी कि बांग्लादेश जैसे देशों से प्रताड़ित होकर आ रहे अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने में हमें ज्यादा उदार होना चाहिए।
मनमोहन सिंह ने कहा था कि मैं शरणार्थियों की स्थिति पर सवाल कर रहा हूं। देश के बंटवारे के बाद बांग्लादेश और पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यक प्रताड़ित हैं। इनको नागरिकता देने के बारे में बहुत ज्यादा उदार होना चाहिए। यह हमारा नैतिक कर्तव्य बनता है। तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने मनमोहन सिंह के विचारों से सहमति जताई थी। इस संबन्ध में कानून बनाने का आश्वासन दिया था।
इसके कुछ महीने बाद मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बन गए थे। दस वर्षों के कार्यकाल में ऐसा कानून बनाना उनकी जिम्मेदारी थी। लेकिन वह जिम्मेदारी से भागते रहे। इसलिए वर्तमान सरकार को इस पर कानून बनाना पड़ा। ऐसे में आज जिस तरह कांग्रेस इसका विरोध कर रही वो उसके राजनीतिक पाखण्ड और दोहरे चरित्र का ही सूचक है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)