आम तौर पर राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच मधुर सम्बन्ध नहीं रहते हैं, लेकिन कोविंद और नीतीश कुमार का रिश्ता मधुर रहा। यह कोविंद के समन्वयकारी और सुलझे हुए व्यक्तित्व को दिखाता है। बिहार के स्थानीय पत्रकार बताते भी हैं कि कोविंद समन्वयकारी नेता हैं और सबके साथ मिलकर काम करने की कला में महारत रखते हैं। ऐसे में इस प्रश्न का कोई तार्किक आधार नहीं रह जाता कि उनका चयन क्यों किया गया। निश्चित तौर पर वे राष्ट्रपति पद के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं।
पीएम नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने एक बार फिर सबको चौंका दिया है। बीजेपी संसदीय दल की बैठक के बाद राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का जो नाम सामने आया उसने अब तक के सारे कयासों पर विराम लगा दिया। हैरानी इस बात की भी रही कि विपक्ष और मीडिया को इस नाम की कानों-कान ख़बर नहीं मिल पाई।
अब एक सवाल यह उठाया जा रहा है कि कि रामनाथ कोविंद का चयन ही क्यों? इस सवाल का जवाब के लिए रामनाथ कोविंद के बारे में जान लेना चाहिए। 71 वर्ष के कोविंद उत्तर प्रदेश से हैं और एक दलित नेता हैं। स्वच्छ और साफ़ सुथरी छवि उनकी सबसे बड़ी पूँजी है। कोविंद ने सुप्रीम कोर्ट में वर्षों तक वकालत की। दो बार राज्य सभा सांसद भी रहे। यही नहीं, कोविंद पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के ओएसडी भी तैनात रहे।
अब तय है, सियासी तौर पर देश का सबसे अहम सूबा होने का मान रखने वाला उत्तर प्रदेश कई सालों तक देश की सियासत की दिशा और दशा तय करेगा। उल्लेखनीय होगा कि कोविंद के रिश्ते अटल बहरी वाजपेयी से भी अच्छे रहे और नरेन्द्र मोदी से भी उनके समीकरण अच्छे हैं।
आम तौर पर राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच मधुर सम्बन्ध नहीं रहते हैं, लेकिन कोविंद और नीतीश कुमार का रिश्ता मधुर रहा। यह कोविंद के समन्वयकारी और सुलझे हुए व्यक्तित्व को दिखाता है। बिहार के स्थानीय पत्रकार बताते भी हैं कि कोविंद समन्वयकारी नेता हैं और सबके साथ मिलकर काम करने की कला में महारत रखते हैं। कोविंद के विषय में यह सब जानने के बाद इस प्रश्न का कोई तार्किक आधार नहीं रह जाता कि उनका चयन क्यों किया गया। निश्चित तौर पर वे राष्ट्रपति पद के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं।
कोविंद बिहार में शिक्षा व्यवस्था को लेकर चिंतित थे और उन्होंने पिछले दिनों राजभवन में शिक्षा अधिकारियों की मीटिंग भी की थी। यह महज संयोग नहीं कि कोविंद से पहले जब जाकिर हुसैन साहिब बिहार के राज्यपाल थे, तो उनका निर्वाचन भी राष्ट्रपति पद के लिए हुआ था। कोविंद के लिए भी बिहार के राज्यपाल का कार्यकाल उत्तम कहा जाएगा।
कोविंद के नाम को लेकर विरोधी दल सकते में हैं। वे चाहते हुए भी इस नाम का एकदम मुखर होकर विरोध नहीं कर पा रहे। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव और मायावती को इस चाल से नुकसान होना तय है, जो खुद दलितों की सियासत करते हैं। उम्मीद थी कि बसपा सुप्रीमो मायावती रामनाथ कोविंद का विरोध नहीं करेंगी, लेकिन मायावती ने इस चयन से नाराज़गी जताई है। हाथ से फिसलते उनके जनाधार को देखते हुए मायावती का यह विरोध समझ में आता है।
नीतीश भविष्य की सियासत करते हैं, इसलिए उन्होंने कोविंद को सबसे पहले राजभवन जाकर निजी तौर पर बधाई दी। हालाँकि जद(यू) ने अबतक अपना पत्ता नहीं खोला है। मुसीबत अब लालू यादव के सामने है। लालू प्रसाद यादव भी कोविंद का खुलकर विरोध नहीं करेंगे। क्योंकि वह दलितों का विरोध करते हुए नज़र आना कभी नहीं चाहेंगे। लालू यह भी जानते हैं कि सियासत की हवा इस वक़्त मोदी और अमित शाह के पक्ष में बह रही है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने अपने इस फैसले से एक तीर से कई निशाने साधे हैं। अमित शाह ने विपक्ष को एक ही चाल में शह और मात दे दी है। प्रधानमंत्री खुद पिछड़े समाज से आते हैं और अब उत्तर प्रदेश जैसे आबादी बहुल राज्य से एक राष्ट्रपति के चुने जाने से पूरी दुनिया में अच्छा सन्देश जाएगा। इससे पहले के. आर. नारायणन बने थे पहले दलित राष्ट्रपति।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि एक गरीब घर से आने वाले कोविंद को राष्ट्रपति पद के लिए आगे बढ़ाने से दलितों का हौसला बढ़ेगा, सभी दलों को उनका समर्थन करना चाहिए।
कांग्रेस ने कहा है कि कोविंद के नाम का फैसला एकतरफा है। विपक्ष की तरफ से 22 तारीख को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के नाम पर फैसला होगा। पिछले दो दशकों में दलित वोट काफी हद तक कांग्रेस के पाले से खिसककर क्षेत्रीय पार्टियों के खाते में चला गया है, इसलिए संभव है कि कांग्रेस भी किसी दलित चेहरे को सामने लेकर आए। चर्चा मीरा कुमार के नाम पर हो रही है। अब जो भी, संख्याबल फिलहाल एनडीए के साथ ही है, इसलिए रामनाथ कोविंद का राष्ट्रपति बनना अब राजनीतिक कवायद से ज्यादा कुछ नहीं लगता।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)