देश में आम आदमी के हित में राजनीति करने का दावा करने वाले नेताओं-दलों की कमी नहीं है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिना किसी शोर-शराबे के जमीन से जुड़े आम लोगों को सत्ता के गलियारे तक पहुंचा रहे हैं। यही कारण है कि वंचित वर्गों के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं व दलों की जमीन खिसकने लगी है। मोदी विरोध की एक बड़ी वजह यह भी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर बार अपने फैसलों से चौकाते रहे हैं। चाहे राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति उम्मीदवारों का चयन हो या नीतिगत फैसले। उनके फैसलों के बारे में लुटियन जोन के धाकड़ पत्रकार और राजनीति विश्लेषक भी अंदाजा नहीं लगा पाते हैं। इसका कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न तो अर्थशास्त्री हैं और न ही आईएएस। इतना ही नहीं उनका एलीट क्लास माने जाने वाले लुटियन जोन से भी जुड़ाव नहीं रहा है।
हां, वे जमीन से जुड़े नेता जरूर हैं इसलिए वे जमीनी नेताओं और परिश्रम के बल पर राजनीति व समाज में मुकाम बनाने वालों की कद्र करते हैं। इसका नजारा एक बार फिर निवर्तमान राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के सम्मान में दिए गए विदाई भोज में दिखा। इस अवसर पर सिर्फ मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, नौकरशाहों, लुटियन जोन में रहने वाली हस्तियों को आमंत्रित करने की परंपरा तोड़ते हुए प्रधानमंत्री ने उन लोगों को आमंत्रित किया जिन्होंने अपनी मेहनत से समाज में अपनी अलग पहचान बनाई है। इनमें कई ऐसे पद्म पुरस्कार विजेता और आदिवासी समुदाय के नेता शामिल थे जो देश के दूरदराज के क्षेत्रों में रहते हैं।
नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को शुभकामना देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति पद ग्रहण करना पूरे देश विशेषकर गरीबों, हाशिये के लोगों और वंचितों के लिए महत्वपूर्ण क्षण है। इस अवसर पर नव निर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा राष्ट्रपति के पद तक पहुंचना उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं बल्कि भारत के प्रत्येक गरीब की उपलब्धि है और उनका इस शीर्ष संवैधानिक पद पर निर्वाचन इस बात का सबूत है कि भारत में गरीब सपने देख भी सकता है और उन्हें पूरा भी कर सकता है।
मोदी के जमीन से जुड़े लोगों की कद्र करने का ही नतीजा है कि राज्य सभा गठन के 70 वर्ष बाद पहली बार अनुसूचित जाति के एक व्यक्ति (इलैया राजा) को कलाकार की श्रेणी में राज्यसभा में मनोनीत किया गया। यह प्रधानमंत्री की वंचितों को सत्ता के गलियारे तक पहुंचाने की प्रतिबद्धता का प्रमाण है। उल्लेखनीय है कि संगीत सम्राट इलैया राजा कोई मामूली कलाकार नहीं है। 7000 से ज्यादा धुनें उन्होंने बनाई है। उनकी देशव्यापी ख्याति है और उनके राज्य सभा में होने से संसद और राज्य सभा का ही मान बढ़ेगा। राज्य सभा 1952 से चल रही है।
राज्य सभा बनने के समय से ही राष्ट्रपति इसमें 12 सदस्यों को मनोनीत करते हैं। ये लोग साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के क्षेत्र में काम करने वाले होते हैं। अब तक इस श्रेणी में 137 लोगों को मनोनीत किया गया है जिसमें 21 लोग कलाकार श्रेणी से आए हैं। लेकिन इलैया राजा से पहले इस श्रेणी में कोई दलित मनोनीत नहीं हुआ। आदिवासी या पिछडे वर्ग से भी किसी को इस श्रेणी में राज्यसभा नहीं भेजा गया। ये जगह हमेशा एलीट के लिए रिजर्व थी।
इसी तरह पिछले आठ वर्षों के दौरान वंचित वर्ग को बड़ी संख्या में पद्म सम्मान मिले जबकि अब तक ये सम्मान एलीट वर्ग के लिए आरक्षित रहे हैं। राष्ट्रीय सम्मानों को चाटुकार संस्कृति और वोट बैंक की राजनीति से दूर रखने के लिए मोदी सरकार ने पुरस्कारों के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू किया। मोदी सरकार का जोर ऐसे लोगों को चुनने पर है जिन पर उनके असाधारण योगदान के बावजूद अब तक ध्यान नहीं दिया गया हो।
इसके लिए केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से ऐसे प्रतिभाशाली लोगों का पता लगाने के लिए स्पेशल सर्च कमेटी बनाने के लिए कहा है। महिलाओं, समाज के कमजोर वर्गों, अनुसूचित जातियों, जनजातियों, दिव्यांगों में से ऐसे प्रतिभाशाली लोगों की पहचान की जाने लगी जो पुरस्कार के काबिल हैं।
समग्रत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिना किसी शोर-शराबे के जमीन से जुड़े आम लोगों को सत्ता के गलियारे तक पहुंचा रहे हैं। यही कारण है कि वंचित वर्गों के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं व दलों की जमीन खिसकने लगी है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)