केरल में पिनाराई विजयन के नेतृत्व में चल रही वाम गठबंधन की सरकार अपने कार्यकर्ताओं के द्वारा की जा रही हिंसा पर लगाम लगाने में लगातार नाकामयाब हो रही है। अपितु हिंसा और दमन का चक्र अब इस ओर इशारा करने लगा है कि सी.पी.एम. के शीर्ष नेताओं के शह पर ही ये घटनाएं हो रही हैं। दिनांक 13 फ़रवरी को अहले सुबह चार – साढ़े चार बजे के करीब भाजपा युवा मोर्चा के 20 वर्षीय कार्यकर्ता की हत्या घात लगाए सी.पी.एम. के गुंडों ने चाकुओं से गोद एवं गला रेत कर कर दी। दिवंगत कार्यकर्ता निर्मल जो नत्तिसेरी के निवासी थे, अपने साथियों के साथ उस समय स्थानीय कोकुलंगारा मंदिर, पुत्तूर में आयोजित उत्सव सह पूजा समारोह से वापस लौट रहे थे। यह घटना थ्रिसुर जिले के मुक्कत्तुकारा में घटित हुई है। केरल की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाने वाला यह जिला थ्रिसुर अब वाम आतंक का पर्याय बन चुका है। निर्मल के साथ एक अन्य कार्यकर्त्ता 29 वर्षीय थॉमस भी इस आक्रमण में घायल हुए हैं और अस्पताल में उनका इलाज़ चल रहा है।
खून की राजनीति का ये तरीका केरल में बहुत पुराना है। जब से कम्युनिस्ट मुख्यधारा की राजनीती में केरल में आये हैं तभी से उनकी ये लाल क्रांति चल रही है। रूस में 1917 को शुरू हुए लेनिन की लाल क्रांति जो की स्टॅलिन तक आते आते विरोधियों की हत्या की क्रांति में बदल गयी, ने आज 100 साल बाद 2017 में निर्मल की बलि ली। केरल में वामपंथियों का हिंसक चरित्र आज़ादी से पहले ही उजागर हो गया था, जब तत्कालीन त्रावणकोर स्टेट के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह में सन् 1946 के आसपास 1000 से ज्यादा स्थानीय एवं पुलिस के जवानों की जान गयी थी।
बताया जा रहा है कि संघ एवं भाजपा कार्यकर्ताओं की स्थानीय सांस्कृतिक एवं पूजा महोत्सवों में बढ़ते प्रभाव से वाम नेतृत्व चिंतित हो रहा है। थ्रिसुर के जनसामान्य का रुझान इस वजह से कर्मठ भाजपा एवं संघ कार्यकर्ताओं की तरफ हो रहा है। वामपंथियों द्वारा भाजपा एवं संघ के विरुद्ध फैलाया गया भ्रमजाल भी इस वजह से टूट रहा है। इसकी परिणति वामपंथी नेताओं के हताशा में अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदियों के विरुद्ध आक्रोशपूर्ण व्यवहार एवं आक्रमण के रूप में परिलक्षित हो रही है। निर्मल के साथ भी यही हुआ, वो जब थॉमस के साथ वापस लौट रहे थे तो पूजा महोत्सव में सक्रियता से शामिल होने का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। सांस्कृतिक समारोह के दौरान किसी बात को लेकर भी वामपंथी कार्यकर्ताओं ने भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ हाथापाई की थी। देर रात मौका मिलने पर मंदिर के ही समीप रक्त पिपासु कम्युनिस्टों ने भाजपा कार्यकर्ताओं पर प्राण घातक आक्रमण कर दिया। थॉमस तो भाग्यशाली रहे पर निर्मल को अस्पताल पहुँचने पर मृत घोषित कर दिया गया। संभवतः उनकी मौत मौके पर ही अत्यधिक रक्तस्राव से हो गयी थी।
खून की राजनीति का ये तरीका केरल में बहुत पुराना है। जब से कम्युनिस्ट मुख्यधारा की राजनीती में केरल में आये हैं तभी से उनकी ये लाल क्रांति चल रही है। रूस में 1917 को शुरू हुए लेनिन की लाल क्रांति जो की स्टॅलिन तक आते आते विरोधियों की हत्या की क्रांति में बदल गयी, ने आज 100 साल बाद 2017 में निर्मल की बलि ली। केरल में वामपंथियों का हिंसक चरित्र आज़ादी से पहले ही उजागर हो गया था, जब तत्कालीन त्रावणकोर स्टेट के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह में सन् 1946 के आसपास 1000 से ज्यादा स्थानीय एवं पुलिस जवानों की जान गयी थी। आज़ादी के बाद इस लाल क्रांति ने कई कांग्रेस और अन्य राजनैतिक विरोधियों की जान ली। सन् 1967 के बाद जब से संघ एवं भाजपा ने केरल में अपने पैर जमाने शुरू किये तब से ही इनके कार्यकर्ताओं की हत्या बदस्तूर जारी है। केरल में निर्मल को मिलाकर अबतक कुल 294 भाजपा या संघ के कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं, जिनमें से 231 हत्याएं वामपंथी आतंकियों द्वारा की गयी हैं।
जब से पिनाराई विजयन की सरकार केरल में बनी है, तब से ही 10 कार्यकर्ता अपनी जान से हाथ धो चुके हैं। निर्मल की जघन्य हत्या से यह आंकड़ा दहाई में महज 9 महीनों में पहुँच चूका है। यानी औसतन हर महीने 1 से ज्यादा संघ या भाजपा के कार्यकर्ता यहाँ मारे जा रहे हैं और यह मामले देश की मुख्यधारा मीडिया में अब तक सुर्खियाँ तक नहीं बना पा रहे हैं, तो फिर न्याय तो दूर की बात है। प्रमोद, बिनेश, रामचंद्रन, विष्णु, आर अमित, अनिल, राधाकृष्णन, विमला, संतोष और अब निर्मल। हर स्वयंसेवक, कार्यकर्ता की हत्या के बाद उम्मीद जगती है कि केरल प्रशासन अब सजग होगा, परन्तु औसतन हर 25 वें दिन एक नयी हत्या हो जाती है। हत्या के अलावा हाथ पैर तोरना, मारपीट ये तो रोज की बात है। पुलिस भी भाजपा कार्यकर्ताओं को मौका मिलते ही पीटने से बाज नहीं आ रही है। अभी हाल ही में फ़रवरी के पहले सप्ताह में भाजपा कार्यकर्ताओं पर हुए जबरदस्त लाठीचार्ज में केरल भाजपा के दो उपाध्यक्ष गंभीर रूप से घायल हो गए, जिनमें से एक पी पी बावा हमेशा के लिए दृष्टिहीन हो गए। केरल भाजपा अध्यक्ष कुम्मानम राजशेखरण ने अपार दुःख व्यक्त किया है एवं इसे जंगल राज की संज्ञा दी है। इस विषम और जटिल परिस्थिति में भी लोकतंत्र में राजनैतिक विरोधी होने का दायित्व निभाने वाले संघ एवं भाजपा के कार्यकर्ता सच में पूज्य हैं।
(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च एसोसिएट हैं।)