पुस्तक मेले में पिछले दिनों ‘वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रवादी पत्रकारिता’ विषय पर ‘मीडिया स्कैन’ के आयोजन में चर्चा के दौरान केरल में कम्यूनिस्टों का जो चेहरा सामने आया, उस पर चर्चा होनी चाहिए। केरल से यह खबर आती है कि आग से झुलस कर एक नेता की मौत। नेता गैर-कम्यूनिस्ट पार्टी का होता है। यह खबर बनती है, लेकिन क्या वास्तव में खबर इतनी ही है या इसके पीछे विचारधारा का कोई संघर्ष है। इसकी जानकारी खबर नहीं देती। केरल से आने वाले आरएसएस के विचारक जे. नंदकुमार ने अपने वक्तव्य में केरल का हाल बताया। श्री नंदकुमार के अनुसार केरल में सन 1968 से एकतरफा (कम्यूनिस्ट) आक्रमण चल रहा है। वहां आरएसएस से जुड़े लोगों पर नियमित रूप से हो रही हिंसा को जिस तरह राष्ट्रीय मीडिया को चर्चा में लाना चाहिए था, उसे खबर बनाना चाहिए था, ऐसा उसने किया है क्या ? यह बहुत बड़ा सवाल है। जिसे आज उठाए जाने की जरूरत है।
संघ का कार्य केरल में 1942 में प्रारंभ हुआ। उस समय से ही केरल में मौजूद वामपंथी विचारधारा के लोग संघ पर लगातार हमला करते रहे हैं। बिना किसी प्रकार के उकसावे के। वामपंथी और माक्र्सवादी विचार के लोगों की शिकायत उनके साथ की वैचारिक मत-भिन्नता थी। उनसे अलग राय रखने वाले उन्हें अपने आस-पास स्वीकार्य नहीं। वे अपने आस-पास के उन सभी लोगों को जो उनसे अलग विचार रखते हैं, पूरी तरह खत्म करने का प्रयास करते हैं। उनकी विचारधारा में दो तीन शब्द है, जिसका वे इस्तेमाल अक्सर करते हैं। उनमें एक है वर्ग संघर्ष। ऐसे ही केरल के संदर्भ में उन्होंने आरएसएस के विचार के साथ काम करने वालों के लिए शब्द गढ़ा, वर्ग शत्रु, इस रूप में उन्होंने आरएसएस को देखा और आरएसएस को खत्म करने के लिए प्रयास करने लगे।
श्री नंदकुमार ने केरल में कम्यूनिस्टों द्वारा निरंतर किए जा रहे हमलों का जिक्र करते हुए बताया कि 1968 से कम्यूनिस्टों का हमला, फिर से प्रारंभ हुआ। सन् 1969 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक कार्यकर्ता की केरल में हत्या हुई। उस हत्या के पीछे भी वजह सिर्फ इतनी थी कि संघ का कार्यकर्ता कम्यूनिस्ट विचारधारा से अलग राय रखता है। इस हत्या में खुद केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री शामिल पाए गए थे। सबूतों के अभाव में वे छूट गए। उस समय से अब तक अलग विचारधारा मानने के सवाल पर संघ के 262 कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं। अभी हाल में एक व्यक्ति को उसकी पत्नी और भाई के साथ घर में बंद करके बांध कर जिन्दा जला दिया गया। बीजेपी के कार्यकर्ता राधाकृष्ण 7 जनवरी को नहीं रहे। उनकी पत्नी विमला का शरीर नब्बे फीसदी से अधिक जला दिया गया। इतने क्रूर ढंग से एक परिवार के तीन लोगों की हत्या होती है। यह खबर अगले दिन राष्ट्रीय मीडिया में क्यों नहीं आई? इस घटना के चार दिन पहले केरल में ही एक परिवार कार में चल रहा था। वह परिवार भी संघ का स्वयंसेवक परिवार था। उनकी गाड़ी को वामपंथी विचार के लोगों ने रोका और उनके दस महीने के बच्चे को पैरों से पकड़ कर गाड़ी से खिंचा और सड़क पर फेंक दिया। इतनी भयावह घटना अपने महत्व के मुताबिक क्या किसी अखबार या चैनल पर छपते या कवर होते दिखाई दी? यह खबर जरूर दिखाई गई कि नोटबंदी की वजह से एटीएम के बाहर कितनी बड़ी कतार लगी है!
केरल में वामपंथी गुंडागर्दी के पीछे काम करने वाली मानसिकता की परतें धीरे-धीरे खुलने लगी हैं। समाज में चर्चा होनी अब प्रारंभ हुई है। मीडिया स्कैन के आयोजन में केरल का हाल जैसा जे. नंदकुमार बता रहे थे, उसे सुनकर श्रोता भी भावुक नजर आ रहे थे। कोई भी संवेदनशील व्यक्ति यह सब सुनकर भावावेश में आए बिना कैसे रह सकता है?
श्री नंदकुमार बता रहे थे कि – एक भाजपा के कार्यकर्ता मार्क्सवादी विचारधारा के प्रभाव वाले एक गांव के स्कूल में काम करते थे। वे भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष थे, उनका नाम था जयकिशन मास्टर। संघ दृष्टि से देखा जाए तो द्वितीय वर्ष शिक्षित स्वयंसेवक। केरल के मार्क्सिस्ट पारथी नाम के एक गांव में, जहां दूसरी विचारधारा के लोगों का प्रवेश वर्जित है, जयकिशन मास्टर ने जाने का निर्णय लिया। जयकिशन साहसी शिक्षक थे। उन्हें उनके शुभचिन्तकों ने कहा कि उस स्कूल में नहीं जाना। वहां खतरा है। जयकिशन ने कहा- वहां मैं बच्चों को पढ़ाने जा रहा हूं। मेरे ऊपर कौन हमला करेगा? लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बच्चों के सामने 08-10 गुंडों ने आकर उनके क्लास में घुसकर उन्हें बुरी तरह से पीटा और उनकी हत्या कर दी। जयकिशन का खून पूरे क्लास रूम में फैल गया। वह खून बच्चों की किताबों पर और उनके चेहरे पर फैल गया। आज वे बच्चे तीस साल के हो गए हैं, लेकिन उस घटना के मेंटल ट्राॅमा से बाहर नहीं आ पाए हैं। आज भी इतने सालों के बाद वे बच्चे बिना नींद की गोली लिए नहीं सो पाते हैं। उस क्लास में सिर्फ जयकिशन मास्टर की हत्या नहीं हुई बल्कि क्लास रूम में इस घटना के चश्मदीद मौजूद बच्चों की भी हत्या हुई। जब इस हत्याकांड के बाद केरल के बुद्धीजीवियों ने सवाल उठाया कि उस क्लास रूम में सिर्फ जयकिशन मास्टर की नहीं बल्कि वहां मौजूद एक तरह से 42 बच्चों की भी हत्या की गई, यह नहीं होना चाहिए था। इसके जवाब में कम्यूनिस्ट बुद्धीजीवी एमएन विजयन ने आॅन द रिकाॅर्ड कहा- ‘‘क्लास रूम है तो क्या हुआ, फासिज्म को खत्म करने के लिए इस तरह की कार्यवायी बच्चों के सामने भी हो सकती है।’’
इस घटना से आप अनुमान लगा सकते हैं कि कम्यूनिस्ट किस तरह की सोच रखते हैं। उनके पास विचार और चर्चा के लिए कोई जगह नहीं है। जब केरल पर बातचीत होती है, इस तरह की घटनाओं की कोई चर्चा नहीं करता है। अंत में श्री नंदकुमार ने यह सवाल कक्ष में मौजूद लोगों के लिए छोड़ दिया कि क्या जिस तरह का नरसंहार सिलसिलेवार तरिके से केरल में चला, उसे सही प्रकार से मीडिया को रिपोर्ट करना चाहिए था या नहीं करना चाहिए था? वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पत्रकारिता को समझने के प्रयास के दौरान श्री नंदकुमार द्वारा उठाए गए रिपोर्टिंग के भेदभाव के सवाल को समझते हुए हम संभव है कि राष्ट्रवादी पत्रकारिता और उसके सामने उपस्थित वर्तमान चुनौतियों को भी समझ पाएंगे।
(लेखक पेशे से पत्रकार हैं।)