नवनीत चतुर्वेदी
जून 2016 में आल इंडिया पीपुल्स फोरम की 8 सदस्यीय टीम ने छत्तीसगढ़ के चार जिलों बस्तर ,दंतेवाड़ा ,सुकमा ,बीजापुर का एक दौरा कर एक फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट तैयार की। ईसाई मिशनरी फंडेड इस वामपंथी संगठन की अगुवाई अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन की सचिव कविता कृष्णन कर रही थीं। इस फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट पर एक चर्चा 2 अगस्त को गाँधी पीस फाउंडेशन नई दिल्ली में की गई ,जिसका लब्बोलुआब कुछ इस तरह से है। इस रिपोर्ट का मकसद इस धारणा को स्थापित करना है कि आदिवासी समुदाय (मतांतरित ईसाई) की बुरी हालत है। वहां पीने का पानी नहीँ है, वहां रोजगार के अवसर नहीँ हैं ,वनों पर कब्ज़ा जमाने की कोशिश हो रहीं हैं, वे लोग वहाँ चर्च नही बना सकते, अपने घरों में ईसाई परंपरा के हिसाब से पूजा तक नही कर सकते, उनका कब्रिस्तान नही है। उन्हें डेड बॉडी को अपनी ही जमीन में दफनाना पड़ता है।
इस रिपोर्ट के माध्यम से इस धारणा को भी स्थापित करने की कोशिश की गयी है कि संघ व बजरंग दल के लोग आये दिन पुलिस की शह पर मार-पीट करते हैं। पुलिस उन पर अत्याचार करती है और मासूम आदिवासी लोगों को नक्सली माओवादी बता कर एनकाउंटर व गिरफ़्तारी करती है। रिपोर्ट में आरोप यह भी है कि कोर्ट भी बजरंगदल और संघ के प्रभाव में आदिवासी समुदाय की अपील नही सुनता है। उन्हें एकतरफा माओवादी पहले से ही मान कर फैसला देता है। पुलिस व सुरक्षा बल के लोग आदिवासी युवतियों का रेप आये दिन करते रहते है। इन्ही तथ्यों को बढ़ा चढ़ा कर एक 36 पेज की रिपोर्ट वामपंथी संगठन द्वारा तैयार की गयी है।
सबसे बड़ा सवाल है कि धर्म को अफीम मानने वाली विचारधारा की कविता कृष्णन का ‘चर्च’ प्रेम क्यों है ? सवाल यह भी है कि यह फैक्ट फाइंडिंग टीम किसकी मंजूरी या प्रेरणा से गई थी, इसमें लगा पैसा और इस रिपोर्ट की लागत को कौन सी संस्था फण्ड कर रही थी और उनकी मंशा क्या है ? एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि इस रिपोर्ट की वैधानिकता क्या है, क्या कोर्ट में पीआईएल दाखिल करेंगे, मीडिया पब्लिसिटी करेंगे ? यह सवाल इसलिए क्योंकि आखिर इस रिपोर्ट से कोई उन आदिवासियों की कैसे मदद कर पायेगा ? एकबात और गौर करने वाली है कि इनके बैनर पर ही लिखा है, जहाँ संविधान निलम्बित है। आप भ्रम में न रहें इसलिए यह बताना जरुरी है कि इस बैनर पर जिस ‘संविधान’ की बात हो रही है, वो भारत का संविधान नहीं बल्कि ‘वामपंथी’ संविधान है, जनताना अदालत वाला! इसे भारत का संविधान न पढ़ें।
हालांकि कविता कृष्णनन की इस रिपोर्ट की विश्वसनीयता इसके अपने विरोधाभाषों से ही ख़त्म हो जाती है। इस मुहीम का नेतृत्व कर रहीं वामपंथी एवं नक्सलियों की हिमायती कविता कृष्णन से जब इस रिपोर्ट पर कुछ सवाल पूछे गये तो वो कुछ भी जवाब नहीं दे पायी। सबसे बड़ा सवाल है कि धर्म को अफीम मानने वाली विचारधारा की कविता कृष्णन का ‘चर्च’ प्रेम क्यों है ? सवाल यह भी है कि यह फैक्ट फाइंडिंग टीम किसकी मंजूरी या प्रेरणा से गई थी, इसमें लगा पैसा और इस रिपोर्ट की लागत को कौन सी संस्था फण्ड कर रही थी और उनकी मंशा क्या है ? एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि इस रिपोर्ट की वैधानिकता क्या है, क्या कोर्ट में पीआईएल दाखिल करेंगे, मीडिया पब्लिसिटी करेंगे ? यह सवाल इसलिए क्योंकि आखिर इस रिपोर्ट से को उन आदिवासियों की कैसे मदद कर पायेगा ? आप भ्रम में न रहें इसलिए यह बताना जरुरी है कि इस बैनर पर जिस ‘संविधान’ की बात हो रही है, वो भारत का संविधान नहीं बल्कि ‘वामपंथी’ संविधान है, जनताना अदालत वाला! इसे भारत का संविधान न पढ़ें।
आंकड़ों के विरोधाभाष से संदिग्ध रिपोर्ट
तथ्यों के धरातल पर भी यह रिपोर्ट अपने विरोधाभाषों की वजह से संदिग्ध नजर आती है। रिपोर्ट के पेज नंबर 9 पर एक जगह वर्ष 2007 का जिक्र करते हुए बताया गया है कि बजरंग दल के लोग चर्च नही बनाने देते, घर में ईसाई समुदाय को पूजा नही करने देते, मार पीट करते है, मौजद चर्चो में सुबह -शाम प्रार्थना नही होने देते, डेड बॉडी को दफ़नाने के लिए कब्रिस्तान की भूमि नही देते। वर्ष 2007 में उस गाँव में ईसाई समुदाय की कुल संख्या 7 बताई गयी है। जबकि उसी रिपोर्ट में वर्ष 2016 में उसी कस्बे में ईसाई समुदाय की संख्या 100 बताई जा रही है। ऐसे में यह रिपोर्ट ही सवालों के घेरे में आ जाती है। सवाल है कि जब इतना बंदिश है तो ये जनसंख्या 8 साल में 7 से 100 कैसे हो गयी ? दुनिया में हर जगह जहाँ अल्पसंख्यकों का दमन हुआ है वहां उनकी जनसंख्या कम हुई है, लेकिन इस रिपोर्ट को मानने तो यहाँ संख्या बढ़ती ही गयी है! यह आंकड़े इस रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने के लिए पर्याप्त हैं। रिपोर्ट के पेज नंबर 11 पर पुलिस पर यह आरोप है कि पुलिस के शह से बहुत से बजरंग दल वालों ने गाँव घेर लिया, आदिवासियों की पिटाई की, मदद के लिए एम्बुलेंस नही आने दी, पुलिस उनके साथ में थी। रिपोर्ट की माने तो इस घटना के बाद पुलिस ने 2 आदिवासी और 5 बजरंग दल के लोगो को गिरफ्तार किया। अब सवाल ये है की पुलिस जब बजरंग दल वालों के साथ थी तो 5 बजरंग दल के लोग क्यों पकडे ? वहां कुछ लोगों ने यह सवाल पूछने की कोशिश की मगर मंच पर मौजूद कविता कृष्णन समेत किसी भी वामपंथी वक्ता ने इसका जवाब नही दिया, सब बहाना बना कर खिसक लिए। एक सवाल तो यह भी है कि वामपंथियों के चर्च प्रेम के पीछे चर्च की फंडिंग भी तो नहीं काम कर रही है ?
यह लेखक के निजी विचार एवं सवाल हैं।