भाजपा ने अपने घोषणापत्र में वैसे वादे किये हैं, जिन्हें पूरा किया जा सकता है, लेकिन कांग्रेस के खासकर ‘न्याय’ सहित अन्य तमाम वादों का रास्ता इतना आसान नहीं है। उनके अधिकांश वादे यथार्थ के धरातल पर खरे नहीं उतरते हैं, और कुछ वादे ऐसे भी हैं जो या तो कारगर नहीं दिखते अथवा देशहित के लिए हानिकारक नजर आते हैं।
चुनावी घोषणापत्र महज वादों का पिटारा नहीं होना चाहिये। इसमें देश के विकास की वैसी तस्वीर पेश की जानी चाहिये, जिसे मूर्त रूप दिया जा सके। बहरहाल, चुनावी रणभूमि में देश की दोनों प्रमुख पार्टियां, भाजपा और कांग्रेस ने अपने-अपने घोषणा पत्र को पेश कर दिया है। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र को संकल्प पत्र का नाम दिया है, जबकि कांग्रेस ने ‘हम निभाएंगे’ लिखा है।
भाजपा ने घोषणापत्र में जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और 35 ए को समाप्त करने की बात कही है। भाजपा का कहना है कि इससे गैर-स्थायी निवासियों और महिलाओं को राहत मिलेगी। भाजपा ने केंद्रीय सुरक्षा बलों को सशक्त बनाने की बात भी अपने घोषणा पत्र में कही है। इन वादों को पूरा किया जा सकता है, क्योंकि इसके लिये केवल बहुमत और इच्छाशक्ति की जरूरत है।
कांग्रेस ने घोषणापत्र में कहा है कि वह सत्ता में आने पर राजद्रोह के अपराध को परिभाषित करने वाली भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए को खत्म कर देगी। कांग्रेस ने घोषणा पत्र में सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून 1958 में संशोधन लाने की भी बात कही है। कांग्रेस का मानना है कि इससे सुरक्षाबलों और नागरिकों के बीच संतुलन बना रहेगा, लेकिन ऐसे प्रावधान देश हित में उचित नहीं प्रतीत होते हैं। इनसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए संकट पैदा हो सकता है।
भाजपा ने सभी गरीब परिवारों को एलपीजी गैस सिलिंडर मुहैया कराने का वादा किया है। वह प्रत्येक परिवार को पक्का घर देने की भी बात कह रही है। वह सभी घरों में बिजली-पानी और शौचालय उपलब्ध कराना चाहती है। उज्जवला योजना के तहत गरीब परिवारों को गैस सिलिंडर उपलब्ध कराने का काम किया गया है।
वहीं, प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना, जिसे सौभाग्य के नाम से भी जाना जाता है, का आगाज सितंबर, 2017 में किया गया था। देश में वर्ष 2018 के अंत में 25 राज्यों के घरों में 100 प्रतिशत विद्युतीकरण का कार्य पूरा कर लिया गया है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक अब, केवल 10.48 लाख घरों को 4 राज्यों अर्थात असम, राजस्थान, मेघालय और छत्तीसगढ़ में विद्युतीकृत किया जाना बाकी है। स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण का आगाज 2 अक्टूबर, 2014 को गांधी जयंती के दिन किया गया था। उस समय खुले में शौच से मुक्त घरों की संख्या केवल 38.70 प्रतिशत थी, जो 31 जनवरी, 2019 तक बढ़कर 98.84 प्रतिशत हो गई। इस तरह, गैस सिलिंडर, बिजली और शौचालय की सुविधा आम लोगों को उपलब्ध कराई जा सकता है।
कांग्रेस न्याय यानी न्यूनतम आय योजना के तहत 5 करोड़ परिवारों या 25 करोड़ गरीब लोगों को 72 हजार रुपये हर वर्ष सीधे जमा करने की बात कह रही है, लेकिन इस योजना को लागू करने के लिये हर साल 36 खरब रुपयों की जरूरत होगी, जिसकी व्यवस्था करने के लिये मौजूदा सरकारी योजनाओं जैसे, मनरेगा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली आदि को बंद करना होगा। अगर ऐसा किया जायेगा तो लोगों के बीच अविश्वास का माहौल कायम होगा। चूंकि, मौजूदा योजनाओं को बंद करना संभव नहीं है, इसलिए कांग्रेस द्वारा इस वादे को पूरा करना मुमकिन नहीं लगता है।
भाजपा ने घोषणापत्र में वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करने की बात कही है, जिसे खेती-किसानी के साथ-साथ संबद्ध क्षेत्रों, विशेषकर पशुपालन की मदद से पूरा किया जा सकता है। वह 1 लाख तक के किसान क्रेडिट कार्ड पर कर्ज लेने पर पांच साल तक के लिये ब्याज मुक्त करने की बात कह रही है।
वह ग्रामीण विकास पर 25 लाख करोड़ रूपये खर्च करना चाहती है। वह जमीन के रिकॉर्ड को डिजिटल करना चाहती है। पाँच सालों तक ब्याज मुक्त किसान क्रेडिट कार्ड पर कर्ज, ग्रामीण विकास पर खर्च या जमीन के रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण, छोटे एवं सीमांत किसानों को पेंशन देना आदि संभव है। इसे बजट प्रबंधन के जरिये पूरा किया जा सकता है। यह सब व्यावहारिक वादे हैं।
कांग्रेस किसानों के लिये अलग से बजट लाने की बात कह रही है। कर्ज नहीं चुकाने पर किसानों के खिलाफ आपराधिक मामला की जगह सिविल मामला चलाने की बात भी कांग्रेस कह रही है। वह महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत काम देने के दिनों को 100 से बढ़ाकर 150 करना चाहती है। मनरेगा के तहत कांग्रेस को लगभग 75,000 करोड़ रूपये का बजटीय प्रावधान करना होगा, जो मुमकिन है। लेकिन इससे कितना लाभ होगा, ये कहना मुश्किल है।
भाजपा अर्थव्यवस्था से जुड़े 22 बड़े क्षेत्रों में रोजगार के नये अवसर पैदा करने की बात कह रही है। पूर्वोत्तर राज्यों में रोजगार के अवसर मुहैया कराने के लिये वह नई योजना लेकर आना चाहती है। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत 17 करोड़ से ज्यादा उद्यमियों को कर्ज मुहैया कराया जा चुका है। इसके लाभार्थियों की संख्या को बढ़ाकर भाजपा 30 करोड़ तक पहुंचाना चाहती है।
वहीं कांग्रेस मार्च 2020 तक 22 लाख सरकारी नौकरी मुहैया कराने की बात कह रही है। वर्तमान में केंद्र और राज्यों में लाखों पद रिक्त हैं। पंचायत स्तर पर भी लाखों कर्मचारियों की जरूरत है। अस्तु, केंद्र एवं राज्यों में लाखों की संख्या में विभिन्न पदों पर भर्तियाँ की जानी शेष हैं। इनमें से ज्यादातर भर्तियाँ राज्यों के अधीन हैं, ऐसे में कांग्रेस केंद्र की सत्ता में होने पर राज्यों में नौकरियां कैसे देगी, ये बड़ा सवाल है।
भाजपा ने शिक्षण संस्थानों में रिक्तियाँ बढ़ाने की बात कही है। वह प्रबंधन, साइंस, लॉ और इंजीनियरिंग संस्थानों में सीटों की संख्या बढ़ाना चाहती है। वह चाहती है कि वर्ष 2024 तक 200 नये केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय खोले जायें। गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा मुहैया कराने के लिये भाजपा प्रशिक्षण संस्थान खोलने की भी बात कह रही है, ताकि शिक्षा के स्तर में सुधार आ सके।
कांग्रेस ने घोषणा पत्र में शिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च करने की बात कहा है। वह सभी संस्थानों को उच्चतम स्तर का बनाना चाहती है। शिक्षा के मोर्चे पर भाजपा और कांग्रेस दोनों बजट प्रबंधन के जरिये अपने-अपने वादों को पूरा कर सकते हैं, लेकिन भाजपा ने रूपरेखा भी प्रस्तुत की है जबकि कांग्रेस के घोषणापत्र में इसका अभाव है।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार लाने के लिये भाजपा अपने घोषणा पत्र में 75 नये मेडिकल कॉलेज खोलने, 1400 लोगों पर एक डॉक्टर की उपलब्धता सुनिश्चित करने, वर्ष 2022 तक देश के हर गरीब को प्राथमिक चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने, आयुष्मान भारत योजना के तहत वर्ष 2022 तक डेढ़ लाख हेल्थ ऐंड वेलनेस सेंटर खोलने आदि की बात कह रही है। ये सब संभव और व्यावहारिक है।
वहीं, कांग्रेस सरकारी अस्पतालों को सबल बनाने की बात कह रही है, ताकि इसके जरिये आसानी से गरीबों को उच्च स्तर की स्वास्थ्य सुविधायेँ मुहैया कराई जा सकें। 1400 लोगों पर एक डॉक्टर की उपलब्धता सुनिश्चित करना आसान नहीं है, क्योंकि सेंट्रल ब्यूरो ऑफ हेल्थ इंटलिजेंस की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अभी 11,082 की आबादी पर 1 डॉक्टर उपलब्ध है। कहा जा सकता है कि भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में वैसे वादे किये हैं, जिन्हें पूरा किया जा सकता है, लेकिन कांग्रेस के खासकर ‘न्याय’ सहित अन्य तमाम वादों का रास्ता इतना आसान नहीं है। उनके अधिकांश वादे यथार्थ के धरातल पर खरे नहीं उतरते हैं।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)