रामचरितमानस प्रकरण : ‘निंदा या आलोचना केवल हिंदू ग्रंथों की हो सकती है, ऐसी उदारता अन्यत्र दुर्लभ है’

निंदा या आलोचना केवल हिन्दू धर्म ग्रंथों की हो सकती है। यह बात निंदक लोग बखूबी समझते हैं। ऐसी उदारता अन्यत्र दुर्लभ है। इसमें भी निंदा या आरोप लगाना सर्वाधिक आसान होता है। आलोचना के लिए समीक्षा व शोध करना पड़ता। रामचरितमानस महाकाव्य है। इसमें रचयिता, पात्रों के माध्यम से उसके कथन को रखते हैं। लेकिन महाकाव्य के नायक का कथन, कार्य और व्यवहार ही वास्तविक संदेश होता है। प्रभु श्री राम निषाद राज को गले लगाते हैं। शबरी के जूठे बेर खाते हैं। जननी सम जानहू पर नारी का संदेश देते हैं। ऐसे नायक कभी नारी या किसी अन्य के उत्पीड़न की बात नहीं कर सकते।

नरेन्द्र मोदी ने परीक्षा पे चर्चा में बच्चों को एक सकरात्मक संदेश दिया था। इसमें उन्होने आलोचना और आरोप अर्थात सतही निंदा के बीच अन्तर को समझाया था। उनका कहना था कि आलोचना को सहज रूप में स्वीकार करना चाहिए। जबकि निराधार निंदा से विचलित नहीं होना चाहिए। आलोचना एक शुद्धि यज्ञ है। समृद्ध लोकतंत्र की मूल स्थिति है। आलोचना को आरोप नहीं समझना चाहिए। आलोचना करने के लिए बहुत मेहनत और एनालिसिस करना पड़ता है। ज्यादातर लोग आरोप लगाते हैं, आलोचना नहीं करते। आलोचना और आरोप के बीच एक बड़ी खाई है। यह भी देखना महत्वपूर्ण होता है कि निंदा कर कौन रहा है।

मोदी द्वारा बच्चों को दी गई यह सीख प्रकारान्तर से अस्था पर प्रहार के संदर्भ में भी लागू होती है। रामचरितमानस की भी केवल निंदा की गई है। इसके लिए कोई गहन अध्ययन मनन चिन्तन नहीं किया गया। राजनीतिक लक्ष्य को ध्यान में रख कर बहुसंख्यकों की अस्था पर आक्रमण कर दिया गया। यह आलोचना नहीं है।

वैसे निंदा या आलोचना केवल हिन्दू धर्म ग्रंथों की हो सकती है। यह बात निंदक लोग बखूबी समझते हैं। ऐसी उदारता अन्यत्र दुर्लभ है। इसमें भी निंदा या आरोप लगाना सर्वाधिक आसान होता है। आलोचना के लिए समीक्षा व शोध करना पड़ता। रामचरितमानस महाकाव्य है। इसमें रचयिता पात्रों के माध्यम उसके कथन को रखते हैं। लेकिन महाकाव्य के नायक का कथन, कार्य और व्यवहार ही वास्तविक संदेश होता है। प्रभु श्री राम निषाद राज को गले लगाते हैं। शबरी के जूठे बेर खाते हैं। जननी सम जानहू पर नारी का संदेश देते हैं। ऐसे नायक कभी नारी या किसी अन्य के उत्पीड़न की बात नहीं कर सकते।

जिस चौपाई की निंदा की गई, वह समुद्र का कथन है। महाकाव्य को समझने के लिए यह देखना चाहिए कि सम्बन्धित कथन किसका है। महाकाव्य का वास्तविक संदेश केवल नायक के माध्यम से दिया जाता है। दूसरी बात यह कि निंदक लोग शूद्र और ताड़ना दोनों का गलत अर्थ निकाल रहे हैं। ताड़ना शब्द का अर्थ उत्पीड़न या प्रताड़ना नहीं है। ऐसा कहना अज्ञानता मात्र नहीं है। यह बहुसंख्यकों के विरुद्ध सुनियोजित साजिश है।अवधी भाषा का यह शब्द देखने और ध्यान रखने के लिए प्रयुक्त होता है।हिन्दू दर्शन में पशुओं के प्रति दया भाव दिखाया गया है। नारी के प्रति सम्मान का संदेश दिया गया। सम्बन्धित चौपाई का अनर्थ निकाला गया है।

इसी प्रकार शूद्र शब्द का वर्तमान अनुसूचित जाति जनजाति से कोई मतलब नहीं है। इसका प्रयोग क्षुद्र मानसिकता वालों के लिए किया गया है। इनका किसी जाति विशेष से संबंध नहीं है। वैसे भी, इस महाकाव्य के किसी अन्य पात्र के कथन पर हंगामा  करना निरर्थक है। प्रभु राम के कथन को अभिव्यक्त करने वाली चौपाई ही मंत्रवत हैं। शबरी प्रभु राम से कहती हैं –

केहि बिधि अस्तुति करौं तुम्हारी।
अधम जाति मैं जड़मति भारी।।

अधम ते अधम अधम अति नारी।
तिन्ह महँ मैं मतिमंद अघारी।।

इतना सुनते ही भगवान तत्क्षण शबरी को रोकते हुए कह उठते हैं –

कह रघुपति सुनु भामिनि बाता।
मानउँ एक भगति कर नाता।।

जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई।
धन बल परिजन गुन चतुराई।।

भगति हीन नर सोहइ कैसा।
बिनु जल बारिद देखिअ जैसा।।

वह शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश देते हैं। ये भक्ति भागवत धर्म का आधार है। इसका निहितार्थ है प्रभु की भक्ति सबके लिए सुलभ है। प्रभु श्री राम शबरी को नवधा भक्ति का ज्ञान देते हैं।कहते हैं कि इन नौ में से एक भक्ति भी किसी में हो तो वो मुझे अतिशय प्रिय हो जाता है। फिर तुम्हारे भीतर तो ये नौ की नौ भक्तियां  हैं। योगियों को भी जो गति दुर्लभ है, वो भीलनी शबरी को सुलभ हो जाती है। प्रभु श्री राम शबरी को भक्ति के धरातल पर योगियों से भी ऊपर प्रतिष्ठित करते हैं।

ऐसी रामकथा में स्वामी प्रसाद मौर्य को केवल एक चौपाई दिखाई दी। वह भी समुद्र का कथन है। इस बयान के कुछ घण्टों के बाद उन्हें सपा ने राष्ट्रीय महासचिव के पद से पुरस्कृत किया।

वैसे यह देखना दिलचस्प है कि रामचरित मानस की निंदा कर कौन रहा है। वह तेज आवाज में अपनी बात रखने में माहिर हैं। बयान वीरों की श्रेणी में हैं। बिल्कुल विपरीत धाराओं के राजनीतिक खेमों में अपने को खपा लेते हैं। लेकिन इस बार मौसम का मिजाज समझने में विफल रहे। विधानसभा चुनाव हारे तो विधान परिषद में भेजे गए। रामचरित मानस पर विवादित बयान दिया। कृति के पन्ने जलाए। कुछ ही दिन में राष्ट्रीय महासचिव बना दिए गए।

ऐसे लोगों के लिए विचारधारा वस्त्रों की भांति होती है, जिन्हें कभी भी बदला जा सकता है। इस प्रकार के नेताओं के किस रूप और किस बयान पर विश्वास किया जाए।

वस्तुतः रामचरितमानस के प्रत्येक प्रसंग आध्यात्मिक ऊर्जा के स्रोत हैं। भक्ति के धरातल पर पहुंच कर ही इसका अनुभव किया जा सकता है। महर्षि वाल्मीकि और तुलसी दास सामान्य कवि मात्र नहीं थे। ईश्वरीय प्रेरणा से ही इन्होंने रामकथा का गायन किया था। इसलिए इनका काव्य विलक्षण हो गया। साहित्यिक चेतना या ज्ञान से कोई यहां तक पहुंच भी नहीं सकता। रामायण व रामचरितमानस की यह दुर्लभ विशेषता है। प्रभु बालक रूप में हैं, वनवासी रूप में हैं, राक्षसों को भी तारने वाले हैं। उनका अवतार अद्भुत है –

जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल।
चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल॥

प्रभु श्री राम ने मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में अवतार लिया था। ऐसे प्रभु की यह कथा आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करने वाली है। गोस्वामी तुलसीदास की चौपाइयों में मंत्र जैसी शक्ति है- श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन, हरण भवभय दारुणं।

प्रभु जब मनुष्य रूप में अवतार लेते हैं, तब भी आदि से अंत तक कुछ भी उनसे छिपा नहीं रहता। वह अनजान बनकर अवतार का निर्वाह करते हैं। भविष्य की घटनाओं को देखते हैं, लेकिन प्रकट नहीं होते देते। इसी की उनकी लीला कहा जाता है। आज भारत ही नहीं, विश्व के पैंसठ देशों में रामलीला होती है। ऐसे राम की कथा में जातिवाद की संकीर्णता खोजकर राजनीति करना, बुद्धिहीनता का ही सूचक है।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)