आज किसानों को एमएसपी से अधिक कीमत मिल रही है तो इसका श्रेय पिछले आठ सालों में मोदी सरकार द्वारा किए गए विपणन सुधारों को जाता है। दरअसल मोदी सरकार कृषि उपजों की खरीद-बिक्री में सरकारी क्षेत्र के समानांतर निजी क्षेत्र की मौजूदगी बना रही है। इससे खरीद में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी जिसका लाभ अंतत: किसानों को मिलेगा। गेहूं, सरसों, कपास के मामले तो यह लाभ मिलने भी लगा है। आगे चलकर अन्य फसलों को भी इसका लाभ मिलेगा।
मोदी सरकार द्वारा कृषि उपजों की खरीद-बिक्री पर लगे प्रतिबंधों को सरल बनाने का ही नतीजा है कि जिन किसानों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसल बेचने की गारंटी के लिए साल भर धरना-प्रदर्शन दिया था वही किसान आज अपनी उपज सरकारी एजेंसियों को न बेचकर एमएसपी से ऊंची कीमत पर निजी कारोबारियों को बेच रहे हैं।
गेहूं ही नहीं सरसों, कपास, चना की बिक्री भी समर्थन मूल्य से अधिक कीमत पर हो रही है। सबसे बड़ी बात यह हुई कि अनाज की बिक्री के लिए पंजीकरण के बावजूद किसान अपनी उपज लेकर सरकारी खरीद केंद्रों पर नहीं जा रहे हैं क्योंकि व्यापारी खुद उनके खेतों तक आने लगे हैं।
इसे गेहूं के उदाहरण से समझा जा सकता है। इस साल 29 मई तक 17.5 लाख किसानों से 184.5 लाख टन गेहूं की खरीद की गई। यह खरीद 2021-22 की सरकारी खरीद 433.4 लाख टन से 53 प्रतिशत कम है। सरकार ने 2022-23 के लिए 444 लाख टन खरीद का लक्ष्य निर्धारित किया था लेकिन निजी कारोबारियों द्वारा 2500 से 3000 रूपये प्रति क्विंटल की आक्रामक खरीदारी के कारण किसान समर्थन मूल्य 2015 रूपये प्रति क्विंटल की दर से गेहूं की बिक्री के लिए उत्साह नहीं दिखा रहे हैं।
सबसे बड़ी बात यह हुई कि जिन राज्यों में सरकारी खरीद का व्यवस्थित नेटवर्क नहीं है वहां भी निजी एजेंसियां एमएसपी से ऊंची कीमत देकर गेहूं की खरीद कर रही हैं। यह भविष्य के लिए एक सुखद संकेत है।
आज किसानों को एमएसपी से अधिक कीमत मिल रही है तो इसका श्रेय पिछले आठ सालों में मोदी सरकार द्वारा किए गए विपणन सुधारों को जाता है। दरअसल मोदी सरकार कृषि उपजों की खरीद-बिक्री में सरकारी क्षेत्र के समानांतर निजी क्षेत्र की मौजूदगी बना रही है। इससे खरीद में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी जिसका लाभ अंतत: किसानों को मिलेगा। गेहूं, सरसों, कपास के मामले तो यह लाभ मिलने भी लगा है। आगे चलकर अन्य फसलों को भी इसका लाभ मिलेगा।
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए मोदी सरकार परंपरागत मंडी व्यवस्था को सूचना प्रौद्योगिकी आधारित आधुनिक व्यवस्था में बदल रही है ताकि कृषि उपजों के कारोबार में बाधा न आए। इसके तहत मंडियों को राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई नाम) पोर्टल से जोड़ा जा रहा है ताकि किसान देश की सभी मंडियों में अपनी उपज का कारोबार कर सकें। 31 दिसंबर 2021 तक 18 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों की 1000 मंडियों को ई नाम प्लेटफार्म में बदला जा चुका है। इससे 1.72 करोड़ किसान, और 2 लाख ट्रेडर्स जुड़े हैं। अब 1000 नई मंडियों को ई नाम पोर्टल से जोड़ने की प्रक्रिया जारी है।
ई-नाम योजना को मिली सफलता को देखते हुए मोदी सरकार ग्रामीण हाटों को मिनी एपीएमसी मार्केट में बदल रही है। मनरेगा के तहत अब तक 1351 ग्रामीण हाट को बदला जा चुका। 1632 ग्रामीण हाटों को मिनी एपीएमसी मार्केट में बदलने की प्रक्रिया जारी है। 31 मार्च 2020 तक देश में 6845 एपीएमसी बाजार थे। किसानों की बाजार तक पहुंच बढ़ाने और बेहतर कीमत दिलाने के लिए उनका नियमन किया गया है।
इनके अलावा देश भर में कई प्रकार के थोक बाजार खरीद केंद्र भी हैं जो अभी तक नियमन के दायरे से बाहर हैं सरकार उन्हें भी विनियमित कर रही है। किसानों और बाजार के संबंध को मजबूत बनाने के लिए सरकार गोदाम और कोल्ड स्टोरेज को बाजार की मान्यता प्रदान करने जा रही है।
सरकार एक जिला एक उत्पाद को कृषि क्षेत्र में लागू कर रही है। इसके तहत देश के सभी 773 जिलों में उनकी पारिस्थितिकी दशाओं के अनुरूप फसलों को चिन्हित किया गया है। इसमें बागवानी-औषधीय महत्व की फसलों को प्राथमिकता दी जा रही है क्योंकि बाजार में इनकी अच्छी कीमत मिलती है। इन्हीं उपजों के आधार पर हर जिले के पारंपरिक उद्योग को विकसित किया जाएगा। इससे स्थानीय स्तर पर खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा मिलेगा।
देश में अब तक जितना ध्यान उत्पादन पर दिया गया उतना उपज के भंडारण-विपणन पर नहीं। यही कारण है कि किसानों को उनकी उपज की वाजिब कीमत नहीं मिल पा रही थी। मोदी सरकार चुनिंदा फसलों के बजाए विविधीकृत फसलों के उत्पादन के साथ-साथ उनके भंडारण, प्रसंस्करण, विपणन का देशव्यापी व्यवस्थित नेटवर्क बना रही है। यही कारण है कि अब किसानों को उनकी उपज की वाजिब कीमत मिलने लगी है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)