गत मई माह में अल्पअवधि के लिए मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण करने पर बीएस येदियुरप्पा के कार्यक्रम के दौरान मेहमानों के ठहरने का व्यय सरकार ने नहीं उठाया था। यह एक आदर्श उदाहरण है। क्या इससे सबक नहीं लिया जा सकता था। कांग्रेस-जीडीएस को बताना चाहिए कि उन्होंने शपथ ग्रहण के बहाने विपक्षी एकता कायम करने की अपनी राजनीति चमकाने के लिए जनता के 42 लाख रुपए किस अधिकार से उड़ाए हैं?
एक आरटीआई से चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है। यह खुलासा तथाकथित आम आदमी अरविंद केजरीवाल को लेकर है। पिछले दिनों कर्नाटक में जनता दल सेक्युलर की सरकार बनी थी। पार्टी के नेता एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह को बहुत विलासिता पूर्ण ढंग से आयोजित किया गया था। मालूम हो कि कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे अधिक बहुमत पाकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन कांग्रेस से गठबंधन कर जेडीएस सत्तारूढ़ हो गई।
सदन में भाजपा के येदियुरप्पा ने फ्लोर टेस्ट से पहले जो भाषण दिया था, उसमें इसी बात पर ज़ोर दिया था कि किसानों को बेहतर सुविधाएं देना हमारा लक्ष्य सदा रहेगा, भले ही हम सत्ता में आएं या ना आएं। ऐसा इसलिए कहा था, क्योंकि कर्नाटक में भी निर्धन किसानों की बात दबी छुपी नहीं है। ऐसे में जेडीएस को सत्ता अचानक मिल जाना, जो कि बहुमत प्राप्त दल नहीं था, किसी संयोग से कम नहीं था। लेकिन अफसोस की बात है कि इस अवसर को जेडीएस ने बहुत ही अशोभनीय ढंग से लिया।
जेडीएस-कांग्रेस की गठबंधन सरकार ने जनता की गाढ़ी कमाई के पैसे को पानी की तरह बहाया और केवल शपथ ग्रहण जैसे औपचारिक और नितांत मामूली अवसर पर ही 42 लाख रुपए जैसी मोटी रकम फूंक डाली गयी। खुलासा यह हुआ है कि मेहमानों की खातिरदारी के नाम पर 42 लाख रुपए खर्च किए गए, जिनमें से 8 लाख 72 हज़ार रुपए केवल आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू के लिए न्यौछावर कर दिए गए। दिल्ली के मुख्यमंत्री पर भी लगभग दो लाख का खर्च आया।
यहां यह उल्लेखनीय है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के केवल एक दिन के प्रवास पर लगभग दो लाख रूपये खर्च हुए हैं। केजरीवाल के खाने-पीने पर 76 हजार रुपए खर्च हुए जिसमें 5 हजार का बेवरेज यानी अल्कोहल भी शामिल है।
इस तथ्य का उल्लेख करना अहम होगा कि दिल्ली में पिछले दिनों तीन बच्चियों की भूख से मौत हो गई थी। उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी डॉक्टर ने स्पष्ट किया था कि बच्चियों की आंतों में भी अन्न का एक भी दाना नहीं था। अत्यंत कष्ट में उनके प्राण निकले। आश्चर्य है कि आम आदमी और आम जनता के नाम की दुहाई देने वाले अरविंद केजरीवाल का इस मामले में अभी तक ना कोई बयान सामने आया है, ना ही उन्होंने इस प्रकार के कष्ट से जूझ रहे अन्य लोगों के लिए कोई पहल की। ऐसा होना भी संभावित नहीं प्रतीत होता, क्योंकि ये काम शायद केजरीवाल की प्राथमिकता सूची में शामिल नहीं हैं।
क्या यह शर्म की बात नहीं कि जिस राज्य के बच्चे भूख से मर रहे हों, वहां का मुख्यमंत्री एक दिन में अपने खाने-पीने पर 76 हजार की रकम खर्च कर डालता है। जनता के पैसे की ऐसी बरबादी करके जेडीएस ने क्या साबित करना चाहा यह तो समझ से परे है, लेकिन इस निर्लज्जता के भागीदार बने मेहमानों पर भी इसका लांछन तो लगता ही है। कमल हासन पर भी एक लाख रुपए से अधिक धनराशि व्यय की गई।
ये वही कुमारस्वामी हैं जिन्होंने संयोग से मिली सत्ता का जश्न मनाने के लिए देशभर से विपक्षियों को तो बुला लिया था लेकिन कुछ दिनों बाद खुद ही गठबंधन के नकारात्मक परिणाम बताते हुए रुआंसे नज़र आए थे। अनैतिक गठबंधन के जश्न के नाम पर हुए इस भौंडे आयोजन में अवाम का पैसा पानी की तरह बहाने पर कर्नाटक के पूर्व लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने विरोध प्रकट किया है। उन्होंने कहा है कि यह राशि दलों को स्वयं वहन करना चाहिये, सरकारी धन से नहीं।
इसी संदर्भ में इस बात का जिक्र करना प्रासंगिक होगा कि गत मई माह में अल्पअवधि के लिए मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण करने पर बीएस येदियुरप्पा के कार्यक्रम के दौरान मेहमानों के ठहरने का व्यय सरकार ने नहीं उठाया था। यह एक आदर्श उदाहरण है। क्या इससे सबक नहीं लिया जा सकता था। कांग्रेस-जीडीएस को बताना चाहिए कि उन्होंने शपथ ग्रहण के बहाने विपक्षी एकता कायम करने की अपनी राजनीति के लिए जनता के 42 लाख रुपए किस अधिकार से उड़ाए हैं?
क्या ये वही केजरीवाल हैं जो सत्ता में आने के लिए नित नए ड्रामे रचते थे। कभी रेलवे स्टेशनों पर सोते हुए अपने फोटो जारी करते थे तो कभी भूख हड़ताल की नौटंकी करके खुद को दुर्बल दिखाकर मतदाताओं की सहानुभूति बटोरते थे। जो केजरीवाल खुद ही खुद को विश्व का सबसे ईमानदार व्यक्ति मानते हैं और दूसरों से उनके ज्ञान, चरित्र और योग्यता का प्रमाण-पत्र मांगना अपना अधिकार समझते हैं, क्या उनके पास इस बात का कोई जवाब है कि जनता के पैसे से ऐश करना किस चरित्र का प्रमाण है?
निश्चित ही केजरीवाल जैसे दोहरे चरित्र के नेता के पास इन सीधे सवालों का कोई सीधा जवाब नहीं हो सकता। अपना जनाधार खोते जा रहे और दिनोंदिन एक्सपोज होते जा रहे केजरीवाल अब सत्ता के नशे में चूर हो चुके हैं, जिन्हें केवल जनता ही सबक सिखा सकती है। आने वाले चुनाव में जनता अपने साथ हुए इस छल का जरूर प्रतिशोध लेगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)