माल्या पर भाजपा सरकार को फिजूल में घेरने से कांग्रेस के अपराध धुल नहीं जाएंगे!

कांग्रेस की संप्रग सरकार के समय विजय माल्या लगातार प्रधानमंत्री कार्यालय के संपर्क में था। 2010 से 2013 के कई ईमेल प्रधानमंत्री कार्यालय ने वित्त मंत्रालय  को प्रेषित कर दिए थे। तत्कालीन केंद्रीय मंत्री वायलार रवि ने बेल आउट पैकेज की घोषणा की थी। क्रमवार देखें तो 2004 में पहली बार माल्या को ऋण दिया गया, फिर दो हजार आठ में ऋण दिया गया।  माल्या की कंपनी को नॉन-परफॉर्मिंग एसेट घोषित कर दिया गया था, लेकिन इसके बाद भी 2010 में उसे पुनः ऋण दिया गया।

अरुण जेटली पर दिए गए बयान से सनसनी फैलाने के बाद विजय माल्या ने स्पष्ट किया है कि यह तथाकथित मुलाकात संसद के गलियारे में अचानक हुई थी, लेकिन कांग्रेस इस बात से बेखबर हंगामा मचाने में लगी हुई है। विजय माल्या ने कहा कि मीडिया ने उसके बयान को गलत तरीके से पेश किया।

अरुण जेटली से उसकी कभी भी अधिकारिक मुलाकात नहीं हुई। लंदन की वेस्टमिन्स्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट में सुनवाई के बाद बाहर आए माल्या ने अपनी सफाई पेश की। माल्या ने कहा कि जेटली से उसकी कोई औपचारिक मुलाकात नहीं हुई । बतौर सांसद वो उनसे संसद के सेंट्रल हॉल में मिले थे और अपनी बातें उनके सामने रखी थी।

साभार : हरिभूमि

उधर माल्या सफाई दे रहा था, इधर राहुल गांधी सांसद पी एल पुनिया को चश्मदीद के रूप में पेश कर रहे थे। पुनिया ने जेटली और माल्या को साथ देखने की बात कही, तो राहुल एक कदम आगे बढ़ गए। बोले कि माल्या जेटली से लंदन भागने की बात कर रहा था। राहुल ने कौन-सी दिव्यदृष्टि से माल्या को ये कहते देख-सुन लिया, इसका कोई जबाब नहीं है। ऐसे बे-सिर पैर के बयान राहुल की हल्की स्थिति को और हल्का बनाते हैं। लेकिन वह इनसे कोई सबक लेने को भी तैयार नहीं हैं।

इस तरह कांग्रेस ने खुद ही अपना मजाक बनाया है। बात यहीं तक सीमित नहीं है। इस प्रकरण पर कांग्रेस में यदि नैतिक बल होता तो यह शर्मिंदगी न उठानी पड़ती। विजय माल्या जैसे लोगों पर कांग्रेस की यूपीए सरकार मेहरबान थी। यह अजीब था कि पुनिया को ढाई वर्ष बाद जेटली और माल्या की मुलाकात याद आई।

ऐसा भी नहीं कि यह प्रकरण अभी सामने आया है। पिछले वर्ष माल्या पर मनमोहन सिंह और चिदंबरम का दस्तावेजी संवाद सामने आया था। इसमें उस समय का प्रसंग था, जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री और चिदंबरम वित्त मंत्री थे। उस समय भी पुनिया को यह सपना नहीं आया था कि जेटली से माल्या की मुलाकात का खुलासा कर दें। इस पर भी जेटली अपना पक्ष स्पष्ट कर चुके हैं।

पुनिया यह बखूबी जानते हैं कि संसद में किसी सांसद का मंत्री से मिलना आसान रहता है। उस समय माल्या सांसद था। अब जैसा कि उसके नए बयान से भी जाहिर है कि वो जेटली से अचानक संसद के गलियारे में मिला था। अब कोई किसीके सामने आकर यूँ खड़ा हो जाए तो उसे खदेड़ा तो नहीं जा सकता न!

गत वर्ष भाजपा ने आरोप लगाया था कि माल्या ने मनमोहन सिंह और चिदंबरम को दो-दो पत्र लिख कर मदद मांगी थी। माल्या ने लिखा था कि बैंक कंजोर्शियम से उसे साठ दिन के लिए कर्ज दिलाया जाए ताकि एयरलाइंस की ईंधन आपूर्ति बंद ना हो। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि माल्या ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के बड़े अफसरों से भी मदद मांगी थी, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया था। हालांकि तब मनमोहन और चिदंबरम ने माल्या की मदद की थी।

साभार : जनसत्ता

रिपोर्ट के मुताबिक, विजय माल्या उस समय लगातार प्रधानमंत्री कार्यालय के संपर्क में था। 2010 से 2013 के कई ईमेल प्रधानमंत्री कार्यालय ने वित्त मंत्रालय  को प्रेषित कर दिए थे। तत्कालीन केंद्रीय मंत्री वायलार रवि ने बेल आउट पैकेज की घोषणा की थी। 2004 में पहली बार माल्या को ऋण दिया गया, फिर दो हजार आठ में ऋण दिया गया।  माल्या की कंपनी को नॉन-परफॉर्मिंग एसेट घोषित कर दिया गया था, लेकिन इसके बाद भी दो हजार दस में पुनः ऋण दिया गया।

माल्या पर भारतीय बैंकों का नौ हजार करोड़ रुपए  का कर्ज है। भारत में उसके खिलाफ भगोड़ा आर्थिक अपराधी कानून के तहत मामला चल रहा है। प्रवर्तन निदेशालय नए कानून के तहत माल्या को भगोड़ा घोषित करने और साढ़े बारह हजार करोड़ रुपए की उसकी संपत्ति जब्त करने की कार्यवाही कर सकेगा। कांग्रेस इस समय गलतफहमी की शिकार है, उसे लगता है कि नरेंद्र मोदी सरकार पर व्यर्थ में गड़बड़ी के आरोप लगाने से उंसकी छवि सुधर जाएगी। लेकिन इस संबन्ध में उसके सभी दांव उल्टे पड़ रहे हैं।

दो हजार पन्द्रह में मोदी सरकार द्वारा विजय माल्या के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया गया था। उस वक्त माल्या विदेश में रहते थे। जब माल्या भारत लौटे तो ब्यूरो ऑफ इमीग्रेशन ने  लुक आउट नोटिस के तहत सीबीआई से माल्या को हिरासत में लेने की बात कही।

तब सीबीआई ने यह कहकर माल्या को हिरासत में लेने से इंकार कर दिया कि अभी माल्या एक सांसद हैं और उनकी खिलाफ कोई वॉरेंट भी जारी नहीं है। उस दौरान सीबीआई ने सिर्फ माल्या के आने और जाने की सूचना मांगी। उस के अनुसार किसी का पासपोर्ट तभी जब्त किया जा सकता है, जब उसके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई हो या फिर उसके खिलाफ कोई जांच चल रही हो। यह सुप्रीम कोर्ट का आदेश है।

माल्या  जांच में सहयोग कर रहा था, इसलिए उसके विदेश जाने पर रोक लगाने की आवश्यकता नहीं समझी गई। एजेंसी माल्या के विदेशी दौरों पर नजर रखे हुए थी, लेकिन कभी भी हस्तक्षेप नहीं किया क्योंकि वह हर बार वापस  लौट आता था। यह संभव है कि सीबीआई उसके भागने का अनुमान नहीं लगा सकी।  उसका सांसद होना भी इसका बड़ा कारण था। लेकिन इससे कांग्रेस सरकार की उसके ऊपर की गई मेहरबानियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कांग्रेस के पास मोदी सरकार पर माल्या को लेकर कोई भी आरोप लगाने का रत्ती भर भी नैतिक अधिकार नहीं है।

(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)