एक ओर प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मांग कर रही हैं कि प्रदेश के सभी घरों और ट्यूबवेल के चार माह के बिजली बिल माफ किए जाएं। वहीं दूसरी ओर राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने कोरोना संकट के कारण तीन महीने तक स्थगित किए गए बिजली बिल को 31 मई तक भुगतान करने का आदेश दे दिया अन्यथा 2 प्रतिशत पेनाल्टी देनी होगी।
हाल ही में बसपा प्रमुख मायावती ने श्रमिकों की दुर्दशा के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि आजादी के बाद इतने लंबे शासन काल में यदि रोजी-रोटी की सही व्यवस्था की गई होती तो श्रमिकों को दूसरे राज्यों में पलायन न करना पड़ता। इतना ही नहीं, मायावती ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा प्रवासी मजदूरों से बातचीत के वीडियो को भी नाटक करार दिया।
वैसे तो कांग्रेस पर आरोप लगाने वाली मायावती भी दूध की धुली नहीं हैं, लेकिन मायावती द्वारा उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहने के दौरान की गई खुलेआम लूट के आधार पर कांग्रेस को क्लीन चिट भी नहीं दी जा सकती। देखा जाए तो देश के असंतुलित विकास के लिए लंबे अरसे तक केंद्र व राज्यों में सत्ता में रहीं कांग्रेसी सरकारें ही जिम्मेदार हैं।
आजादी के बाद से ही कांग्रेसी सरकारें गरीबों के कल्याण का नारा लगाकर अपनी और अमीरों की तिजोरी भरती रही हैं। यही कारण है कि बिजली, पानी, अस्पताल, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं आम आदमी की पहुंच से दूर रहीं।
2019 के आम चुनाव से पहले होने वाले हर चुनाव में बिजली, पानी, सड़क का मुद्दा हावी रहता था और चुनाव बीतते ही सरकारें इन मुद्दों को भुला देती थीं ताकि अगले चुनाव में बिजली-पानी का ख्वाब दिखाया जा सके।
दूसरी ओर 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने बिजली, पानी, सड़क, बैंक, इंटरनेट, आवास जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए दिन रात एक कर दिया। हर लक्ष्य के लिए समयबद्ध कार्यक्रम तैयार किया गया और हर स्तर पर प्रशासनिक जवाबदेही तय की गई। इसका नतीजा हुआ कि तय वक्त से पहले योजनाएं पूरी हो गईं। यही कारण है कि 2019 के चुनाव में बिजली, पानी का मुद्दा गायब हो गया।
यहां बिजली क्षेत्र में मोदी सरकार को मिली कामयाबी का उल्लेख प्रासंगिक होगा। आर्थिक विकास में बिजली के महत्व को देखते हुए प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त 2015 को लाल किले की प्राचीर से एक हजारों दिनों के भीतर देश के सथी विद्युत विहीन गांवों तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा और हर स्तर पर जवाबदेही सुनिश्चित किया।
राजनीतिक इच्छाशक्ति और नौकरशाही की चुस्ती का नतीजा यह निकला कि तय समय से 12 दिन पहले ही अंधेरे में डूबे 18452 गांवों तक बिजली पहुंचा दी गई।
इन सबके बावजूद हर मुद्दे पर चुनावी चाल चलने वाली कांग्रेस पार्टी की आंखें अभी भी नहीं खुली हैं। यही कारण है कि वह नरेंद्र मोदी की विकास की राजनीति का अनुसरण करने के बजाए अपनी पुरानी गोटियां चलने से बाज नहीं आ रही है। इसे कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी द्वारा बिजली बिल माफ करने की मांग से समझा जा सकता है।
एक ओर प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मांग कर रही हैं कि प्रदेश के सभी घरों और ट्यूबवेल के चार माह के बिजली बिल माफ किए जाएं। वहीं दूसरी ओर राजस्थान में कांग्रेस सरकार ने कोरोना संकट के कारण तीन महीने तक स्थगित किए गए बिजली बिल को 31 मई तक भुगतान करने का आदेश दे दिया अन्यथा 2 प्रतिशत पेनाल्टी देनी होगी।
चुनावी राजनीति को ध्यान में रखते हुए प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश के कामगारों को उनके गंतव्य स्थान तक पहुंचाने लिए एक हजार बसों को उपलब्ध कराने की पेशकश कर दी। आपदा की घड़ी में कांग्रेस द्वारा की गई इस पेशकश में भी घोटाला था क्योंकि बसों के नाम पर तिपहिया वाहनों और बाइकों की लिस्ट दी गई थी।
उत्तर प्रदेश के कामगारों के प्रति उदारता दिखाने वाली प्रियंका गांधी क्या इस सवाल का जवाब देंगी कि महाराष्ट्र, राजस्थान से जो हजारों कामगार पैदल अपने-अपने घरों की ओर जा रहे हैं उन्हें कांग्रेस ने बसें मुहैय्या क्यों नहीं कराई?
कांग्रेस की ओछी राजनीति का एक और उदाहरण है कोटा से उत्तर प्रदेश भेजे गए छात्रों के लिए राजस्थान सरकार की ओर से योगी सरकार से 36 लाख रूपये किराया मांगा जाना। इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि चुनावी राजनीति में कांग्रेस का कोई जोड़ नहीं है।
समग्रत: सशक्त राजनीतिक विकल्प के अभाव में कांग्रेस की चुनावी गोटी 70 साल तक हिट रही लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई विकास की राजनीति में कांग्रेस का चुनावी सिक्का चल नहीं पा रहा है। यही कारण है कि कभी देश के हर गांव-कस्बे तक से नुमाइंदगी दर्ज कराने वाली कांग्रेस एक पारिवारिक पार्टी में तब्दील होती जा रही है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)