सिद्धू कह रहे हैं कि वह निजी दोस्ती के कारण पाकिस्तान गए थे। मतलब उनकी नजर में निजी दोस्ती देश के सम्मान से बड़ी है। सुनील गवास्कर, कपिल देव आदि दिग्गज इमरान के ज्यादा समकालीन और सिद्धू के मुकाबले ज्यादा अच्छे दोस्त हैं। सचिन तेंदुलकर भी उनके अच्छे दोस्त हैं। लेकिन इन सभी ने देश के सम्मान के सामने निजी दोस्ती को महत्व नहीं दिया। एक तो राष्ट्रीय शोक, दूसरे सीमापार का आतंकवाद, बावजूद इसके सिद्धू वहाँ पहुँच गए। वैसे सिद्धू की इमरान से कितनी गहरी दोस्ती थी, यह भी दुनिया ने देख लिया। सिद्धू ने शॉल पहनाया, इमरान ने देखा तक नही।
सिद्धू का पाकिस्तान जाना और मणिशंकर अय्यर की कांग्रेस में वापसी एक ही समय पर हुई। इसी से कांग्रेस के वर्तमान वैचारिक आधार का अनुमान लगाया जा सकता है। अय्यर ने पाकिस्तान जाकर कभी जयचंद की याद ताजा कर दी थी। वहां उन्होंने कहा था कि नरेंद्र मोदी को हटाने के लिए आप ही कुछ करिए। अब सिद्धू पाकिस्तानी सेना प्रमुख को झप्पी देकर आए हैं। इसका खासतौर पर शहीदों के परिजनों ने विरोध किया है।
कांग्रेस ने तब अय्यर के बचाव में जैसे मोर्चा खोला था, वैसे ही अब सिद्धू के बचाव में भी उतर पड़ी है। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी बचाव में उतर पड़े। इसमें भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही निशाने पर थे। मतलब साफ है। मुद्दा चाहे जो हो, कांग्रेस नेतृत्व नरेंद्र मोदी के अलावा कुछ सोचने की स्थिति में ही नहीं है।
सिद्धू के बचाव में कांग्रेस ने यह भी नहीं सोचा कि पंजाब में शहीदों के परिजन भी नाराज हैं। माहौल देखते हुए ही मुख्यमंत्री अमरिंदर ने सिद्धू की हरकतों को गलत बताया है। पहले भी दोनों में कई बार टकराव हुआ है। लेकिन इस बार अमरिंदर ने जनमानस की भावनाओं के अनुरूप सिद्धू के खिलाफ मोर्चा खोला है।
सिद्धू द्वारा पाकिस्तानी सेना प्रमुख जावेद वाजवा को गले लगाने की पंजाब में बड़ी निंदा की जा रही है। दिल्ली में बैठे कांग्रेस हाईकमान ने इसे समझने की कोशिश ही नहीं की। उसने तो इसे भी मोदी के विरोध का मुद्दा मान लिया। कहा कि जब नरेंद्र मोदी पाकिस्तान जा सकते है, तब सिद्धू का जाना अनुचित कैसे है। कांग्रेस की यह दलील उंसकी मानसिक दरिद्रता को ही दर्शाती है। प्रधानमंत्री जब कोई कार्य करते हैं, तब उसे विदेश नीति के संदर्भ में देखने की जरूरत होती है। पंजाब के एक मंत्री से उनकी तुलना करने का कोई अर्थ नहीं है।
मोदी की पाकिस्तान यात्रा की तुलना सिद्धू से करना बेमानी है। यदि मोदी की यात्रा की तुलना करनी ही है तो पूर्व प्रधानमंत्रियो से करनी होगी। कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ ले जाना, शिमला समझौता, जिसमें हमारे सैनिकों द्वारा खून बहाकर जीती गई जमीन वार्ता की मेज पर लौट दी गई थी। लेकिन सिद्धू का बचाव करते हुए कांग्रेसी प्रवक्ता मोदी तक ही रुक गए। जबकि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जमीनी स्थिति समझी। उन्होंने शहीदों के परिजनों की भावनाओं को सम्मान दिया। पाकिस्तान में सिद्धू की हरकतों को अनुचित बताया। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने सिद्धू के जनरल बाजवा से गले मिलने को गलत ठहराया है।
सिद्धू कह रहे हैं कि वह निजी दोस्ती के कारण गए थे। मतलब उनकी नजर में निजी दोस्ती देश के सम्मान से बड़ी है। सुनील गावस्कर, कपिल देव आदि दिग्गज इमरान के ज्यादा समकालीन और सिद्धू के मुकाबले ज्यादा अच्छे दोस्त हैं। सचिन तेंदुलकर भी उनके अच्छे दोस्त हैं। लेकिन इन सभी ने देश के सम्मान के सामने निजी दोस्ती को महत्व नहीं दिया। एक तो राष्ट्रीय शोक, दूसरे सीमापार का आतंकवाद, बावजूद इसके सिद्धू वहाँ पहुँच गए। वैसे सिद्धू की इमरान से कितनी गहरी दोस्ती थी, यह भी दुनिया ने देख लिया। सिद्धू ने शॉल पहनाया, इमरान ने देखा तक नही।
दिल्ली में बैठे कांग्रेसी सिद्धू के बचाव में उतरने से पूर्व यदि मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह का बयान देख लेते तो नासमझी की बातों से बच जाते। निजी दोस्ती पर अनेक लोग जाते हैं। लेकिन सिद्धू की हरकत से शहीदों के परिजन दुखी हुए। अमरिंदर सिंह ने यही कहा है। विश्व में प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति की विदेश यात्रा विदेशी नीति के अनुरूप होती है। नवाज और नरेंद्र मोदी के बीच विश्वास बहाल हुआ था। लेकिन वहां की सेना बाधक बन गई। सिद्धू उसी सेना के प्रमुख से गले मिलकर लौटे हैं। कांग्रेस ने सिद्धू का बचाव करके शहीदों का अपमान किया है और उनके परिजनों का दुख बढ़ाया है। ऐसा लगता है जैसे सिद्धू के पाकिस्तान जाने से शहीदों के अपमान में कुछ कसर रह गयी थी, जिसे कांग्रेस सिद्धू का बचाव करके पूरा कर रही है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)