प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार कह रहे हैं कि नए कृषि कानूनों के लागू होने के बाद भी न्यूनतम समर्थन मूल्य और अनाज की सरकारी खरीद प्रणाली जारी रहेगी। सैकड़ों प्रगतिशील किसान संगठन भी मोदी सरकार के कानूनों का समर्थन कर रहे हैं। इसके बाजवूद कांग्रेस झूठ की राजनीति कर रही है।
विरोध प्रदर्शन लोकतंत्र की विशेषता हैं लेकिन वातानुकूलित कमरों में रहने वाले और जमीनी हकीकत से अंजान वीआईपी लोगों के विरोध प्रदर्शन अक्सर हास्य-व्यंग्य का पात्र बन जाते हैं। यह बात कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पर पूरी तरह फिट बैठती है। कभी वे आलू से सोना बनाते हैं तो कभी ट्रैक्टर की सीट पर सोफासेट लगाकर उसे आरामदायक बनाकर विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने निकल पड़ते हैं।
यहां 2010 में महाराष्ट्र में घटी घटना का उल्लेख प्रासंगिक है। किसान विधवा कलावती के घर शोक संवेदना प्रकट करने गए राहुल गांधी ने कहा था – कलावती जी आप चिंता मत करिए, अमेरिका से एटमी करार हो रहा है। अब वहां से यूरेनियम आएगा, एटमी बिजली घर लगेगा, बिजली के खंभे गड़ेगें और आपके घर में बल्ब जलेगा। इस पर वहां खड़े एक पत्रकार ने तपाक से कहा कि राहुल गांधी जी इनके घर में गोबर गैस का प्लांट लगवा दीजिए एक हफ्ते में बिजली का बल्ब जलने लगेगा।
इसी प्रकार की नादानी राहुल गांधी समय-समय पर करते रहते हैं जिससे वे उपहास का पात्र बनते हैं। केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब में कांग्रेस की रैली में ट्रैक्टर की गद्देदार सीट पर बैठे राहुल गांधी पर तंज कसते हुए स्मृति ईरानी ने कहा कि – वीआईपी किसान उस सिस्टम का समर्थन नहीं कर सकते जो छोटे व सीमांत किसानों को बिचौलियों-आढ़तियों से मुक्ति दिलाने के लिए बना हो।
देखा जाए तो कृषि कानूनों पर भी कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष वही विरोधात्मक रवैया अपनाए हुए है जो उसने नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध में अपनाया था। उस समय विपक्ष प्रदर्शनकारियों से शांति की अपील करने के बजाए उन्हें बरगला रहा था।
इसे देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कहावत के जरिए प्रदर्शनकारियों से सद्बुद्धि अपनाने की सलाह दी थी। उनके अनुसार कौआ कान काट कर उड़ गया सुनने के बाद कौए के पीछे भागने के पहले अपना कान देखना चाहिए। ठीक वही स्थिति आज कृषि कानूनों के विरोध पर विपक्षी नेता पैदा कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार कह रहे हैं कि नए कृषि कानूनों के लागू होने के बाद भी न्यूनतम समर्थन मूल्य और अनाज की सरकारी खरीद प्रणाली जारी रहेगी। सैकड़ों प्रगतिशील किसान संगठन भी मोदी सरकार के कानूनों का समर्थन कर रहे हैं। इसके बाजवूद कांग्रेस झूठ की राजनीति कर रही है।
मोदी विरोध की आग में झुलस रहा विपक्ष राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 को भी भुला बैठा है। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत संसद ने देश के 75 प्रतिशत ग्रामीण और 50 प्रतिशत शहरी आबादी को नाममात्र की कीमतों पर सब्सिडी वाला अनाज देने वाला कानून बनाया है। यदि अनाज की सरकारी खरीद नहीं होगी तब सरकार 80 करोड़ से अधिक लोगों को अनाज कहां से मुहैया कराएगी ? इसलिए भी सरकारी खरीद तो जारी रहनी ही है।
किसानों के विरोध प्रदर्शन को देखें तो यह प्रायोजित लगता है। पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र के कुछेक किसान संगठनों को छोड़ दिया जाए तो पूरे देश में कहीं से भी नए कृषि कानूनों के विरोध में आवाज नहीं उठ रही है। स्पष्ट है यह किसानों का नहीं बल्कि आढ़तियों-बिचौलियों की तगड़ी राजनीतिक लॉबी द्वारा प्रायोजित विरोध प्रदर्शन है।
राहुल गांधी कह रहे हैं कि नए कानूनों से किसानों को घाटा होगा। यदि ऐसी बात है तो राहुल गांधी को कांग्रेस शासित राज्यों में मौजूदा कृषि कानूनों की जगह मॉडल कृषि कानून लागू करना चाहिए ताकि किसानों को उनकी उपज की वाजिब कीमत मिल सके। यदि कांग्रेस शासित राज्यों में मॉडल कृषि कानून सफल रहता है तब इसे पूरे देश में लागू करने के लिए सरकार पर दबाव बनाया जा सकता है।
लोकतंत्र की सफलता के लिए सशक्त विपक्ष का होना जरूरी है लेकिन कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जिस प्रकार की बचकानी हरकतें करते रहे हैं उससे वे कारगर राजनीतिक विकल्प देने के बजाए हर तरफ हास्य का पात्र बन जाते हैं। राहुल का ये रवैया एक बड़ा कारण है कि कांग्रेस के जनाधार में लगातार कमी आ रही है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)