कांग्रेस और जेडीएस सरकार के गठन से पहले न्यूनतम साझा कार्यक्रम भी नहीं बनाया गया था। कर्नाटक में एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ी इन दोनों पार्टियों ने बिना किसी एजेंडे के सरकार बनाई थी। कर्नाटक में कांग्रेस व जेडीएस ने भाजपा को रोकने के नाम पर गठबन्धन किया था। इनके पास अन्य कोई कार्यक्रम नहीं था। ऐसी सरकार के गिरने में चौंकाने वाली कोई बात नहीं, इसका ये हश्र अवश्यंभावी था।
कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष के निर्देशन में चली कई दिनों की नौटंकी का समापन हुआ। वह सभी पैंतरे आजमाने के बाद भी कुमारस्वामी सरकार को बचा नहीं सके। विश्वासमत पर उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। इस तरह चौदह महीने बाद कर्नाटक में जनादेश का सम्मान हुआ।
मतदाताओं ने कांग्रेस और जेडीयू को सरकार से बाहर रखने का फैसला सुनाया था। लेकिन इन्होंने अनैतिक रूप से गठजोड़ कर सत्ता पर कब्ज़ा जमा लिया। लेकिन चौदह महीने तक यह सरकार एक दिन भी सलीके से नहीं चली। कुमारस्वामी खुद इसके लिए आंसू बहा चुके थे। लेकिन सत्ता का मोह उन्हें सरकार में काबिज रहने के लिए प्रेरित कर रहा था।
इस सरकार का आधार ही नकारात्मक था। कांग्रेस और जेडीयू ने एक दूसरे के खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ा था। भाजपा को रोकने के नाम पर यह नकारात्मक गठजोड़ किया गया था। उनतालीस सदस्य वाली जेडीयू के कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाया गया था। यह बात कांग्रेस के अनेक विधायकों को अखर रही थी। वह इसे अपवित्र सरकार मान रहे थे। कांग्रेस के कई बड़े नेता भी सरकार को गिराना चाहते थे।
आखिर देवगौड़ा परिवार के मामले में कांग्रेस ने अपना इतिहास नए अंदाज में दोहराया है। अंतर इतना है कि देवगौड़ा को प्रधानमंत्री पद से हटाने का निर्णय कांग्रेस हाईकमान ने किया था। वहीं कर्नाटक में देवगौड़ा के पुत्र कुमारस्वामी सरकार को अस्थिर करने का खेल प्रांतीय नेता सिद्धारमैया ने किया है। यह कहना गलत है कि कर्नाटक के घटनाक्रम के लिए भाजपा दोषी है।
यदि भाजपा की ऐसी पहुंच होती तो येदियुरप्पा की सरकार गिरी न होती। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। राज्यपाल ने येदियुरप्पा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था। लेकिन कांग्रेस और जेडीएस के बेमेल गठबन्धन के कारण वह बहुमत साबित नहीं कर सके थे। इसके बाद कांग्रेस के समर्थन से जेडीएस नेता कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने थे।
लेकिन कांग्रेस के अनेक नेता शुरू से ही परेशान थे। उन्हें यह बात हजम नहीं हो रही थी कांग्रेस से आधी संख्या वाले कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बन गए हैं। कांग्रेस बड़ी होने के बाद भी सरकार की बी टीम बनकर रह गई है। सिद्धारमैया के नेतृत्व में यह लोग मुख्यमंत्री पर दबाब बना रहे थे। सरकार बनने के मात्र ढाई महीने बाद कुमारस्वामी ने स्वयं यह बात सार्वजनिक मंच से स्वीकार की थी। इतना ही नहीं, वह कांग्रेस के दबाव से परेशान होकर इसी मंच से फूट-फूटकर रोये भी थे। इन्हीं आंसुओं में पांच वर्ष सरकार चलाने का दावा भी बह गया था।
कुमारस्वामी ढाई वर्ष तक भाजपा गठबन्धन के साथ कर्नाटक की सरकार चला चुके हैं। वह उनके राजनीतिक जीवन का सर्वश्रेष्ठ कालखंड था। ये बात अलग है कि जब भाजपा के मुख्यमंत्री बनने की बारी थी, तब कुमारस्वामी अपने वादे से मुकर गए थे। लेकिन कांग्रेस के साथ सरकार चलाने में मात्र ढाई महीने में उनके आंसू निकल गए थे। कुमारस्वामी का कहना था कि कांग्रेस के दबाव ने उन्हें परेशान कर दिया है।
ऐसे में यह कहना गलत है कि इस सरकार को भाजपा ने अस्थिर किया है। अंतर्विरोधों से घिरी सरकार का इतने समय तक चलना कम नहीं है। कर्नाटक में जिस गठबन्धन को लेकर विपक्षी नेताओं का बंगलुरू में अखिल भारतीय जश्न हुआ था, उसके लिए ही मुख्यमंत्री कुमारस्वामी आंसू बहा रहे थे। उनका बयान था कि वह वैसे विषभरी स्थिति में है। जाहिर है कि कांग्रेस का उनके साथ विषैला व्यवहार था। उनके बयान से साबित हो गया था कि यह गठबन्धन शुरू से ही विफल था, जबकि विपक्ष की जिन पार्टियों का कर्नाटक से कोई लेना देना नहीं था, वह भी बारातियों की तरह इस सरकार की ताजपोशी में पहुंची थीं।
ये सभी इस बात से आनन्दित थे कि भाजपा को सरकार बनाने से रोकने में सफलता मिली है। तब मुख्यमंत्री कुमारस्वामी का दावा था कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी। लेकिन उपमुख्यमंत्री ने उन्हें पहले दिन ही आगाह कर दिया था तथा पांच वर्ष की गलतफहमी में न रहने की हिदायत दी थी। जबकि कुमारस्वामी शायद कांग्रेस के इतिहास से आँख मूंदे हुए थे। उनका कहना था कि यह अलग तरह की गठबंधन सरकार होगी, जो देश के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करेगी, जबकि उप मुख्यमंत्री जी. परमेश्वर ने कहा था कि कांग्रेस पार्टी ने पूरे पांच साल तक के कार्यकाल के लिए कुमारस्वामी का समर्थन करने पर अब तक कोई फैसला नहीं लिया है।
कांग्रेस और जेडीएस सरकार के गठन से पहले न्यूनतम साझा कार्यक्रम भी नहीं बनाया गया था। कर्नाटक में एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ी इन दोनों पार्टियों ने बिना किसी एजेंडे के सरकार बनाई थी। कर्नाटक में कांग्रेस व जेडीएस ने भाजपा को रोकने के नाम पर गठबन्धन किया था। इनके पास अन्य कोई कार्यक्रम नहीं था। ऐसी सरकार के गिरने में चौंकाने वाली कोई बात नहीं, इसका ये हश्र अवश्यंभावी था।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)