हिंसा के कारण कभी असहयोग आन्दोलन को वापस ले लेने वाले महात्मा गांधी के नाम की राजनीति करने वाली राहुल गांधी की कांग्रेस दो अप्रैल के हिंसक आन्दोलन के समर्थन में उपवास का आडंबर करने उतरी। उपवास भी ऐसा रहा कि भरपेट छोले-भटूरे खाकर उपवास-स्थल पर पहुंचे और कुछ देर हँसी-ठिठोली कर वापस हो लिए। कहना न होगा कि महात्मा गांधी की उपवास की महान परम्परा का कांग्रेस ने उपहास बनाने का ही काम किया है।
महात्मा गांधी अहिंसा और डॉ. आंबेडकर संवैधानिक व्यवस्था के प्रबल हिमायती थे। दोनों महापुरुष अपने इस आग्रह से किसी प्रकार के समझौते के लिए कभी तैयार नहीं हुए। महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन से देश की आजादी की लड़ाई को बल मिला, तो स्वतंत्र भारत को डॉ. आंबेडकर ने भारतीय संविधान के रूप में एक उत्तम शासन-तंत्र प्रदान किया।
लेकिन, दो अप्रैल को जो कथित आन्दोलन हुआ, उसे गांधी और आंबेडकर के सिद्धांतों के अनुकूल नहीं कहा जा सकता। महात्मा गांधी होते तो इस हिंसक आंदोलन के विरोध में स्वर बुलंद कर देते। आंबेडकर होते तो न्यायिक निर्णय के खिलाफ सड़कों पर आंदोलन की इजाजत कभी नहीं देते। इसके लिए पुनर्विचार याचिका का सहारा लेने का अधिकार दिया गया है। न्यायिक निर्णयों के खिलाफ अगर ऐसे ही सड़कों पर उतरने लगे, तो देश में संवैधानिक व्यवस्था को बनाये रखना मुश्किल हो जाएगा।
हिंसा के कारण कभी असहयोग आन्दोलन को वापस ले लेने वाले महात्मा गांधी के नाम की राजनीति करने वाली राहुल गांधी की कांग्रेस दो अप्रैल के हिंसक आन्दोलन के समर्थन में उपवास का आडंबर करने उतरी। उपवास भी ऐसा रहा कि भरपेट छोले-भटूरे खाकर उपवास-स्थल पर पहुंचे और कुछ देर हँसी-ठिठोली कर वापस हो लिए। कुल मिलाकर महात्मा गांधी की उपवास की महान परम्परा का कांग्रेस ने उपहास बनाने का ही काम किया है।
कांग्रेस अपने को सबसे पुरानी पार्टी कहती है। इसमें वह ए. ओ. ह्यूम से लेकर गांधी तक की अवधि को जोड़ती है। ऐसे में, राहुल गांधी को यह जवाब देना चाहिए कि अगर यह महात्मा गांधी की कांग्रेस है, तो जिस आंदोलन में कई लोग मारे गए, उसके लिए उपवास का क्या मकसद है। क्या कांग्रेस यह चाहती है कि हिंसा फैलाने वालों को अभयदान दिया जाय।
इसके अलावा अंबेडकर पर अपना अधिकार जताने और बड़ी दलित हितैषी बनने वाली कांग्रेस यह भी बताए कि उसने अतीत में डॉ. आंबेडकर को दो बार संसद में पहुंचने से क्यों रोका। क्यों उन्हें कांग्रेस ने भारतरत्न नहीं दिया। सवाल बसपा प्रमुख मायावती से भी है। उन्हें बताना चाहिए कि क्या ऐसे आंदोलन डॉ. आंबेडकर के विचारों के अनुरूप हैं। उनके पास यह कहने का क्या आधार है कि सरकार दलितों को फंसा रही है। ये वही मायावती हैं, जिन्होंने एससी/एसटी एक्ट का दुरुपयोग होना स्वीकार किया था तथा उसे रोकने का शासनादेश जारी किया था। यही मंशा सुप्रीम कोर्ट के आदेश में है। फिर आज किस गणित से न्यायालय के निर्णय पर पुनर्विचार याचिका डालने वाली भाजपा सरकार दलित विरोधी हो गई है।
कांग्रेस के उपवास, बसपा के विरोध से कई सवाल उठते हैं। क्या हिंसा और आगजनी करने वालों के खिलाफ कानून को अपना कार्य नहीं करना चाहिए। सरकार कह रही है कि सीसीटीवी फुटेज देखकर ही अराजक तत्वों की पहचान की जा रही है। ऐसे में, यह आरोप शरारतपूर्ण है कि सरकार दलितों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है। बल्कि सरकार की कार्रवाई से वह चेहरे सामने आएंगे, जिन्होंने हिंसा फैलाई। इसका स्वागत करना चाहिए। डॉ आंबेडकर में आस्था रखने वाले ऐसा नही कर सकते। जिन्होंने गड़बड़ी की, उन्हें कठघरे में पहुंचाने का कार्य वैधानिक व्यवस्था के अनुरूप है। जो सरकार ऐसा नहीं करती, उसे कर्तव्यों के प्रति लापरवाह समझना चाहिए।
इस मामले में सरकार कर्रवाई कर रही है, लेकिन यह क्यों न माना जाए कि विपक्ष अराजक तत्वों को बचाना चाहता है। सवाल और भी हैं। क्या महात्मा गांधी ने यह नहीं कहा था कि हिंसा के बल पर उन्हें आजादी मंजूर नहीं है। आज कांग्रेस का उपवास किस प्रकार के आंदोलन के पक्ष में है।
वास्तव में कांग्रेस, बसपा आदि दलों की नजर केवल अपनी राजनीति और वोटबैंक पर है। इसके लिए इन्हें गांधी और आंबेडकर की अवहेलना में भी संकोच नहीं है। दोनों महापुरुष अहिंसक आंदोलन, प्रदर्शन, सत्याग्रह पर विश्वास रखते थे। महात्मा गांधी ने इसी मार्ग पर स्वयं अमल किया था। डॉ. आंबेडकर ने संविधान में शांतिपूर्ण आंदोलन का अधिकार दिया। कहना न होगा कि कांग्रेस का उपवास, गांधी और आंबेडकर दोनों महापुरुषों के विचारों को अपमानित करने वाला है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)