कांग्रेस का ये घोषणापत्र जहां एक तरफ बिना किसी अध्ययन और रणनीति के किए गए लोकलुभावन वादों का खोखला दस्तावेज है, वहीं दूसरी तरफ इसके जरिये मजहबी तुष्टिकरण का कुटिल प्रयास भी किया गया है। भाषाई त्रुटियों से भरे इस घोषणापत्र में ऐसा कुछ नहीं है, जिसे भावी भारत का सुचिंतित विजन कहा जा सके। लेकिन देश की सुरक्षा और अखंडता के मुद्दे पर कांग्रेस के असली चरित्र को ये घोषणापत्र जरूर बयान कर रहा है।
बीते दो अप्रैल को लोकसभा चुनाव – 2019 के लिए कांग्रेस ने अपना घोषणापत्र जारी कर दिया। 54 पृष्ठों का ये घोषणापत्र काम, दाम, शान, सुशासन, स्वाभिमान और सम्मान इन छः हिस्सों में बंटा हुआ है। रोजगार से लेकर ‘न्याय’ और राष्ट्रीय सुरक्षा एवं स्वास्थ्य तक सभी वादों को इन छः हिस्सों में रखा गया है।
इन दिनों अपनी ‘न्याय’ योजना को लेकर राहुल गांधी खूब उछल रहे हैं, हालांकि इसका क्रियान्वयन कैसे होगा इसपर कोई ठोस रूपरेखा कांग्रेस की तरफ से नहीं पेश की जा सकी है। उम्मीद थी कि घोषणापत्र में इसके क्रियान्वयन से सम्बंधित महत्वपूर्ण बातों पर कांग्रेस प्रकाश डालेगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
घोषणापत्र में ‘न्याय’ योजना की उन्ही बातों को दोहराया गया है, जो राहुल गांधी कहते रहे हैं। रोजगार को लेकर कांग्रेस का वादा है कि वो सरकारी महकमों में रिक्त पड़े पदों को भरकर लगभग बीस लाख नौकरियां देगी। आर्थिक क्षेत्र में कांग्रेस ने मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ की नकल मारते हुए ‘मेक फॉर द वर्ल्ड’ शुरू कर विदेशी निवेशकों को आमंत्रित करने का वादा किया है।
विनिर्माण क्षेत्र में जीडीपी को 25 प्रतिशत तक ले जाकर भारत को विश्व का निर्माण-केंद्र बनाने का वादा भी कांग्रेसी घोषणापत्र में दर्ज है। देश को दुनिया का इंफ्रास्ट्रक्चर हब बनाने की बात मोदी सरकार पहले से कहती रही है और कदम भी उठाए हैं। कांग्रेस के घोषणापत्र में और भी अनेक ऐसे वादे हैं, जिनमें मोदी सरकार के वादों और कामों की छाप दिखाई देती है।
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ का उदाहरण गिनाते हुए इसी तरह अन्य राज्यों के किसानों का कर्ज माफ़ करने का वादा भी कांग्रेस ने किया है। यहाँ दो सवाल उठते हैं। पहला कि जिन राज्यों की कर्जमाफी का कांग्रेस ने उदाहरण दिया है, वहाँ इस वादे के पूरे होने का हश्र हम देख चुके हैं कि कैसे किसीके तीन सौ रुपये माफ़ हुए तो किसीके पांच सौ तो किसीके हुए ही नहीं, ऐसे में सवाल है कि क्या कांग्रेस बाकी राज्यों के किसानों का कर्ज भी इसी अंदाज में माफ़ करेगी? दूसरा सवाल यह है कि अगर सबके कर्ज माफ़ हुए तो उसके लिए उतनी धनराशि आएगी कहाँ से? इस विषय में कांग्रेस का घोषणापत्र खामोश है।
बहरहाल, ये तो लोकलुभावन वादों की बात हुई, लेकिन कुछ वादे कांग्रेस ने ऐसे भी किए हैं जो उसके मजहबी तुष्टिकरण की अपनी पारम्परिक राजनीति के साथ इस चुनाव में भी बढ़ने पर मुहर तो लगाते ही हैं, साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता को लेकर उसकी सोच पर सवाल भी खड़े करते हैं। घोषणापत्र के 37वें बिंदु ‘जम्मू-कश्मीर’ में वादा किया है कि वो राज्य में सशस्त्र बलों तैनाती (अफस्पा) की समीक्षा करेगी तथा उनकी संख्या में कमी लाएगी और राज्य की बागडोर पुलिस के हाथ में सौंप देगी।
इसके अलावा राज्य के नागरिकों से बिना शर्त बातचीत का वादा भी कांग्रेस ने किया है। यह वादा उसके गले की फांस बन गया है। सवाल है कि जिस राज्य में आम नागरिक पत्थरबाज बने पड़े हैं और आतंकियों को अंदर ही अंदर सहयोग मुहैया कराने लगे हैं, वहाँ से सशग्त्र बलों कम करना किस लिहाज से उचित है?
जिन आतंकियों से निपटना हमारे सैन्य बलों के लिए चुनौतीपूर्ण और कठिन होता है, उनसे राज्य की लुंज-पुंज पुलिस किस तरह निपटेगी? दूसरी चीज कि पत्थरबाजी करने वाले लोगों से क्या कांग्रेस बिना शर्त बातचीत करेगी? कहने की जरूरत नहीं कि अगर कांग्रेस के ये वादे अमलीजामा पहनते हैं, तो राज्य के हालात जो पिछली कांग्रेसी सरकारों की ही कुनीतियों के कारण आज बेहद कठिन हुए पड़े हैं, और खतरनाक दौर में पहुँच जाएंगे।
दूसरा एक वादा कांग्रेस ने देशद्रोह क़ानून को खत्म करने का किया है, जिसपर सवाल उठ रहे हैं। घोषणापत्र के 30वें बिंदु ‘क़ानून नियम और विनियमों की पुनः परख’ के तीसरे पॉइंट में कांग्रेस ने देशद्रोह क़ानून की धारा 124ए को खत्म करने का वादा किया है। सवाल है कि क्या कांग्रेस देशविरोधी आचरण करने या वक्तव्य देने वालों को दंड न दिए जाने की समर्थक है और इसे उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मानती है जिस कारण उसे देशद्रोह क़ानून बेमतलब लगता है।
इस मामले में कांग्रेस के विचार जानना कोई मुश्किल नहीं, जेएनयू में लगे देशविरोधी नारों के बाद जिस तरह से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी वहाँ पहुंचकर एक तरह से उन नारे लगाने वालों के साथ खड़े हो गए थे, वो स्पष्ट करता है कि कांग्रेस देशद्रोही कर्म करने वालों के प्रति कैसा रुख रखती है। उसके इसी रुख की अभिव्यक्ति घोषणापत्र का उक्त वादा करता है।
कुल मिलाकर कह सकते हैं कि कांग्रेस का ये घोषणापत्र जहां एक तरफ बिना किसी अध्ययन और रणनीति के किए गए लोकलुभावन वादों का खोखला दस्तावेज है, वहीं दूसरी तरफ इसके जरिये मजहबी तुष्टिकरण का कुटिल प्रयास भी किया गया है। भाषाई त्रुटियों से भरे इस घोषणापत्र में ऐसा कुछ नहीं है, जिसे भावी भारत का सुचिंतित विजन कहा जा सके। लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा और देश की अखंडता के मुद्दे पर कांग्रेस के असली चरित्र को ये घोषणापत्र जरूर बयान कर रहा है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)