पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम आने के बाद यूपी, उत्तराखण्ड और पंजाब इन तीन राज्यों में तो जनता ने पूर्ण बहुमत का जनादेश दिया; मगर, गोवा और मणिपुर में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति पैदा हो गयी। कांग्रेस इन दोनों ही राज्यों में नंबर एक दल है, लेकिन पूर्ण बहुमत के जादुई आंकड़े को नहीं छू सकी है। इन राज्यों के अन्य दल व निर्दलीय विधायक भी कांग्रेस के साथ आने के संकेत नहीं दे रहे। ऐसे में इन राज्यों में स्थानीय दलों समेत निर्दलीय विधायकों के समर्थन से भाजपा द्वारा सरकार बनाने की कवायदों पर कांग्रेस ने क्योंकर हंगामा मचाया, यह समझ से परे है। अब इन दोनों राज्यों में भाजपा की गठबंधन सरकारें बन चुकी हैं।
सन 2014 के कर्णाटक चुनाव में भाजपा को 79, कांग्रेस को 65 और जेडीएस को 58 सीटें मिली थीं। भाजपा पहले स्थान पर थी, लेकिन कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बना ली। इसी तरह 2014 में ही हुए दिल्ली के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा पहली, आप दूसरी और कांग्रेस तीसरी पार्टी थी। यहाँ भी आप और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बना ली। इन सभी उदाहरणों का तात्पर्य इतना है कि उक्त स्थितियों में भाजपा के पक्ष में गठबंधन की स्थिति नहीं थी, इसलिए वो पहले नंबर की पार्टी होते हुए भी सरकार नहीं बना सकी। लेकिन, आज जब भाजपा के पक्ष में गठबंधन की स्थिति है, तो इस वास्तविकता को स्वीकारने में कांग्रेस को इतनी परेशानी क्यों हो रही है ?
दरअसल ४० विधानसभा सीटों वाले गोवा में १७ सीटों के साथ कांग्रेस पहले तो १३ सीटों के साथ भाजपा दूसरे स्थान पर है। इसके अलावा तीन-तीन सीटें महाराष्ट्रवादी गोमान्तक पार्टी, फोरवोर्ड गोवा पार्टी और निर्दलियों को भी मिली हैं। ये सब भाजपा के समर्थन को तैयार हैं और इसीके मद्देनज़र भाजपा द्वारा केंद्र से मनोहर पर्रिकर को गोवा भेजते हुए सरकार बनाने की कवायद शुरू कर दी गयी। इसपर कांग्रेस बिफर पड़ी और इसे अलोकतांत्रिक बताते हुए सर्वोच्च न्यायालय में इसके खिलाफ याचिका दाखिल कर दी। कांग्रेस को उम्मीद थी कि सर्वोच्च न्यायालय उसे राज्य की सबसे बड़ी पार्टी मानते हुए भाजपा की सरकार बनाने की कवायदों में कोई रोड़ा लगा देगा। लेकिन, कांग्रेस की बुरी फजीहत तब हुई जब इस याचिका के लिए न्यायालय ने उसे कड़ी फटकार लगाई। मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर ने कांग्रेस से पूछा कि आप लोग सरकार बनाने को लेकर राज्यपाल के पास क्यों नहीं गए ? क्या आपके पास बहुमत है ? क्या विधायकों की चिट्ठी राज्यपाल को दी गई थी ? क्या आपके पास सरकार बनाने के लिए आवश्यक संख्याबल है ? अगर है, तो आपने समर्थन देने वाले विधायकों का हलफनामा क्यों नहीं पेश किया ? गौर करें तो न्यायालय के ये सभी सवाल एकदम तार्किक और उचित हैं। कांग्रेस को अगर अपने सरकार बनाने पर इतना भरोसा था, तो उसे परिणाम आने के बाद ही राज्यपाल के पास जाकर दावा करना चाहिए था। मगर, उसने ऐसा कुछ नहीं किया और जब भाजपा ने इस दिशा में सक्रियता दिखाई तो उसे दिक्कत शुरू हो गयी।
दरअसल कांग्रेस को ये बाखूबी पता है कि गोवा में उसे कोई समर्थन नहीं मिलने वाला, इसलिए बिना बात भाजपा के सरकार बनाने की राह में अवरोध पैदा करने की कोशिश कर रही है। बहरहाल, न्यायालय द्वारा मनोहर पर्रिकर के शपथ ग्रहण पर कोई रोक न लगाते हुए उन्हें १६ मार्च को विधानसभा में बहुमत साबित करने का आदेश दे दिया गया। पर्रिकर ने शपथ ले भी ली है और ये लगभग निश्चित है कि वे १६ तारीख को गोवा विधानसभा में बहुमत साबित कर लेंगे व उनकी सरकार आराम से चलेगी। क्योंकि, गोवा के स्थानीय दलों से लेकर निर्दलीय तक सभी विधायक मनोहर पर्रिकर के चेहरे और छोटी-मोती शर्तों के साथ भाजपा को समर्थन की घोषणा कर चुके हैं।
खैर, संवैधानिक दृष्टि से तो उक्त मामले की व्याख्या न्यायालय की सुनवाई में हो गयी है। मगर, कुछ सवाल हैं जिनके जवाब कांग्रेस को देने चाहिए। सबसे पहला सवाल तो ये कि कांग्रेस गोवा व मणिपुर में दूसरे नंबर का दल होने के कारण भाजपा के सरकार बनाने पर इतना हंगामा कर किस आधार पर रही है ? यह स्पष्ट है कि सबसे बड़ा दल होने से सरकार नहीं बनती, सरकार बहुमत से बनती है। अब यदि गठबंधन के साथ फिलहाल बहुमत भाजपा के पास है, तो सरकार वही बनाएगी। इतिहास गवाह है कि कांग्रेस खुद अनेकों बार तमाम राज्यों में दूसरे-तीसरे नंबर का दल होते हुए भी गठबंधन करके सरकार बना चुकी है। सन 2014 के कर्णाटक चुनाव में भाजपा को 79, कांग्रेस को 65 और जेडीएस को 58 सीटें मिली थीं। भाजपा पहले स्थान पर थी, लेकिन कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बना ली। इसी तरह 2014 में ही हुए दिल्ली के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा पहली, आप दूसरी और कांग्रेस तीसरी पार्टी थी। यहाँ भी आप और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बना ली। इसके अलावा अटल बिहारी वाजपेयी की वो तेरह दिन की सरकार किसे याद नहीं होगी! उसवक्त भाजपा सदन में सबसे बड़ा दल थी, लेकिन कांग्रेस ने तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों के नामपर बाहर से सहयोग देकर संयुक्त मोर्चा की सरकार बनवा दी। इन सभी उदाहरणों का तात्पर्य इतना है कि उक्त स्थितियों में भाजपा के पक्ष में गठबंधन की स्थिति नहीं थी, इसलिए वो पहले नंबर की पार्टी होते हुए भी सरकार नहीं बना सकी। लेकिन, आज जब भाजपा के पक्ष में गठबंधन की स्थिति है, तो इस वास्तविकता को स्वीकारने में कांग्रेस को इतनी परेशानी क्यों हो रही है ? कांग्रेस का ये रवैया तो ‘मीठा-मीठा गप, कड़वा-कड़वा थू’ को चरितार्थ करने वाला है। ऐसे में, कहना न होगा कि भाजपा के सरकार गठन के प्रयासों पर सवाल उठाकर कांग्रेस अपने दोहरे राजनीतिक चरित्र का ही प्रदर्शन कर रही है; अब उसे समझ आए न आए, लेकिन ये रवैया उसे नुकसान ही पहुंचाएगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)