सन्तोष कुमार राय
इतिहास लिखना और इतिहास लिखवाना दोनों दो बातें हैं। पिछले 69 वर्षों से स्वाधीन भारत में कांग्रेस ने सच के समानान्तर झूठों का एक पुलिंदा तैयार करवाया और उसे बता दिया कि यही है इस देश का इतिहास। कांग्रेस निर्मित इतिहास के घड़े में अब कुछ सुराख बन गये हैं और उसमें से वही बदबूदार पानी रिस रहा है जिसे कभी उसके पोषित बुद्धिजीवियों द्वारा देश पर थोपा गया था। किसी भी राजनीतिक दल का उत्कर्ष हमेशा उसकी कार्यशैली और राजनैतिक विश्वसनीयता पर निर्भर होता है। स्वाधीनता की लड़ाई वाली कांग्रेस के नाम पर जवाहरलाल नेहरू ने देश को भावनात्मक चंगुल में बांध लिया। परिणाम यह हुआ कि आज उनकी ( फिरोज गांधी की) चौथी पीढ़ी भी उसी हथियार से देश का कत्ल करना चाहती है। भारतीय राजनीति में सबसे अधिक समय तक शासन करने का तमगा कांग्रेस पार्टी के नाम है। आज उसकी दयनीय दशा और बौखलाहट खिसियानी बिल्ली के खंभा नोचने जैसा ही लगता है। जैसे-जैसे कांग्रेस की सच्चाई जनता के सामने आ रही है वैसे-वैसे आने वाले समय में उसे अपने राजनैतिक संकुचन का एहसास हो रहा है जो उसकी बौखलाहट का स्वाभाविक कारण है।
कांग्रेस के लिए अपनी हताशा और उन्माद से बाहर निकालकर एक संतुलित राजनीतिक दल की भूमिका में आना ही सही और मर्यादित राजनीति का उदाहरण होगा। विपक्ष की भूमिका सरकार द्वारा किए जाने वाले सही कार्यों को प्रोत्साहित करना और उसे लागू कराने में अग्रणी भूमिका निभाना भी होता है न कि उसे रोकने के लिए टांग अड़ाना। हालांकि नरेंद्र मोदी के खिलाफ अमेरिका को वीजा न देने के पत्र पर चुप्पी साधने वाली कांग्रेस की स्थिति खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे से ज्यादा कुछ नहीं है।
यहाँ कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनको लेकर अनेक सवाल कांग्रेस से देश की जनता पूछ सकती है या यह कहें की पूछ रही है। सरकार भाजपा की है और सवाल कांग्रेस से पूछा जा रहा है जबकि कांग्रेस की पूरी कोशिश रही है कि सवालों को भाजपा की ओर मोड दिया जाय। यह कितनी बड़ी विडंबना है कि राहुल गांधी आज तक कांग्रेस के नेता नहीं बन पाये लेकिन कांग्रेस उन्हें देश का नेता बनाना चाहती है। कांग्रेस जवाहरल लाल नेहरू के समय में भी, इन्दिरा गांधी के समय में भी, राजीव गांधी के समय में भी, और सोनिया गांधी के समय में भी और आज भी, देश के साथ जिस तरह के विवादित और अमर्यादित फैसले हुए भारत की स्वाधीनता की लड़ाई लड़ने वालों के त्याग और बलिदान को नीलाम कर दिया गया।
कांग्रेस ने कैसे अपने किए को झुठलाया है उसके अनेक उदाहरण समय-समय पर देखने को मिलते रहे हैं। इन्दिरा गांधी की इमरजेंसी हो या राजीव गांधी के समय का बोफोर्स, सोनिया गांधी के समय का टू जी हो या कामनवेल्थ। इतना होने के बाद भी कांग्रेस के अनुसार उसका दामन बिलकुल साफ है। लेकिन अब ये बातें व्यवस्थित तरीके से सामने आ रहीं हैं। परिणाम स्वरूप कांग्रेसी जन बौखला रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राओं पर सवाल उठाने वाले राहुल गाँधी भारत के बाहर कहाँ जाते हैं, कब जाते हैं, जाते हैं तो कब आयेंगे, इसकी कोई सार्वजनिक सूचना नहीं होती जबकि सार्वजनिक जीवन जीने वाले राजनेता और विपक्षी पार्टी के सांसद के तौर पर जिसे लेकर पिछले कई सालों से पार्टी का नेता घोषित-अघोषित का खेल खेला जा रहा हो, तो क्या जनता को इसकी सूचना होनी नहीं चाहिए ? अगर उनकी ऐसी यात्राएं इतनी गोपनीय हैं तो प्रधानमंत्री की आधिकारिक यात्राओं पर सवाल उठाने से पहले कांग्रेसी खेमे को अपने गिरेबाँ में भी झांकना चाहिए। अब यह कहना वाजिब है कि कांग्रेस राजनीति के मार्ग से विचलित हो गई है और उसे विपक्ष में रहने की हताशा बर्दाश्त नही हो रही है। ऐसा हो सकता है कि पिछले कई दशकों से सत्ता में रहने से उसे इस भूमिका को स्वीकार करने में परेशानी हो रही हो लेकिन इससे जनता को जवाब नहीं मिलता। यह लोकतंत्र है और लोकतंत्र का निर्णय राजनीति के लिए सर्वोपरि होता है। अपनी हताशा और उन्माद से बाहर निकालकर एक संतुलित राजनीतिक दल की भूमिका में आना ही सही और मर्यादित राजनीति का उदाहरण होगा। विपक्ष की भूमिका सरकार द्वारा किए जाने वाले सही कार्यों को प्रोत्साहित करना और उसे लागू कराने में अग्रणी भूमिका निभाना भी होता है न कि उसे रोकने के लिए टांग अड़ाना। हालांकि नरेंद्र मोदी के खिलाफ अमेरिका को वीजा न देने के पत्र पर चुप्पी साधने वाली कांग्रेस की स्थिति खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे से ज्यादा कुछ नहीं है।