संसद का बज़ट सत्र चल रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस सत्र में दोनों सदनों के समक्ष अपना वक्तव्य रखा। अबसे पूर्व सदन में प्रधानमंत्री के जो भी संबोधन हुए थे, उनमें प्रायः विपक्षी दलों के प्रति उदार दृष्टि और सहयोग का आग्रह ही दिखायी दिया था। किन्तु, उनके विनम्र और उदार संबोधनों का कांग्रेस-नीत विपक्ष पर कोई विशेष प्रभाव पड़ता कभी नहीं दिखा। हर सत्र में विपक्ष का अनावश्यक असहयोग कमोबेश जारी ही रहा और बात-बेबात सदन की कार्यवाही बाधित की जाती रही।
खैर, इस बज़ट सत्र में जब प्रधानमंत्री ने पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में अपनी बात रखी, तो अबकी उनका अंदाज़ बदला हुआ था। उनका रुख विपक्ष पर पूरी तरह से हमलावर था। यह हमला न केवल तथ्यों-तर्कों से पुष्ट था, बल्कि इसमें तीखे व्यंग्य का भी समावेश था। उनके निशाने पर थी कांग्रेस और उसकी नकारात्मक राजनीति। उन्होंने पूरे तथ्यों के साथ कांग्रेस को आईना दिखाने का काम किया। कांग्रेस का इतिहास से लेकर वर्तमान तक, सब प्रधानमंत्री के निशाने पर रहा। नोटबंदी के कांग्रेसी विरोध के संदर्भ में प्रधानमंत्री ने एक पुस्तक के हवाले से कहा कि एकबार जब इंदिरा गांधी के समक्ष नोटबंदी की ज़रूरत बतायी गयी थी, तो उन्होंने राजनीतिक हानि होने की बात कहकर इसे टाल दिया था। लेकिन, भाजपा की सरकार के लिए राजनीतिक हित से कहीं अधिक महत्वपूर्ण देश हित है, इसलिए यह सरकार नोटबंदी करने का साहस कर सकी। प्रधानमंत्री की इस बात से कांग्रेस बौखला उठी और किताब की सत्यता पर ही सवाल उठाने लगी। इसपर प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर किताब गलत है, तो कांग्रेस ने अपने शासन के दौरान इसे रोका क्यों नहीं ? कांग्रेसी खेमा निरुत्तर नज़र आया। फ़िज़ूल का शोर-शराबा करने के सिवा शायद उसके पास कोई चारा नहीं था।
प्रधानमंत्री मोदी ने तो सिर्फ हलके-फुल्के व्यंग्य के लहज़े में अपनी बात कही है और उसमें कुछ भी अभद्र या आपत्तिजनक नहीं है। मगर, क्या कांग्रेस यह भूल गयी है कि कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की तरफ से प्रधानमंत्री मोदी के प्रति ‘खून की दलाली’, ‘मौत के सौदागर’ आदि किस तरह की भाषा इस्तेमाल की जाती रही है। क्या कांग्रेस को यह भी याद दिलाना पड़ेगा कि आज जिन मनमोहन सिंह पर प्रधानमंत्री मोदी के कटाक्ष भर से कांग्रेस बिलबिलाई हुई है, उन मनमोहन सिंह ने अपने शासनकाल की अंतिम प्रेसवार्ता में कहा था कि नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना देश के लिए विनाशकारी होगा। क्या ये सब आपत्तिजनक बयान नहीं थे ?
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि कांग्रेस राजीव गांधी को मोबाइल क्रांति लाने वाला बताती है और जब वर्तमान सरकार उस मोबाइल से बैंक आदि को जोड़ने की बात करती है, तो कांग्रेस कहने लगती है कि देश के लोगों के पास तो मोबाइल है ही नहीं। प्रधानमंत्री की इस बात ने कांग्रेस की दुखती रग पर ऊँगली रख दी थी और उसके साठ साल के शासन के दौरान की विफलताओं को आईना दिखाने का काम कर दिया।
इसी तरह प्रधानमंत्री ने राहुल गांधी के बचकाने बयानों समेत और भी अनेक बिन्दुओं पर तंज़ भरा हमला बोला। लेकिन, सबसे ज्यादा बिलबिलाहट कांग्रेस को तब हुई, जब राज्यसभा में बोलते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को निशाने पर लिया। प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस-नीत संप्रग सरकार के दौरान हुए घोटालों पर मूकदर्शक बने रहे मनमोहन सिंह पर कटाक्ष करते हुए कहा कि रेनकोट पहनकर नहाने की कला मनमोहन सिंह ही जानते हैं। दरअसल कांग्रेस अक्सर मनमोहन सिंह की ईमानदार और साफ़-सुथरी छवि का ढिंढोरा पिटती रहती है, लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि संप्रग शासन के दौरान जो रिकॉर्डतोड़ घोटाले हुए, उनपर मनमोहन सिंह रोकने की सामर्थ्य होते हुए भी मूकदर्शक बने रहे और इतिहास के लिए खुद को एक बेहद लाचार प्रधानमंत्री साबित कर गए। अब गलत होते हुए देखकर शक्ति रहते हुए भी उसे नहीं रोकना और मौन बने रहना, मनमोहन सिंह की किस प्रकार की ईमानदारी है, इसका जवाब उन्हें और कांग्रेस को देना चाहिए।
प्रधानमंत्री मोदी के तंज़ भरे लहज़े और कटाक्षपूर्ण बातों को लेकर कांग्रेस उनकी भाषा पर सवाल उठा रही है, लेकिन ऐसा करने से पहले कांग्रेस को एकबार अपनी गिरेबां में झाँक लेना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी ने तो सिर्फ हलके-फुल्के व्यंग्य के लहज़े में अपनी बात कही है और उसमें कुछ भी अभद्र या आपत्तिजनक नहीं है। मगर, क्या कांग्रेस यह भूल गयी है कि कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की तरफ से प्रधानमंत्री मोदी के प्रति ‘खून की दलाली’, ‘मौत के सौदागर’ आदि किस तरह की भाषा इस्तेमाल की जाती रही है। क्या कांग्रेस को यह भी याद दिलाना पड़ेगा कि आज जिन मनमोहन सिंह पर प्रधानमंत्री मोदी के कटाक्ष भर से कांग्रेस बिलबिलाई हुई है, उन मनमोहन सिंह ने अपने शासनकाल की अंतिम प्रेसवार्ता में कहा था कि नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना देश के लिए विनाशकारी होगा। क्या ये सब आपत्तिजनक बयान नहीं थे ? उचित होगा कि कांग्रेस अपने नेताओं के इन बयानों पर एकबार दृष्टिपात कर ले। इसके बाद अगर उसमें ज़रा भी नैतिकता-बोध होगा तो वो प्रधानमंत्री मोदी की भाषा पर सवाल उठाने का साहस नहीं कर सकेगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)