देश में अभी तक जितने भी दंगे हुए हैं, उनमें से अधिकांश कांग्रेस के ही शासनकाल में हुए हैं। दंगों में जान गंवाने वाले बेकसूर लोगों का भी प्रतिशत कांग्रेस राज में अधिक रहा है। सिख विरोधी दंगों पर तो बेशर्मी की हद पार करते हुए राजीव गांधी ने कहा था कि बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिल जाती है। क्या यह वाक्य सिख विरोधी दंगों को औचित्य प्रदान करता प्रतीत नहीं होता। वास्तव में कांग्रेस ने देश में हमेशा ही दंगे और हिंसा भड़काने और उस पर राजनीति करने का काम किया है।
देश ने पिछले दिनों राजधानी में हिंसा का नंगा नाच देखा और अफसोस है कि ऐसे में भी कुछ विपक्षी दल महज राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए लाशों पर सियासत किए जा रहे हैं। बुधवार, 11 मार्च को संसद का सत्र हंगामाखेज था। इसमें दिल्ली के दंगों का मामला उठा लेकिन विपक्षी दल कांग्रेस ने हमेशा की तरह अपनी ओछी मानसिकता का परिचय देते हुए इसे अनावश्यक रूप से सांप्रदायिक बनाने की कोशिश की।
गनीमत है कि गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने कांग्रेस को करारा जवाब देते हुए दमदार तथ्यों एवं तर्कों से उनके मुंह बंद कर दिये। बात दिल्ली की हिंसा से शुरू हुई थी लेकिन कांग्रेस के नेताओं का मानसिक दिवालियापन देखिये कि यह जानते हुए कि दंगों में हर वर्ग, हर समुदाय के लोग मारे गए, कांग्रेस ने यहां भी हिंदू व मुस्लिमों की संख्या पर बेतुकी गणना शुरू कर दी।
गृहमंत्री अमित शाह ने पलटवार करते हुए कहा कि दंगों में जिनका भी नुकसान हुआ वे भारतीय थे। सरकार इसमें हिंदू या मुसलमान नहीं देखेगी। इस भाषा में बात करना ही गलत है कि कितने हिंदुओं का नुकसान हुआ या कितने मुसलमानों का। और चूंकि नुकसान देश का हुआ है, भारत का हुआ है, इसलिए सारे दंगाई देश के दुश्मन हैं। इन्होंने जिस सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है, उसकी भरपाई सरकार इनकी संपत्ति जब्त करके करेगी। इनकी संख्या भी छोटी मोटी नहीं है। अभी तक पूरे ढाई हजार से अधिक गिरफ्तार किए जा चुके हैं और हिंसा के मामलों में 700 से अधिक एफआईआर दर्ज की जा चुकी है।
इससे पहले मीनाक्षी लेखी ने भी कांग्रेस की इस कुत्सित मानसिकता पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा कि जो विपक्षी दल के नेता यहां हिंदू व मुसलमान का भेद जानना चाह रहे हैं, पहले वे यह बताएं कि सरकार ने जनहित की जो योजनाएं चला रखी हैं, उसका लाभ क्या हिंदू या मुस्लिम देखकर दिया जा रहा है? क्या उज्ज्वला योजना के तहत निशुल्क प्रदान किए गए लाखों गैस सिलेंडर हिंदू या मुसलमान अथवा जाति या धर्म देखकर दिए गए? कतई नहीं। योजनाओं का लाभ देते समय केवल यही देखा जाता है कि वह भारतीय है या नहीं। शाह ने हिंसा जैसे गंभीर मसले को नकारात्मक रूप से भुनाने के लिए विपक्ष को कड़ी फटकार लगाई।
बात हिंसा की चली है तो यहां यह उल्लेख करना जरूरी हो जाता है कि जो कांग्रेस आज संसद में दिल्ली हिंसा को लेकर सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है, यदि वह अपने गिरेबान में झांककर देखेगी तो पाएगी कि उसके हाथ खून से रंगे हुए हैं। आंकड़ें तो तस्दीक करते हैं लेकिन जो बात आंकड़ों से जाहिर नहीं हो पाती वह अधिक असरदार होती है।
देश में अभी तक जितने भी दंगे हुए हैं, उनमें से अधिकांश कांग्रेस के ही शासनकाल में हुए। दंगों में जान गंवाने वाले बेकसूर लोगों का भी प्रतिशत कांग्रेस राज में अधिक रहा है। सिख विरोधी दंगों पर तो बेशर्मी की हद पार करते हुए राजीव गांधी ने कहा था कि बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिल जाती है। क्या यह वाक्य सिख विरोधी दंगों को औचित्य प्रदान करता प्रतीत नहीं होता। वास्तव में कांग्रेस ने देश में हमेशा ही दंगे और हिंसा भड़काने और उस पर राजनीति करने का काम किया है।
अतीत से निकलकर एकदम ताजा संदर्भ की बात करें तो हाल ही में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन के क्रम में कांग्रेस अध्यक्षा की तरफ से यहां तक कह डाला गया था कि यह आरपार की लड़ाई का समय है, घर से बाहर निकलो। ऐसा कहना क्या साफ तौर पर हिंसा भड़काने वाली बयानबाजी की श्रेणी में नहीं आता है? फिर कांग्रेस किस मुंह से दिल्ली हिंसा पर सरकार से जवाब मांग रही है।
उत्तर प्रदेश में गत दिसंबर में जो सीएए विरोधी हिंसक प्रदर्शन हुए, उनका कनेक्शन पीएफआई से पाया गया है। जांच एजेंसियों ने यह खुलासा किया था कि इन हिंसक प्रदर्शनों के लिए बाकायदा करोड़ों रुपयों की फंडिंग की गई थी। जिन नामचीन लोगों के खातों में पैसा जमा किया गया था, उनमें से कुछ दिग्गज कांग्रेसी भी थे। क्या ये सारे तथ्य इंगित नहीं करते कि कांग्रेस सदा से देश में हिंसा व दंगों की एक अपसंस्कृति को चलाती आई है।
केंद्र सरकार से सवाल पूछने का कांग्रेस को ना तो कोई नैतिक अधिकार है ना ही तार्किक आधार। बेहतर होगा, देश भर में सिमटती जा रही कांग्रेस अपने बचे खुचे अस्तित्व पर चिंता करे और भाजपा सरकार पर बेमतलब ही कीचड़ उछालना बंद करे। यह सरकार दिल्ली हिंसा से भी सख्ती से निपटी है और अब इसके दोषियों को दण्डित करवाने की भी इच्छाशक्ति इसमें दिखाई दे रही है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)