पंजाब के कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के मंत्री पद से इस्तीफे के बाद एक बार फिर कांग्रेस पार्टी का संकट सतह पर आ गया है। अब लोग यह अनुमान भी नहीं लगा पा रहे हैं कि राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस पार्टी में शुरू हुए इस इस्तीफा युग का अंत कब होगा। कभी देश के हर गांव-कस्बे तक उपस्थिति दर्ज कराने वाले पार्टी को यह दिन देखने पड़ेंगे, ऐसा किसी ने सोचा नहीं था।
23 मई को आए लोक सभा चुनाव के नतीजों में मिली करारी शिकस्त के सदमे से कांग्रेस पार्टी उबर नहीं पा रही है। राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद पार्टी में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है। यही कारण हे कि एक ओर तमाम कांग्रेसी इस्तीफे दे रहे हैं तो दूसरी ओर बहुत से कांग्रेसी अपने सुरक्षित भविष्य की तलाश में दूसरी पार्टियों का दामन थाम रहे हैं। कर्नाटक, गोवा, तेलंगाना, झारखंड, दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र में कांग्रेसियों के बीच मची भगदड़ इसका ज्वलंत प्रमाण है।
जिन राज्यों में कांग्रेस पार्टी लोकलुभावन वायदे कर सत्ता में आई, वहां भी उसकी लोकप्रियता तेजी से घट रही है। इसका कारण है कि सत्ता मिलते ही कांग्रेसी सरकारें चुनावी वायदों को भूलकर भ्रष्टाचार की मलाई खाने में जुट गईं। इसका ज्वलंत उदाहरण है राजस्थान के श्रीगंगानगर के किसान की आत्महत्या। किसान ने आत्महत्या करने से पहले एक वीडियो रिकॉर्ड किया और दो पेज का सुसाइड नोट भी छोड़ा जिसमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट को आत्महत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया है।
पंजाब में कांग्रेस पार्टी की कलह बहुत पहले से ही है। जमीनी सच्चाई यह है कि पंजाब में कांग्रेस की सरकार न होकर कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार है। यही कारण है कि वे किसी बाहरी व्यक्ति को बरदाश्त नहीं कर पाते हैं। पंजाब जैसी स्थिति राजस्थान में भी है। किसानों की वादाखिलाफी से असंतोष बढ़ रहा है तो दूसरी ओर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच रस्साकशी चरम पर है। महाराष्ट्र में भी विधानसभा चुनाव के पहले पार्टी के वरिष्ठ नेता आपस में ही जोर आजमाइश कर रहे हैं।
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर है। दिल्ली कांग्रेस के प्रभारी पी सी चाको ने प्रदेश कांग्रेस अक्ष्यक्ष शीला दीक्षित द्वारा 14 जिला कांग्रेस कमेटियों के पर्यवेक्षकों और 280 ब्लॉक कांग्रेस कमेटियों के पर्यवेक्षकों की नियुक्ति पर सवाल उठाए हैं। दिल्ली कांग्रेस के तीनों कार्यकारी अध्यक्षों ने भी राहुल गांधी, दिल्ली प्रभारी पीसी चाको और पार्टी महासचिव के सी वेणुगोपाल को पत्र लिखकर कहा है कि यह एकतरफा निर्णय बिना उन्हें बताए लिए गए हैं।
दिल्ली जैसा ही हाल पड़ोसी राज्य हरियाणा में भी है। पार्टी में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर के बीच चल रही राजनीतिक खींचतान से अजीब स्थिति पैदा हो गई है। दोनों नेता एक दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं। कमोबेश यही स्थिति झारखंड में है। प्रदेश के दिग्गज कांग्रेसी नेता प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ अजय कुमार के इस्तीफे के लिए दबाव बनाए हुए हैं।
दरअसल जैसे-जैसे नए कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में विलंब हो रहा है वैसे-वैसे पार्टी में उहापोह की स्थिति बनती जा रही है। पार्टी के पूर्व महासचवि जनार्दन द्विवेदी ने अध्यक्ष के नाम पर पर चर्चा कर रहे नेताओं की टीम की प्रासंगिकता पर ही सवाल उठाया। पार्टी के एक अन्य दिग्गज डॉ. कर्ण सिंह भी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में कार्यसमिति की बैठक बुलाकर बिना देरी किए कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव की आवाज उठा चुके हैं। कमोबेश यही राय पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेताओं की है। लेकिन समस्या यह है कि कांग्रेस पार्टी नेहरू-गांधी परिवार के खोल से बाहर निकलने का साहस नहीं जुटा पा रही है और यही उसके पतन का कारण बन रहा है।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)