पतन की ओर कांग्रेस : बदलाव से पहले बिखराव

आदर्श तिवारी

भारतीय राजनीति में सबसे पुरानी और सबसे अनुभवी पार्टी कांग्रेस आज सबसे बुरे  हालत में है। विगत लोकसभा चुनाव के बाद इस विरासतSonia-Rahul-National-Herald-Case का पतन निरंतर देखने को मिल रहा है। पार्टी को एक के बाद एक चुनावों में मुंह की खानी पड़ रही है। इसके मद्देनजर कांग्रेस ने बड़े उलटफेर का मन बना लिया हैं। जिसका जिक्र अभी कुछ दिनों पहले पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह ने किया था। अटकलें लगाई जा रहीं हैं कि इसी माह के अंत में होने वाले कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में पार्टी की कमान राहुल गाँधी के हाथों सौपं दी जाएगी। राहुल गाँधी को अध्यक्ष बनना अब तय माना जा रहा हैं। परंतु अध्यक्ष पद संभालने से ठीक पहले जो खबरें आ रहीं हैं वो कांग्रेस में राहुल गाँधी की स्वीकार्यता पर सवालियां निशान लगा रहीं हैं। कांग्रेस  के सामने कई चुनौतियाँ मुंह बाए खड़ी हैं। जिससे निपटना पार्टी के लिए आसान नही होगा। हाल में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को फिर से करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। इस विधानसभा चुनाव के बाद से दो बातें निकल कर सामने आई हैं, जो कांग्रेस की दशा और दिशा को बयाँ करने के लिए काफी हैं। पहली बात ये कि कांग्रेस का जनाधार सिकुड़ता जा रहा है तथा  उससे भी बड़ी दूसरी बात यह है कि कांग्रेस बिखर रही है। बगावत के सुर दिन-ब- दिन बढ़ते जा रहें हैं। जिसे सम्हाल पाने में कांग्रेस पूरी तरह से नाकाम हो रही है। पार्टी छोड़ने वालों की एक लंबी फेहरिस्त है। जिसमें सबसे पहले असम में पार्टी के मुख्य कप्तान हेमंत बिस्व शर्मा उसके बाद छत्तीसगढ़ में पार्टी के वरिष्ठ नेता व पहले मुख्यमंत्री अजित जोगी अब महाराष्ट्र के कद्दावर नेता गुरुदास कामत ने कांग्रेस पार्टी से दूरी बना ली है। पार्टी छोड़ने का सिलसिला यहीं समाप्त नही होता, त्रिपुरा से भी कांग्रेस के लिए बुरी खबर आ रही है। वहां पार्टी के  छह विधायकों ने  तृणमूल का दामन थाम लिया है। कुल मिलाकर हम कह सकतें है कि पार्टी इस वक्त विश्वास के संकट से गुजर रही है। जनता के साथ-साथ कांग्रेस के नेताओं का भी पार्टी से मोहभंग होता जा रहा हैं। यह किसी भी संगठन के पतन के संकेत होते हैं। कांग्रेस के बिखरने की वजहों को समझा जाए तो सबसे बड़ी वजह पार्टी नेतृत्व की उदासीनता है। लगातार मिल रही पराजय से कांग्रेस हाशिए पर है। पार्टी के कार्यकताओं और नेताओं को इस बात का अंदाज़ा हो गया है कि पार्टी अब अप्रासंगिक होती जा रही है जिसको लेकर शीर्ष नेतृत्व गंभीर नही है। कांग्रेस शुरू से ही परिवारवाद से ग्रस्त रही है और उसी परम्परा को आगे बढाते हुए एकबार फिर से कमान परिवार के युवराज ही सम्हालने जा रहें हैं। कुछ नेताओं की माने तो राहुल गाँधी के अध्यक्ष बनतें ही पार्टी की दिशा और दशा बदल जाएगी अर्थात पार्टी फिर से खड़ी हो जाएगी किंतु ये नेता महज मुगालते में हैं। उन्हें अपनी स्मरण शक्ति मजबूत करते हुए इस बात पर गौर करना चाहिए कि लोकसभा तथा उसके बाद कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में राहुल ही पार्टी का मुख्य चेहरा थे, जिसे जनता ने सिरे से खारिज कर दिया। दरअसल कांग्रेस का एक बड़ा तबका एक परिवार की चापलूसी कर अपना काम निकालना  चाहता है और पार्टी में बने रहना चाहता है। बहरहाल, भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुकी कांग्रेस को अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाना  अब दूर की कौड़ी है। ऐसी स्थिति में अगर कांग्रेस कोई परिवर्तन भी करती है तो उसे कोई लाभ नही होनें वाला है। फिलहाल कांग्रेस को एक नया चेहरा ढूढने की कवायद शुरू कर देनी चाहिए क्योंकि राहुल गाँधी के अध्यक्ष बनने से पहले ही संगठन से जो आवाज राहुल गाँधी के विरोध में आ रहीं है उससे अंदाज़ा लगाया जा सकता  है कि बदलाव से बिखरने का सिलसिला चलता रहेगा।

 (लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के छात्र हैं  )