कांग्रेस हाईकमान यदि अपने रवैये में बदलाव नहीं लाता और पार्टी की कोई वैचारिक दिशा तय करके संगठन की चूलें नहीं कसता है, तो यह तय मानिए कि देश की इस सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी में आंतरिक कलह चलती रहेगी जो इसकी स्थिति को बद से बदतर ही करेगी।
कांग्रेस का आंतरिक संकट जारी है। कर्णाटक, मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान कांग्रेस में तूफ़ान मचा हुआ है। वस्तुतः यह कांग्रेस हाईकमान के लिए आत्मचिंतन का अवसर है। किन्तु लगता नहीं कि ऐसा हो सकेगा। राहुल गांधी अध्यक्ष पद छोड़ चुके हैं, लेकिन पार्टी उनके बयानों से संचालित हो रही है। इसमें आत्मचिंतन की दूर दूर तक कोई गुंजाइश नहीं है। अन्यथा इसके अवसर अनेक बार आये थे।
विचित्र ये है कि कांग्रेस अपने इस आंतरिक संकट का ठीकरा भाजपा पर फोड़ रही है, जबकि इसके लिए वो खुद जिम्मेदार है। परन्तु आत्मचिंतन करने को तैयार नहीं। जाहिर है, कांग्रेस की वर्तमान स्थिति में बदलाव की कोई उम्मीद नहीं दिखती। सब कुछ पहले की तरह चलता रहेगा।
पहले की तरह कांग्रेस हाईकमान की प्रदेश संगठनों से संवादहीनता बनी रहेगी, पहले ही की तरह राहुल गांधी ऊल-जुलूल बयान देते रहेंगे, पहले की ही तरह पार्टी जबरदस्ती उनके बयानों का बचाव करती रहेगी। इससे होने वाले प्रभाव को देखने की जहमत कोई उठाना नहीं चाहता। क्योंकि ऐसा करना हाईकमान की अवमानना मानी जाती है। लेकिन आंतरिक कलह के लिए भाजपा पर आरोप लगाकर वो अपनी कमियां छिपाने में लगी है।
कर्नाटक में कांग्रेस के पूर्व वरिष्ठ मंत्री के नेतृत्व में विधायकों ने बगावत की थी, मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और राजस्थान में सचिन पायलट जैसे दिग्गज नेता ने बगावत की कमान संभाली। इसके लिए भाजपा पर उंगली उठाना समझ से परे है। सच तो यह है कि पार्टी और प्रदेश की सरकार में इन नेताओं की उपेक्षा की जा रही थी।
मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य और राजस्थान में सचिन पायलट अपनी उपेक्षा से आहत थे। मुख्यमंत्री के रूप में कमलनाथ के निशाने पर ज्योतिरादित्य थे। वह उन्हें कमजोर करने में लगे थे, जबकि सिंधिया मध्यप्रदेश में उनसे अधिक लोकप्रिय रहे हैं। मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी वही थे।
कमलनाथ का प्रभाव छिंदवाड़ा के इर्द गिर्द ही सीमित रहा है। लेकिन कांग्रेस द्वारा उनको मुख्यमंत्री बना दिया गया। इसके बाद से ही सिंधिया और कमलनाथ के बीच तनाव था। लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। परिणामतः अपनी उपेक्षा से तंग आकर सिंधिया ने भाजपा में आने का निर्णय किया।
यही नजारा राजस्थान में था। यहां सचिन पायलट उपेक्षा झेल रहे थे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत उन्हें अलग थलग रखने का प्रयास कर रहे थे। ऐसे में इतने समय तक सचिन पायलट का धैर्य रखना ही महत्वपूर्ण था। मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान की समस्या के प्रति भी कांग्रेस हाईकमान लापरवाह बना रहा। इसी का परिणाम सामने आ रहा है।
कांग्रेस हाईकमान को केवल इन तात्कालिक प्रसंगों पर ही विचार नहीं करना होगा बल्कि कुछ पहले की घटनाओं पर भी ध्यान देना होगा। प्रश्न केवल संख्याबल का नहीं है। चुनावी राजनीति में यह स्वभाविक है। लेकिन मुख्य प्रश्न वैचारिक बल का है। भाजपा के भी कभी लोकसभा में मात्र दो सदस्य थे। प्रदेशों में भी उसकी सत्ता नहीं थी। इसके बाद भी उसने वैचारिक बल को कम नहीं होने दिया।
इस धरातल पर वर्तमान कांग्रेस आज कहाँ है। क्या अभी चीन के साथ हुए तनाव में उसके विचार भारतीय जनभावना के अनुरूप थे। जब पार्टी लाइन से ऊपर उठकर उसे सरकार का समर्थन करना चाहिए थे। विपक्ष की अनेक क्षेत्रीय पार्टियां ऐसा कर रही थीं। लेकिन राहुल गांधी चीन को नहीं, अपनी सरकार को ललकार रहे थे। क्या भारत की जमीन पर कब्जा करने वाला उनका बयान चीन का मंसूबा नहीं बढ़ा रहा था।
पिछले लोकसभा चुनाव के बहुत पहले राहुल गांधी ने राफेल और ‘चौकीदार चोर है’ को सबसे बड़ा मुद्दा बनाने का प्रयास किया था। वह प्रधानमंत्री के लिए इस प्रकार के नारे लगवा रहे थे। इसका क्या परिणाम हुआ, यह सबके सामने है। कांग्रेस को ऐसे मसलों पर आत्मचिंतन करने की आवश्यकता थी। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। कोरोना काल में भी कांग्रेस कोई वैचारिक सन्देश नहीं दे सकी।
इन सबके कारण कांग्रेस में निराशा का माहौल कायम हुआ। कर्णाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान प्रकरण इसी के प्रमाण हैं। राजस्थान की कांग्रेस सरकार के साथ ही संगठन में भी विवाद चल रहा था। लेकिन हाईकमान को इससे कोई मतलब ही नहीं था।
अशोक गहलोत और सचिन पायलट में जो खींचतान चल रही थी, उसका असर प्रदेश संगठन पर भी पड़ रहा था। अशोक गहलोत प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से सचिन पालयट को हटाने के लिए कटिबद्ध थे। वह अपने वफादार को इस कुर्सी पर बैठाना चाहते थे। सचिन पायलट अध्यक्ष पद छोड़ने को तैयार नहीं थे। बताया जाता है कि वे अध्यक्ष पद पर बने रहने की शर्त पर ही मुख्यमंत्री पद से दावेदारी छोड़ने को तैयार हुए थे।
इसमें संदेह नहीं कि सचिन पायलट ने कांग्रेस की परेशानी बढ़ा दी है। इसीलिए कांग्रेस विधायक दल की बैठक के लिए व्हिप जारी की गई। इसके पहले कांग्रेस को जयपुर में रात ढाई बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस करनी पड़ी जिसमें दिल्ली से जयपुर भेजे गए कांग्रेस रणदीप सुरजेवाला, अजय माकन और राज्य कांग्रेस प्रभारी अविनाश पाण्डेय ने बहुमत का दावा किया था। सचिन पायलट ने दावा किया था कि गहलोत सरकार अल्पमत में है।
कांग्रेस हाईकमान यदि अपने रवैये में बदलाव नहीं लाता और पार्टी की कोई वैचारिक दिशा तय करके संगठन की चूलें नहीं कसता है, तो यह तय मानिए कि देश की इस सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी में आंतरिक कलह चलती रहेगी जो इसकी स्थिति को बद से बदतर ही करेगी।
फीचर फोटो साभार : IndiaTVNews
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)