भले ही कांग्रेस पार्टी सलमान खुर्शीद के बयान को उनकी “निजी राय” करार दे रही हो, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि सलमान खुर्शीद ने सच स्वीकारने का साहस दिखाया है। कांग्रेस शुरू से ही दंगों की राजनीति करती रही है। ऐसे में, यदि कांग्रेस अपनी सरकारों द्वारा कराए गए हजारों दंगों और लाखों बेगुनाहों के कत्ल के लिए माफी मांगती, तो यह न सिर्फ देश की धर्मनिरेपक्षता बल्कि राजनीतिक प्रणाली को भी नई दिशा देने वाला कदम साबित होता; लेकिन कांग्रेस ऐसा कभी नहीं करेगी, क्योंकि उसकी नींव ही बेगुनाहों की लाशों पर पड़ी है।
सलमान खुर्शीद के बयान से किनारा करने वाली कांग्रेस पार्टी क्या यह कहेगी कि हाशिमपुरा, मलियाना, मेरठ, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, भागलपुर, अलीगढ़ जैसे हजारों दंगे कांग्रेस पार्टी के शासन काल में नहीं हुए थे? जो कांग्रेसी 2002 के गुजरात दंगों के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कहते रहे हैं, वही लोग कांग्रेस शासित राज्यों में हुए सांप्रदायिक दंगों के लिए किस आधार पर वहां के मुख्यमंत्रियों को क्लीन चिट दे देते हैं?
स्पष्ट है, कांग्रेस लाशों की सीढ़ी बनाकर राजनीति करती रही है, लेकिन बड़ी चालाकी से इसका आरोप विरोधियों पर मढ़ देती थी। सौभाग्य से उसकी चाल को जनता समझ गई है, इसीलिए देश के हर गांव-कस्बे में मौजूदगी दर्ज कराने वाली कांग्रेस पार्टी आज अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है।
सलमान खुर्शीद के कबूलनामे को उनकी निजी राय बताने वाली कांग्रेस क्या यह बताएगी कि उसके शासन काल में जो हजारों दंगे हुए उनमें कितने दंगों के दोषियों को सजा मिली? कुछेक अपवादों को छोड़ दें, तो कांग्रेस प्रायोजित किसी भी दंगे में दोषियों को सजा नहीं मिली। हर दंगे के बाद कांग्रेसी सरकारें पीड़ितों को मलहम लगाने और आरोपियों को अप्रत्यक्ष प्रोत्साहन देने का काम करती रहीं ताकि वोट बैंक की राजनीति पर आंच न आए। यदि कांग्रेसी सरकारें दंगों के दोषियों को सजा दिलाई होतीं, तो अगले दंगों की राह बंद हो जाती।
देश विभाजन के दौरान लाखों हिंदुओ-सिखों के कत्लेआम और लाखों महिलाओं के चीरहरण के लिए क्या नेहरू की सत्ता लोभी राजनीति जिम्मेदार नहीं थी? इसके बावजूद चाचा नेहरू को मुक्तिदाता बना दिया गया। इसी तरह कौन नहीं जानता कि 1984 में दिल्ली में हजारों सिखों को गाजर-मूली की तरह काट डाला गया था। इस दौरान कांग्रेसी नेताओं ने हिंसक भीड़ का नेतृत्व किया था और कांग्रेस सरकार के संरक्षण में सिखों का कत्लेआम हुआ। आखिर इस मामले में सबूत होने के बावजूद दोषियों को सजा क्यों नहीं मिली?
सलमान खुर्शीद के बयान से किनारा करने वाली कांग्रेस पार्टी अपनी पैदाइश से ही “बांटो और राज करो” नीति पर सत्ता हासिल करती रही है। ऐसे में, वह दंगों के दोषियों को सजा दिलवाने की आत्मघाती भूल क्यों करती। अपने पेट पर कोई लात मारता है क्या? यही कारण है कि कांग्रेसी काल में दंगे कभी नहीं थमे। कांग्रेस के लिए सत्ता साधन नहीं, साध्य है और इसके लिए वह कुछ भी कर सकती है। कांग्रेस की बांटो और राज करो नीति का एक प्रमाण हाल में देखने को मिला जब मक्का मस्जिद विस्फोट मामले में विशेष एनआईए अदालत ने अपने फैसले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया। स्पष्ट हुआ कि कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टीकरण की आड़े में हिंदू धर्म को अपमानित करने की साजिश भी रची थी।
सलमान खुर्शीद के कबूलनामे ने कांग्रेस को एक राह दिखाई है कि वह अपनी गलतियों को स्वीकार करे और देश से माफी मांगे। कोमा की ओर बढ़ रही कांग्रेस केवल मोदी विरोध के सहारे कभी सत्ता हासिल नहीं कर पाएगी। वक्त की मांग है कि वह लाखों बेगुनाहों के कत्ल के लिए माफी मांगे और प्रायश्चित करे। इसी में उसकी भलाई है।
(ये लेखिका के निजी विचार हैं।)