कांग्रेस की ओर से ऐलान किया गया है कि अगर वह सत्ता में आती है तो तीन तलाक क़ानून को खत्म कर देगी। ये उसी पार्टी के बोल हैं जो खुद को मुस्लिमों का हितैषी बताती है। तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के लिए कैसे जहर बन बैठा था, इससे हर कोई वाकिफ है। इस कुप्रथा का आतंक ऐसा है कि एक मुस्लिम लड़की शादी के सालों गुजरने, दो बच्चे होने के बाद भी अपने पति पर जोर से बोल नहीं सकती। जैसे शादी करके उसने खुद को पिंजरे में कैद कर लिया हो।
कहते हैं कि जब क्लास का कोई एक बच्चा ज्यादा होशियार होता है तो पूरी क्लास उसके खिलाफ एक साथ हो जाती है। इन दिनों भारतीय सियासी गलियारों में भाजपा सरकार के साथ यही हो रहा है। सत्तारूढ़ होने के साथ ही इस सरकार द्वारा जनहित के लिए उठाए गए क़दमों का विपक्ष द्वारा आँख मूंदकर विरोध करने की कवायद जारी है। इसी कर्म में तीन तलाक क़ानून के मुद्दे पर कांग्रेस ने अब जो मंशा प्रकट की है, वो हैरानी में डालने वाला है।
कांग्रेस की ओर से ऐलान किया गया है कि अगर वह सत्ता में आती है तो तीन तलाक क़ानून को खत्म कर देगी। ये उसी पार्टी के बोल हैं जो खुद को मुस्लिमों का हितैषी बताती है। तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के लिए कैसे जहर बन बैठा था। इससे हर कोई वाकिफ है। कैसे एक मुस्लिम लड़की शादी के 7 साल गुजरने, दो बच्चे होने के बाद भी अपने पति पर जोर से बोल नहीं सकती। जैसे शादी करके उसने खुद को पिंजरे में कैद कर लिया हो।
कोई मुस्लिम भारत में शादी करके महिला को विदेश ले गया, कुछ दिन साथ रखा, लड़की जैसे ही गर्भवती हुई उसे वापस छोड़ गया, कुछ दिन बीते और फोन पर कह दिया तलाक, तलाक, तलाक। ऐसे कई मामलों के सामने आने और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस कुप्रथा को ख़त्म करने के बाद मोदी सरकार तीन तलाक को रोकने वाला क़ानून लाई। लोकसभा में सरकार के पास बहुमत था, सो यह विधेयक पारित हो गया। लेकिन राज्यसभा में विपक्ष ने अबतक इसे पारित नहीं होने दिया है, सो अध्यादेश के जरिये यह क़ानून चल रहा है।
लेकिन अब कांग्रेस ने जिस तरह से सत्ता में आने पर इसे खत्म करने का ऐलान किया है, उसका यही मतलब है कि वो दोबारा से अपने उसी इतिहास को दोहराने का वादा कर रही है। महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देव ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की मौजूदगी में कहा कि अगर लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस सत्ता में आती है तो वो तीन तलाक कानून को खत्म कर देगी। राजीव गांधी ने शाहबानो मामले में जो किया था, कांग्रेस सत्ता में आने पर वही करने का वादा कर रही है।
शाहबानो मामले पर नजर डालें तो 1978 शाहबानो को पांच बच्चों के बाद उनके पति ने तलाक दे दिया। उनके पास कमाई का जरिया नहीं था। इसके लिए वे सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण के लिए भत्ते की मांग करते हुए न्यायालय में पहुँचीं।
सात साल बाद न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए तलाकशुदा महिलाओं को भत्ता देने की व्यवस्था बना दी, लेकिन ये बात कट्टरपंथी मुस्लिमों को हजम नहीं हुई। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसका विरोध शुरू कर दिया जिसके दबाव में आकर 1986 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने संसद में क़ानून लाकर न्यायालय के फैसले को पलट दिया।
1986 के बाद देश में हजारों मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक की प्रताड़ना का शिकार हुई। कोई बच्चों के लिए मजदूरी कर उन्हें पालने लगी, तो किसी ने खुद को मिटा लिया। लेकिन जब तीन तलाक क़ानून मोदी सरकार द्वारा संसद में लाया गया तो एक बार फिर मुस्लिम महिलाओं के मन में अन्याय और अत्याचार से मुक्ति की उम्मीद जगी।
उम्मीद थी कि कांग्रेस इसका स्वागत करेगी लेकिन कांग्रेस ने न केवल सदन में इसका विरोध किया बल्कि अब सत्ता में आने पर इसे खत्म करने की ही बात कर रही है। कांग्रेस के इस रुख से जाहिर है कि राजीव गांधी के समय मुस्लिम तुष्टिकरण को लेकर कुछ भी करने की जो सोच कांग्रेस की थी, उसमें दशकों बाद भी कोई परिवर्तन नहीं आया है। कांग्रेस के लिए मुस्लिम महिलाओं के हितों से अधिक जरूरी अपने सकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ हैं, जिनको साधने के लिए वो तीन तलाक को ख़त्म करने की बात कर रही है।
(लेखिका पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)