शुरूआती घोषणा में ही कहा गया था कि मार्च 2018 से पहले की अवधि के किसानों पर यह लागू नहीं होगी जिससे किसानों के एक बड़े वर्ग के कर्जमाफी से वंचित रहने की बात सामने आई थी। अब मध्यप्रदेश के खरगोन जिले से इस कर्जमाफी की विचित्र तस्वीर सामने आई है। यहां महीनों से कर्जमाफी की बेसब्री से बाट जोह रहे किसानों तब दंग रह गए जब उन्हें पता चला कि किसीके 25 तो किसीके 300 रुपए माफ हुए हैं।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की नवगठित सरकार अपने गठन के बाद से एक के बाद एक नकारात्मक कारणों से चर्चा में है। अब कर्जमाफी को ही लीजिये। मप्र में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने किसानों को लुभाने के लिए कर्जमाफी का लुभावना वादा किया था। जब कांग्रेस जीतकर सत्ता में आ गई तो वादे पूरे करने की सूची में कर्जमाफी सबसे शीर्ष क्रम पर थी। तभी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का बयान सोशल मीडिया पर वायरल हुआ कि कर्जमाफी जरूरी नहीं है। ऐसे में सोशल मीडिया पर कांग्रेस ना केवल मखौल बनना शुरू हुआ, बल्कि कर्जमाफी को लेकर एक अप्रत्यक्ष दबाव भी कांग्रेस पर बनने लगा।
आखिर कमलनाथ को कर्जमाफी की घोषणा करना ही पड़ी। कर्जमाफी का ऐलान करके कांग्रेस ने खुद की पीठ भले ही थपथपा ली हो और फौरी तौर पर सुर्खियां बटोर ली हों, लेकिन यह घोषणा उसके लिए मुसीबत बन गई है। जब मीडिया ने इस कर्जमाफी की पड़ताल की तो पता चला कि यह कर्जमाफी तो छलावा साबित हो रही है। इसमें बड़ी संख्या में किसान लाभ पाने से वंचित रह गए हैं।
शुरूआती घोषणा में ही कहा गया था कि मार्च 2018 से पहले की अवधि के किसानों पर यह लागू नहीं होगी जिससे किसानों के एक बड़े वर्ग के कर्जमाफी से वंचित रहने की बात सामने आई थी। अब मध्यप्रदेश के खरगोन जिले से इस कर्जमाफी की विचित्र तस्वीर सामने आई है। यहां महीनों से कर्जमाफी की बेसब्री से बाट जोह रहे किसानों तब दंग रह गए जब उन्हें पता चला कि किसीके 25 तो किसीके 300 रुपए माफ हुए हैं। यह सब आधिकारिक सूची में दर्शाया गया था।
किसानों को प्रशासन का यह गणित समझ में नहीं आया कि भला किस मान से यह कर्जमाफी की गयी है। जब उन्होंने जानना चाहा तो उन्हें वही बेतुका जवाब दिया गया कि मार्च 2018 के पहले लिए गए कर्ज को माफ किया गया है। लेकिन सवाल तो यह उठता है कि यदि उक्त अवधि को भी माना जाए तो 25 रुपए का कर्ज माफ़ करने का क्या तुक है।
खरगोन जिले के जैतपुर के किसान प्रकाश ने 25 रुपए माफ किए जाने पर खुद को ठगा हुआ महसूस किया। इसी प्रकार ग्राम सिकंदरापुरा के किसान अमित के महज 300 रुपए माफ हुए। अमित पर 30 हज़ार रुपए का कर्ज था, यदि माफ होना था तो इतनी ही राशि का होना था। 300 रुपए घटाकर 29 हज़ार 700 रुपए चुकाने की तलवार अभी भी उसके सिर पर लटकी हुई है।
तमाम किसान कर्जमाफी के नाम पर किए गए इस मजा़क से बेहद आहत हैं और अब उनमें भारी आक्रोश है। किसान राजेंद्र सिंह ने 2 लाख 20 हज़ार का कर्ज लिया लेकिन उनके केवल 300 रुपए ही माफ हुए। अब शेष 2 लाख 19 हज़ार 700 रुपए के लिए वह भला किसे जिम्मेदार ठहराएं, उसे भी नहीं पता। स्थानीय समाचार-पत्रों ने इस संबंध में समाचार प्रकाशित किए और जिम्मेदार अधिकारियों से बातें की तो अधिकारियों ने गोलमोल जवाब देकर पल्ला झाड़ लिया।
कांग्रेस का चुनावी स्टंट ‘कर्जमाफी’
कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में चुनावी स्टंट के रूप में कर्जमाफी की आड़ में किसानों को जिस प्रकार से भरमाया है, इसका खामियाजा अब किसानों को प्रत्यक्ष रूप से भुगतना पड़ रहा है। कर्जमाफी तो एक उदाहरण है, कांग्रेस ने मध्यप्रदेश में काफी कुछ बदल डाला है जो कि राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से प्रेरित लगता है। नौकरशाही में बड़े स्तर पर बदलाव, पूर्ववर्ती सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं में बाधा डालना, कुछ योजनाएं बंद करना यही दर्शाता है कि कांग्रेस सरकार नवाचार करने में नहीं, बल्कि प्रतिशोध की राजनीति करने में अधिक विश्वास रखती है।
कर्जमाफी नहीं है समाधान
अर्थशास्त्र के बड़े जानकार लोग भी कर्जमाफी को कोई अच्छा कदम नहीं बताते हैं। कुछ विशेष हालातों को छोड़ दें तो कर्जमाफी करने से कभी भी कृषि और कृषकों का भला नहीं हो सकता। किसानों का भला करने के लिए अलग तरह की योजनाओं की आवश्यकता है, जिसका प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना एक आदर्श उदाहरण है कि किस प्रकार से नष्ट होने वाली फसलों का मुआवजा पाकर संबंधित किसान लाभान्वित हो सकता है। यह एक व्यवस्था की बात है।
बीमा एक सुनियोजित तंत्र है, जिसमें केवल बीमित वस्तु के नुकसान की पूरी भरपाई का प्रावधान होता है। कर्जमाफी तो महज एक प्रलोभन है। अगर नीयत साफ़ न हो तो इसमें अनेक लूप होल्स होते हैं, जिनका फायदा फायदा उठाकर किसानों को छला जा सकता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)