कर्नल पुरोहित पर जो आरोप लगाए गए, वह सही साबित होते तो उन्हें सात वर्ष की सजा मिलती। लेकिन वह बिना सुनवाई के नौ वर्षो से जेल में बंद थे। ऐसे में उन्हें जमानत देकर कोर्ट ने न्याय किया है। इसका सम्मान होना चाहिए था। लेकिन कांग्रेस ने इस पर भी विरोध जताया। तंज कसे। बहुत दिन बाद दिग्विजय सिंह को बोलने का प्रिय विषय मिला। इस तरह वह अपनी निराशा को ढँकने का प्रयास कर रहे थे। उन्होंने जो भगवा आतंकवाद शब्द बनाया था, वह निरर्थक साबित होने की ओर बढ़ रहा था।
भगवा आतंकवाद शब्द के प्रणेता दिग्विजय सिंह, पी चिदम्बरम और उनके साथी निराश हैं। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के बाद कर्नल श्रीकांत पुरोहित को कोर्ट से जमानत मिल गई। यह अंतिम फैसला नहीं है। लेकिन क्या यह कम है कि सुप्रीम कोर्ट ने अब तक पुख्ता प्रमाण न मिलने की ओर खासतौर पर ध्यान दिया। नौ वर्षो बाद भी जांच एजेंसियां एकरूपता से रिपोर्ट तक नही बना सकीं। इसका मतलब है कि अब तक भगवा आतंकवाद को प्रमाणित करने वाले सबूत ही नही दिखाई दिए।
मूल प्रश्न अपनी जगह है। जब भगवा या हिन्दू आतंकवाद जैसा कुछ होता ही नहीं है, तब उसके प्रमाण कैसे मिलते। अपराध, अराजकता तो होती है। लेकिन आतंकवाद का जन्म विचारधारा से होता है। भगवा चिंतन में ऐसी कोई विचारधारा के लिए कोई जगह ही नही होती। यही कारण है कि जिन्हें संप्रग सरकार ने भगवा आतंकवाद के प्रतीक रूप में बंदी बना कर रखा था, उनके खिलाफ कायदे से आरोप पत्र ही नही बनाया जा सका। कोर्ट ने इन सभी तथ्यों पर विचार किया।
कर्नल पुरोहित पर जो आरोप लगाए गए, वह सही साबित होते तो उन्हें सात वर्ष की सजा मिलती। लेकिन वह बिना सुनवाई के नौ वर्षो से जेल में बंद थे। ऐसे में उन्हें जमानत देकर कोर्ट ने न्याय किया है। इसका सम्मान होना चाहिए था। लेकिन कांग्रेस ने इस पर भी विरोध जताया। तंज कसे। बहुत दिन बाद दिग्विजय सिंह को बोलने का प्रिय विषय मिला। इस तरह वह अपनी निराशा को ढँकने का प्रयास कर रहे थे। उन्होंने जो भगवा आतंकवाद शब्द बनाया था, वह निरर्थक साबित होने की ओर बढ़ रहा था।
पी चिदम्बरम ने बतौर गृहमंत्री इस शब्द का उल्लेख किया था। अधिकारियों की बैठक में उन्होंने भगवा आतंकवाद की ओर ध्यान देने को कहा था। समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट ने इसका मौका दिया। कुछ बैठको के आधार पर कई लोग गिरफ्तार किए गए। भगवा आतंकवाद शब्द चलाया गया। पुरोहित के वकील हरीश साल्वे का यह कहना गलत नही लगता कि उनके मुवक्किल राजनीतिक दुष्चक्र के शिकार हुए हैं।
उस समय भी चर्चा थी कि यह शब्द कांग्रेस द्वारा वोटबैंक की राजनीति के हिसाब से चलाया गया था, जिससे विश्व मे भारत की प्रतिष्ठा पर भी प्रश्न उठाने वालों को मौका मिला। पाकिस्तान कहने लगा कि आप पहले हिन्दू आतंकवाद रोकिये। इस तरह संप्रग ने तो कोई कसर नही छोड़ी थी, लेकिन भारत की विश्व शांति, अहिंसा वाली विरासत इतनी हल्की नही थी कि किसीके इन आघातों से उसपर फर्क पड़े। पाकिस्तान जैसे मुल्को को छोड़ कर किसी ने इस पर ध्यान नही दिया। बहरहाल, अब धीरे-धीरे कांग्रेस नीत संप्रग सरकार की साजिशों की कलई खुलने लगी है। अब उम्मीद कोर्ट से है।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)