‘राहुल गांधी का मंदिर दर्शन कार्यक्रम अगले चुनाव तक के लिए स्थगित हो चुका है!’

अक्सर जालीदार टोपी पहनकर अपने को मुसलमानों का रहनुमा दिखाने वाले कांग्रेसी नेताओं का मंदिर प्रेम अकारण नहीं है। दरअसल 2014 के लोक सभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने मीडिया द्वारा बनाए गए मुस्‍लिम वोट बैंक के मिथक को ध्‍वस्‍त कर दिया। इससे सहमी कांग्रेस अब रोजा-इफ्तार देने से भी कतराने लगी है।

पांच राज्‍यों में विधानसभा चुनावों के खत्‍म होने के बाद बात उठ रही कि क्या कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी का मंदिर दर्शन कार्यक्रम अगले चुनाव तक के लिए स्‍थगित हो चुका है। राहुल गांधी का मंदिर प्रेम नया नहीं है। गुजरात और कर्नाटक विधान सभा चुनाव के दौरान भी राहुल गांधी का मंदिर प्रेम इसी तरह उमड़ा था। राहुल गांधी के मंदिर दर्शन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे उन्‍हीं राज्‍यों में मंदिर जाते हैं जहां चुनाव होने वाले होते हैं।

दूसरे, चुनाव खत्‍म होते ही उनका मंदिर दर्शन कार्यक्रम बंद हो जाता है। स्‍पष्‍ट है, राहुल गांधी का मंदिर प्रेम कांग्रेस की मुस्‍लिमपरस्‍त छवि को तोड़ने और हिंदू वोटों के बंटवारे के लिए होता है। यहां मध्‍य प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कमलनाथ के वायरल हुए वीडियो का उल्‍लेख प्रासंगिक है जिसमें उन्‍होंने कहा था – मुसलमानों की 90 प्रतिशत वोटिंग और हिंदुओं द्वारा बड़े पैमाने पर नोटा का इस्‍तेमाल कांग्रेस की जीत के लिए जरूरी है।

दरअसल 2014 के लोक सभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने मीडिया द्वारा बनाए गए मुस्‍लिम वोट बैंक के मिथक को ध्‍वस्‍त कर दिया। इससे सहमी कांग्रेस अब रोजा-इफ्तार देने से भी कतराने लगी है। भले ही कांग्रेस पार्टी चुनाव अभियान के दौरान मंदिर दर्शन कार्यक्रम चलाती हो लेकिन चुनाव बीतते ही वह अपने असली रंग में आ जाती है। इसका ज्‍वलंत उदाहरण है मध्‍य प्रदेश में राष्‍ट्र गान वंदे मातरम पर रोक की कोशिश।

गौरतलब है कि मध्‍य प्रदेश विधानसभा में हर साल एक जनवरी को और हर महीने की पहली तारीख को वंदे मातरम गाने की परंपरा पिछले 13 साल से जारी है। कमलनाथ सरकार ने जैसे ही वंदे मातरम पर प्रतिबंध लगाया वैसे ही इसका तीखा विरोध शुरू हो गया। कुछ महीने बाद होने वाले लोक सभा चुनाव को देखते हुए कमलनाथ सरकार ने अपने फैसले को पलट दिया। इसकी पूरी संभावना है कि यदि आगामी लोक सभा चुनाव न होने होते तो कांग्रेस वंदे मातरम पर नरम रवैया कभी न अपनाती। इतना ही नहीं, वह मुस्‍लिम आरक्षण के अपने पुराने वादे पर भी अमल करती। 

भले ही मध्‍य प्रदेश सरकार ने वंदे मातरम पर अपने कदम वापस खीच लिए हों, लेकिन भ्रष्‍ट कांग्रेसी सरकारों की असलियत सामने आने लगी है। कांग्रेसी सरकारें दरअसल भ्रष्‍ट नेताओं-नौकरशाहों-ठेकेदारों की तिकड़ी के बल पर चलती हैं। इसे मध्‍य प्रदेश, छत्‍तीसगढ़ और राजस्‍थान में यूरिया की किल्‍लत से समझा जा सकता है।

पिछले साल 15 दिसंबर तक मध्य प्रदेश में 3.81 लाख टन यूरिया पहुंची थी और वहां यूरिया की कोई किल्लत नहीं हुई। इस साल 15 दिसंबर तक 4.5 लाख टन यूरिया मध्य‍ प्रदेश पहुंच चुकी है, इसके बावजूद यूरिया के लिए मारामारी मची है। कमोबेश यही स्‍थिति राजस्‍थान और छत्‍तीसगढ़ की भी है।

सबसे बड़ी बात यह है कि जिस यूरिया के लिए किसान कई-कई दिन से लाइन में खड़े होकर इंतजार कर रहे हैं, वह ब्‍लैक में आसानी से मिल रही है। स्‍पष्‍ट है, यूरिया की कमी नहीं है कमी है तो उसके वितरण तंत्र की जिस पर भ्रष्‍ट तत्‍वों ने आधिपत्‍य जमा लिया है।

कांग्रेस के लिए सत्‍ता साधन न होकर साध्‍य रही है। यही कारण है कि आम जनता की जरूरतें अधूरी ही रह जाती हैं। इसे गांधी परिवार की परंपरागत लोक सभा सीट अमेठी के सरकारी अस्‍पताल में सीटी स्‍कैन मशीन की कमी से समझा जा सकता है। आजादी के बाद पहली बार पिछले दिनों अमेठी के सरकारी अस्‍पताल को सिटी स्‍कैन सेंटर उपलब्‍ध हुआ है, वह भी केंद्रीय मंत्री स्‍मृति ईरानी के सहयोग से। स्पष्ट है कि जो कांग्रेस सरकार अपने परंपरागत सीट की जरूरतों का ध्‍यान नहीं रख सकती, वह देश भर की जनता की भावनाओं पर कैसे खरा उतरेगी?

भले ही कांग्रेस पार्टी गरीबी, बेकारी, मिटाने और रोजगार देने के नारे लगाती हो लेकिन सच्‍चाई यह है कि कांग्रेस पार्टी गरीबी, बेकारी को सीढ़ी बनाकर सत्‍ता हासिल करती रही है। यही कारण है कि आजादी के सत्‍तर साल बाद भी गरीबी, बेकारी, बीमारी जैसे अनगिनत चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस सत्‍ता के लिए किसी भी सीमा तक जा सकती है। चाहे पंजाब का उग्रवाद हो या पूर्वोत्‍तर का अलगावाद।

इन सबकी जड़ें कांग्रेस की “बांटो और राज करो” की नीति में निहित हैं। यहां पूर्वोत्‍तर का उल्लेख प्रासंगिक है। पूर्वोत्‍तर में उग्रवाद, अलगाववाद कांग्रेस की सत्‍ता लोभी राजनीति का नतीजा है। अपने हित के लिए कांग्रेस ने यहां के कबीलों में आपसी संघर्ष को बढ़ावा दिया और चंपुओं को सत्‍ता दिलाने के नाम पर जमकर वसूली की। इसका नतीजा यह हुआ कि सामरिक दृष्‍टि से महत्‍वपूर्ण होते हुए भी यह इलाका बिजली, सड़क, रेल, स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाओं में पिछड़ा बना रहा है।  

समग्रत: राहुल गांधी को भारतीय राजनीति में सशक्‍त विकल्‍प प्रस्‍तुत करना है तो उन्‍हें जनता के मौसमी रहनुमा बनने और बांटो और राज करो जैसी अल्‍पकालिक नीतियों से आगे बढ़कर दूरगामी नीति अपनानी चाहिए। लेकिन सत्‍ता को साधन न मानकर साध्‍य मानने वाली कांग्रेस पार्टी से ऐसी उम्‍मीद पालना बेमानी ही होगी।

(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)