जो कांग्रेस आज किसानों के मुद्दे पर साढ़े तीन साल पुरानी मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करती रहती है, वह पहले यह तो बताए कि उसने साठ सालों में किसानों का कितना भला किया? खेती मानसून का जुआ क्यों बनी हुई है? हर गली-कूचे में मोबाइल-बाइक शोरूम वाले भारत में औसतन 435 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में एक मंडी क्यों है? किसानों को बिचौलियों से मुक्ति दिलाने के लिए राजग सरकार ने 2003 में जो मॉडल एपीएमसी कानून बनाया था, उसे यूपीए सरकार 10 साल दबाए क्यों बैठी रही?
किसानों को खुशहाल बनाने के लिए मोदी सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र को अधिक संसाधनों के आवंटन, सिंचित रकबे में बढ़ोत्तरी, हर गांव तक बिजली पहुंचाने, मिट्टी का स्वास्थ्य सुधारने, खाद्य प्रसंस्कारण को बढ़ावा देने और उर्वरक सब्सिडी को तर्कसंगत बनाने जैसे ठोस जमीनी उपायों के बावजूद किसानों की स्थिति में सुधार के लिए अभी और प्रयास की आवश्यकता महसूस हो रही है तो इसका कारण कांग्रेस द्वारा छोड़ी गई विरासत है। किसानों की बदहाली पर मोदी सरकार को घेरने वाली कांग्रेस को चाहिए कि पहले वह अपने गिरेबां में झांके।
आजादी के बाद हरित क्रांति, श्वेत क्रांति के रूप में दूरगामी सुधार शुरू किए गए जिनका परिणाम सकारात्मक रहा लेकिन आगे चलकर कांग्रेसी सरकारों ने इसमें समय के अनुसार बदलाव नहीं लाया। दरअसल बाद के दौर में कांग्रेसी सरकारें भ्रष्टाचार में डूबकर वोट बैंक की राजनीति करने लगी जिससे दूरगामी कृषि विकास की ओर उनका ध्यान ही नहीं गया। हां, इस दौरान कर्जमाफी, मुफ्त में बिजली-पानी जैसे कामचलाऊं उपाय जरूर किए गए ताकि किसानों में असंतोष न पनपे।
इस दौरान ग्रामीण सड़क, सभी गांवों तक बिजली पहुंचाने, कोल्ड चेन, भंडारण-प्रसंस्करण-विपणन ढांचे का निर्माण जैसे कार्य उपेक्षित रहे। किसानों को न तो उन्नत तकनीक मुहैया कराई गई और न ही उन्हें आधुनिक विपणन ढांचे से जोड़ा गया। उदारीकरण के दौर में यह खाई और चौड़ी हुई। इसी का नतीजा रहा कि ऊंची विकास दर के बावजूद किसानों की आत्महत्याओं में अभूतपूर्व तेजी आई। इस दौर में जहां उद्योग-व्यापार को सुगम बनाने के लिए सिंगल विंडो सिस्टम, ई-कॉमर्स जैसे सैकड़ों उपाय किए गए, वहीं कृषि उपजों का कारोबार “जहां का तहां” वाली स्थिति में बना रहा।
कृषि उपजों के कारोबार में सबसे बड़ी बाधा 1953 में बना एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी (एपीएमसी) कानून है। इसके तहत किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए बिचौलियों (आढ़तियों) को सहारा लेना ही होगा। इस कानून के कारण न तो नए व्यापारियों को आसानी से लाइसेंस मिलते हैं और न ही किसी नई मंडी का निर्माण हो पाता है। आज जिस देश में हर गली-कूचे में मोबाईल व बाइक शोरूम खुले हैं, उसी देश में औसतन 435 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में एक मंडी है। इसके कारण किसानों को अपनी उपज नजदीकी साहूकारों-महाजनों को औने-पौने दामों पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
जहां 1950-51 में उपभोक्ता द्वारा चुकाई गई कीमत का 89 फीसदी हिस्सा किसानों तक पहुंचता था, वहीं आज यह अनुपात घटकर 34 फीसदी रह गया है। आज उपभोक्ता द्वारा चुकाई गई कीमत का 66 फीसदी उन नकली किसानों (बिचौलियों) की जेब में जा रहा है जो कभी खेत में गए ही नहीं। यदि पूरे देश के पैमाने पर देखें तो यह रकम सालाना 20 लाख करोड़ रूपये आएगी। किसानों के मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरने वाले कांग्रेसी यह बताएं कि एपीएमसी कानून किसकी देन है और बदलते समय के अनुसार इसमें प्रगतिशील सुधार क्यों नहीं किए गए। राजग सरकार ने 2003 में एपीएमसी कानून में संशोधन कर मॉडल एपीएमसी कानून बनाया था, लेकिन आढ़तियों की मजबूत लॉबी के दबाव में यूपीए सरकार ने उसे लागू नहीं किया।
विपणन सुधार न होने के कारण घरेलू बाजार के साथ-साथ विदेशी बाजारों में भी भारतीय कृषि उत्पाद अपनी भरपूर मौजूदगी दर्ज नहीं करा पा रहे हैं। इसे आलू के उदाहरण से समझा जा सकता है। कम लागत पर पैदा होने के बावजूद महंगी ढुलाई के कारण नीदरलैंड के फल-सब्जी आयात में भारत की हिस्सेदारी महज 3 फीसदी है जबकि सुदूर लैटिन अमेरिकी देश चिली की हिसेदारी 23 फीसदी है।
यदि कांग्रेसी सरकारें कृषि उपजों के विपणन नीति में सुधार करतीं तो आज नीदरलैंड समेत कई यूरोपीय देशों में भारतीय आलू का डंका बज रहा होता। इससे स्पष्ट है देश के आलू किसानों की बदहाली के लिए कांग्रेसी नीतियां जिम्मेदार हैं। कमोबेश यही स्थिति दूसरे कृषि उत्पादों की भी है। अब मोदी सरकार कृषिगत आधारभूत ढांचे का निर्माण कर रही है तो कांग्रेस विरोध कर रही है ताकि बिचौलिया प्रधान व्यवस्था बनी रहे।
आजादी के साठ साल बाद भी भारतीय खेती मानसून का जुआ और पिछड़ेपन का शिकार बनी है तो इसके लिए कांग्रेस की भ्रष्ट सरकारें जिम्मेदार हैं। दूसरी ओर इस दौरान दुनिया भर के देश कृषि में प्रगतिशील सुधार और नई तकनीक अपनाकर अपने किसानों को खुशहाल बना चुके हैं। उदाहरण के लिए इजराइल उन्नत तकनीक के बल पर दुनिया के दस बड़े उत्पादकों में जगह बनाने में कामयाब रहा है। यहां पिछले बीस साल में कृषि उत्पादन में सालाना 26 फीसदी की दर से बढ़ोत्तरी हो रही है।
समुद्र से घिरे और पहाड़ी धरातल वाले जापान में महज 12 फीसदी जमीन कृषि योग्य है। जापान ने अपनी इस कमी की भरपाई समुद्री उत्पादों के कारोबार से कर ली। आज जापान समुद्री खाद्य उत्पादों का सबसे बड़ा निर्यातक है। जैविक खेती को प्रोत्साहन देकर आस्ट्रेलिया ने अपने किसानों को सबल बनाया। आज यहां का किसान प्रति एकड़ चार लाख रूपये का मुनाफा कमा रहा है।
यूरोप में किसानों को सीधे बाजार से जोड़ा गया है जिससे उन्हें बाजार का लाभ मिल जाता है। इतना ही नहीं भारत जैसी परिस्थितियों वाले दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में अत्यधिक जनभार के बावजूद खेती फायदे का सौदा है। स्पष्ट है जिस दौर में दुनिया खेती को उन्नत बना रही थी, उस दौर में भारत के गांव अंधेरे में डूबे रहे और खेती मानसून का जुआ बनी रही। स्पष्ट है, किसानों के मुद्दे पर साढ़े तीन साल पुरानी मोदी सरकार को घेरने के बजाए कांग्रेस को अपने साठ सालों का हिसाब देना चाहिए।
(लेखक केन्द्रीय सचिवालय में अधिकारी हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)