जो लोग रमजान की तीन तारीखों पर मतदान का विरोध कर रहे हैं, उन्हें मुस्लिम समाज की जमीनी जानकारी नहीं है, या वह किसी अन्य उद्देश्य से विरोध कर रहे हैं। यह अच्छा है कि अनेक मुसलमान ऐसे विरोध को अनुचित बता रहे हैं। उनके अनुसार भारत के अधिकांश मुसलमान रमजान के दौरान सामान्य रूप से कार्य करते हैं। तभी उनकी जीविका चलती है। मतदान के दिन तो अवकाश रहता है। मतदान में उन्हें कोई मुश्किल नहीं होगी।
एक तरफ संविधान की दुहाई दी जाती है, दूसरी तरफ संवैधानिक संस्थाओं पर प्रहार भी चलता है। नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद विपक्ष का यही नजरिया बन गया है। यदि आरोपों में गंभीरता हो तो उसका संज्ञान लेना अपरिहार्य हो जाता है। लेकिन कई आरोप तो अपनी राजनीतिक कमजोरी को छिपाने के लिए लगाए जा रहे हैं।
इधर आम चुनाव का कार्यक्रम घोषित हुआ, उधर रमजान की अवधि में चुनाव को लेकर हंगामा होने लगा। यह बेतुकी बात थी। लेकिन यह विषय उठाने वालों के दिमाग मे तो शायद कुछ और ही बात रही होगी। एक तो उन्हें लगा होगा कि इस मुद्दे पर वोटबैंक की सियासत हो सकती है, दूसरा यह कि चुनाव में पराजय मिली तो आयोग पर ठीकरा फोड़ने का बहाना रहेगा।
जब एक नेता ने यह विषय उठाया, तो देखते ही देखते होड़ मच गई। सबको लगा कि इस सियासत में अगला बाजी न मार ले जाये। जबकि ऐसी बात करने वाले मुस्लिम समाज का सम्मान नहीं कर रहे थे। क्या वह यह बताने का प्रयास नहीं कर रहे थे कि मुसलमान रमजान के समय कोई कार्य नहीं करते।
सबकी अपनी अपनी जीविका के साधन होते हैं। सभी उसका निर्वाह करते हैं। अनेक बन्धु आवश्यक सेवाओं में होते हैं, वह भी अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं। क्रिकेट मैच होते हैं, लोग घूमने जाते हैं, अपने अपने कार्य करते हैं। ऐसे में रमजान के समय मतदान की बात पर सवाल उठाना गलत है। जबकि चुनाव आयोग ने कह दिया है कि रमजान के शुक्रवार को कहीं भी मतदान नहीं है। इस अधिकृत बयान के बाद विपक्ष को संतुष्ट हो जाना चाहिए था। लेकिन क्या करें, भाजपा और नरेंद्र मोदी से इनकी परेशानी छुपाए नहीं छिपती। ये नेता सुप्रीम कोर्ट, सेना, कैग सभी पर प्रहार कर चुके हैं।
ये अपने को ईमानदार और दूसरे को चोर बताते घूम रहे हैं। सभी लोग गलत हैं, केवल यही सही हैं। आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह और विधायक अमानतुल्लाह खान ने कहा कि रमजान में मुस्लिम वोट कम होगा और इसका फायदा भाजपा को मिलेगा।
ऐसे ही विचार तृणमूल कांग्रेस के फिरहाद हाकिम ने व्यक्त किये हैं। उनका कहना है कि बिहार और बंगाल में सात चरणों के चुनाव उनके लिए मुश्किल होंगे, जो रमजान के महीने में रोजा रखेंगे। इन तीन राज्यों में अल्पसंख्यकों की संख्या ज्यादा है। भाजपा नहीं चाहती कि मुस्लिम मतदान न करें। मौलाना खालिद रशीद फिरंगी ने भी रमजान में मतदान पर आपत्ति दर्ज की है।
ऐसी बातों पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ठीक कहा कि चुनाव आयोग ने किसी को नमाज पढ़ने, रोजा रखने से रोका नहीं है। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने कहा विपक्षी दल चुनाव में हार के डर से अभी से बहाने ढूंढने लगे हैं। भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि हिंदू भाई भी व्रत करते हैं, वे भी तो मतदान करते हैं। रोजा रखने वाले कई लोग ऑफिस जाते हैं, अपना काम करते हैं, यह पहला मौका नहीं है कि जब रमजान में मतदान हो रहा है। इस पर सवाल नहीं उठाने चाहिए।
गौर करें तो होली के अवसर पर प्रथम दो चरण के नामांकन होंगे। महाराष्ट्र में प्रचार चरम पर रहते यहां का बड़ा त्यौहार गुड़ी पाड़वा छह अप्रैल को होगा। इसी दिन से हिंदुओं के सबसे पवित्र नौ दिनों की देवी पूजा नवरात्र की शुरुआत हो जाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी दोनों कलश स्थापना के साथ उपवास करते हैं। तेरह अप्रैल रामनवमी है। सत्रह अप्रैल को महावीर जयंती उन्नीस अप्रैल को हनुमान जयंती है। सात मई को अक्षय तृतीया और अठारह मई को बुद्ध पूर्णिमा है।
इन पर्वों को लेकर तो कोई विवाद नहीं उठाया गया। जो लोग रमजान की तीन तारीखों पर मतदान का विरोध कर रहे हैं, उन्हें मुस्लिम समाज की जमीनी जानकारी नहीं है, या वह किसी अन्य उद्देश्य से विरोध कर रहे हैं। यह अच्छा है कि अनेक मुसलमान ऐसे विरोध को अनुचित बता रहे हैं। उनके अनुसार भारत के अधिकांश मुसलमान रमजान के दौरान सामान्य रूप से कार्य करते हैं। तभी उनकी जीविका चलती है। मतदान के दिन तो अवकाश रहता है। मतदान में उन्हें कोई मुश्किल नहीं होगी। मुस्लिम धर्मगुरुओं से यह अपेक्षा थी कि वह इस प्रकार की सियासत को बेजा करार देते।
विपक्षी नेता लोग तो केवल अपने को मुसलमानों का हितैषी प्रदर्शित करना चाहते हैं। वह चुनाव आयोग पर दोहरा प्रहार कर रहे है। एक तो वह उसके निर्णय का विरोध कर रहे हैं, दूसरा यह कि वह इसमें भाजपा की भूमिका देख रहे हैं। ऐसा ही वह ईवीएम को लेकर भी कर चुके हैं। जब उनको सत्ता मिली तो ईवीएम और चुनाव आयोग बहुत अच्छा था।
अभी मध्यप्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ़ विधान सभा चुनाव में ईवीएम ठीक थी। लेकिन भाजपा जीते तो कहा जाता है कि ईवीएम खराब हो गई। ऐसे आरोप विपक्ष को हास्यस्पद बनाते हैं। शायद अब ईवीएम की जगह रमजान पर मतदान का मुद्दा उठाया गया है। यदि आम चुनाव में भाजपा को जीत मिली तो लगता है कि अबकी इसी मुद्दे के नाम पर ठीकरा फोड़ा जाएगा।
(लेखक हिन्दू पीजी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)