ममता ने केंद्र के प्रति अपनी नफरत की राजनीति को ऐसे संवेदनशील दौर में भी भुनाना जारी रखा है और इससे सबसे अधिक नुकसान बंगाल की जनता का हो रहा है। समय आने पर निश्चित ही अब यही जनता ममता बनर्जी की संवेदनहीन सरकार को उखाड़ फेंकेगी।
देश में कोरोना संकट चल ही रहा है लेकिन पश्चिम बंगाल के लिए दोहरे संकट की स्थिति हो गयी है। बंगाल की खाड़ी से उत्पन्न हुए एम्फन चक्रवात ने मुख्य रूप से बंगाल और ओडिशा को प्रभावित किया है। इसकी चपेट में आकर बड़े पैमाने पर तबाही मची है और जानमाल का नुकसान हुआ है। इस प्राकृतिक आपदा के बीच धरातल पर सरकारी मशीनरी क्या कर रही है, यह तो मीडिया के जरिये प्रकट हो ही रहा है लेकिन राजनीतिक तौर पर क्या हुआ, वह भी गौर करने योग्य है।
तूफान आने से पहले ही केंद्र सरकार हरकत में आ गई थी। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाई लेवल मीटिंग बुलाकर पूरे हालात पर नजर रखना शुरू कर दिया था। गृहमंत्री अमित शाह ने स्वयं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से फोन पर बात करके हर संभव मदद का आश्वासन दिया।
केंद्र सरकार का यह रवैया तब देखा गया है जबकि इसी दौर में ममता कोरेाना के मोर्चे पर केंद्र के साथ लगातार असहयोग करती आ रही हैं। असहयोग और अभद्रता भरे व्यवहार के बदले सहयोग और मदद का हाथ बढ़ाना केवल मोदी सरकार के ही बूते की बात है। राजनीति में, विशेषकर भारतीय राजनीति में ऐसे उदाहरण दुर्लभ हैं।
बात मोदी की निकली है तो यहां बताना प्रासंगिक होगा कि वर्ष 2002 में जब गुजरात में दंगे हुए थे तब मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब दिग्विजय सिंह से पुलिस बल की मदद मांगी तो उन्होंने असमर्थता व्यक्त की।
यह बात मोदी स्वयं एक लाइव टीवी शो में सार्वजनिक कर चुके हैं और उनके पास ही दिग्विजय बैठे थे। दिग्विजय इस बात का खंडन नहीं कर सके क्योंकि बात सत्य थी। मगर वही मोदी मुख्यमंत्री रहते हुए भी उत्तराखंड में आई आपदा के समय सहयोग के लिए आगे बढ़ आए थे जबकि वहां कांग्रेस की ही सरकार थी। केंद्र में रहते हुए भी उनकी सरकार सत्ता में रहते हुए विपक्षी दलों की मदद कैसे की जाए, यह पाठ अन्य दलों को भाजपा से सीखना चाहिये।
ममता बनर्जी का केंद्र के प्रति असहयोगी रवैया और मोदी विरोधी छवि जगजाहिर है। ऐसा लगता है कि वे केंद्र की हर बात का विरोध केवल विरोध करने के लिए ही करती हैं। अभी पिछले साल ममता ने मोदी को प्रधानमंत्री मानने से ही इंकार कर दिया था।
जिन अमित शाह ने गृहमंत्री के रूप में ममता के लिए मदद की पेशकश की, उसी ममता के राज्य में अमित शाह को चुनावी सभाएं नहीं करने दी गईं। उनके विमान को उतरने की अनुमति नहीं दी गई। उनके रोड शो पर हमला किया गया, पथराव किया गया।
सारदा घोटाले की जांच के लिए पहुंची सीबीआई की टीम को कोलकाता पुलिस द्वारा बंधक बना लिए जाने का काला अध्याय पूरे देश ने देखा और उसके बाद ममता का अराजक आचरण लंबे समय तक लोकतंत्र की आंख में चुभता रहा।
कोरोना संकट की बात करें तो इस दौर में भी ममता राजनीतिक हथकंडेबाजी से बाज नहीं आ रही हैं। संक्रमितों की जांच में केंद्र का सहयोग ना करना, संक्रमण एवं मृत्यु के आंकड़े पूरी तरह से उजागर ना करना और बंगाल में फंसे अन्य राज्यों के श्रमिकों के लिए तथा अन्य राज्यों में फंसे बंगाल के श्रमिकों की सुरक्षित घर वापसी के लिए कोई कारगर कदम ना उठाना ममता बनर्जी के अडि़यल रूख और अपरिपक्वता को जाहिर करता है।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ममता से पत्र लिखकर विशेष अनुरोध किया कि वे इंदौर में रह रहे प्रवासी श्रमिकों के लिए इंदौर-कोलकाता ट्रेन के संचालन को लेकर कदम उठाएं। रेल मंत्रालय से बात करें और श्रमिकों को उनके गृहनगर भेजने में मदद करें, लेकिन अभी तक इस दिशा में बंगाल सरकार की ओर से कोई सार्थक पहल नहीं की गई है।
इसी प्रकार प्रवासी श्रमिकों की वापसी जैसे अहम मुद्दे पर केंद्र के साथ ममता ना केवल असहयोग कर रही हैं, बल्कि सतही राजनीति कर रही हैं। केंद्र सरकार ने अभी तक विशेष ट्रेनों के माध्यम से लाखों श्रमिकों को उनके घर सकुशल भेजा है लेकिन बंगाल के श्रमिकों को अन्य राज्यों से लेकर बंगाल आने वाली विशेष ट्रेनों को बंगाल सरकार अनुमति ही नहीं दे रही है। ऐसा करके ममता को क्या हासिल हो रहा होगा, यह सोचने योग्य है।
आखिर कोई मुख्यमंत्री अपने ही राज्य के लोगों को कठिन हालातों में कैसे धकेल सकता है। ममता बनर्जी का असहयोगी रवैया केंद्र के प्रति तो है ही, अफसोस कि वे अपने राज्य की जनता को लेकर भी उदासीन, बेपरवाह और संवेदनहीन हैं। इसे ममता की तानाशाही नहीं तो और क्या कहेंगे।
यदि बंगाल सरकार अपने नागरिकों, डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मचारियों, कोरोना वॉरियर्स की देखरेख नहीं कर सकती तो ममता को मुख्यमंत्री के पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार ही नहीं है। ममता ने केंद्र के प्रति अपनी नफरत की राजनीति को ऐसे संवेदनशील दौर में भी भुनाना जारी रखा है और इससे सबसे अधिक नुकसान बंगाल की जनता का हो रहा है। समय आने पर निश्चित ही अब यही जनता ममता बनर्जी की संवेदनहीन सरकार को उखाड़ फेंकेगी।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)