मोदी सरकार की नीतियों और साहसिक निर्णयों के परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार में लगातार कमी आ रही है, लेकिन सरकार इस प्रक्रिया में और भी तेजी लाना चाहती है। लिहाजा, इस मामले में उसका रुख बहुत ही कड़ा है। नोटबंदी का मामला हो या फिर खोखा कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने का, सरकार का मकसद है भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना। पड़ताल से साफ है, भ्रष्टाचार के कम होने से निवेश, जिसमें विदेशी प्रत्यक्ष निवेश भी शामिल है, में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। साथ ही विकास के दूसरे मानकों में भी तेजी आई है।
भ्रष्टाचार को विकास की राह में सबसे बड़ा रोड़ा माना जा सकता है। बढ़ते वैश्वीकरण, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, वित्तीय लेनदेन में भ्रष्टाचार की गूँज साफ तौर पर सुनाई देती है। आज कोई भी ऐसा देश नहीं है जो अपने यहाँ इसकी उपस्थिति से इंकार कर सके। देखा जाये तो लेन-देन की लागत में इजाफा, निवेश में कमी या बढ़ोतरी या संसाधनों के दुरुपयोग में भ्रष्टाचार की सक्रियता बढ़ जाती है। भ्रष्टाचार का प्रतिकूल प्रभाव निर्णय लेने की क्षमता और प्राथमिकताओं के चयन पर भी पड़ता है।
केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) द्वारा वर्ष 2008 से वर्ष 2016 तक किये गये कार्यों की कुल संख्या से पता चलता है कि पिछले दो सालों में सीवीसी द्वारा की गई आंतरिक स्तर पर प्राप्त शिकायतों की संख्या में काफी वृद्धि हुई, लेकिन गंभीर प्रकृति के शिकायतों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई। वर्ष 2016 में कुल शिकायतों में से बाहरी शिकायत केवल 0.17% ही प्राप्त हुए थे, जो इस बात का संकेत है कि पहले की तुलना में प्रशासन ज्यादा साफ-सुथरे हुए हैं। इसी वजह से बाहर से प्राप्त होने वाली शिकायतों में कमी आ रही है। ई-निविदा, ई-खरीद, रिवर्स नीलामी आदि कार्यों के नवीन प्रौद्योगिकी के जरिये होने से शासन एवं उसकी कार्यविधियों में पारदर्शिता आई है।
ऐसे में सवाल का उठना लाजिमी है कि क्या किसी देश में भ्रष्टाचार को कम करने से उसके विकास में तेजी आ सकती है? शोध से पता चलता है कि भ्रष्टाचार और जीडीपी दर के बीच सीधे संबंध का आकलन करना आसान नहीं है। फिर भी देखने में आया है कि निवेश (विदेशी प्रत्यक्ष निवेश [एफडीआई] सहित), प्रतिस्पर्धा, उद्यमिता, सरकारी व्यय, राजस्व आदि पर भ्रष्टाचार का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वर्ष 2011 से वर्ष 2016 के दौरान भारत, ब्रिटेन, पुर्तगाल एवं इटली जैसे देश भ्रष्टाचार की धारणा सूचकांक (प्रति वर्ष पारदर्शिता इंटरनेशनल द्वारा प्रकाशित) में समग्र रूप से श्रेणी उन्नयन करने में सफल रहे हैं।
साफ है, भारत में भ्रष्टाचार के स्तर में कमी आ रही है। दूसरी तरफ विश्व अर्थव्यवस्था में गिरावट के दौर में भी भारत सकारात्मक जीडीपी दर हासिल करने में सफल रहा है। भारत वर्ष 2011 के 95 वें श्रेणी में सुधार करते हुए वर्ष 2016 में 79 वें स्थान पर आ गया, जबकि सिंगापुर, हांगकांग, मॉरीशस, तुर्की और दक्षिण कोरिया जैसे देश भ्रष्टाचार के स्तर को कम करने में सफल नहीं रहे और उनकी समग्र श्रेणी और विकास दर दोनों में गिरावट दर्ज की गई।
भारत में भ्रष्टाचार के स्तर में सुधार आने से एफडीआई के प्रवाह में भी तेजी आई है। आंकड़ों से पता चलता है कि भारत के प्रति विदेशी निवेशकों का भरोसा पहले की तुलना में बढ़ा है। भारत में शुद्ध एफडीआई प्रवाह पिछले छह सालों यथा, वित्त वर्ष 2012 के 21.9 यूएस बिलियन डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2017 में 35.9 यूएस बिलियन डॉलर हो गया, जो प्रतिशत में 64 है।
छोटी कंपनियों की स्थिति
वित्त वर्ष 2018 के दौरान 46536 कंपनियाँ पंजीकृत की गयीं, जिनकी अधिकृत पूंजी 9350 करोड़ रुपये थी। इस अवधि के दौरान खनन, निर्माण, विनिर्माण और व्यापार में नई पंजीकृत कंपनियों ने वित्त वर्ष 2017 में 45% से अधिक की वृद्धि हासिल की। इससे जाहिर होता है कि 8 नवंबर, 2016 को घोषित विमुद्रीकरण ने नई कंपनियों के पंजीकरण पर नकारात्मक प्रभाव नहीं डाला। विनिर्माण क्षेत्र में पंजीकृत नई कंपनियों की संख्या में वित्त वर्ष 2016 में 10,542 या 6.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, जबकि संख्या में यह वृद्धि वित्त वर्ष 2017 में 11,263 हुई।
आय कर ई-फाइलिंग की प्रवृति
विमुद्रीकरण और धन-शोधन की कवायद से आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आयकर की ई-फाइलिंग वर्ष 2017 के अगस्त महीने तक तीन करोड़ के अंक को पार कर चुकी थी, जो पिछले साल के मुक़ाबले 24% ज्यादा है। वित्त वर्ष 2017 के दौरान कुल 5.28 करोड़ आयकर ई-रिटर्न दाखिल किये गये, जो वित्त वर्ष 2016 से 22% अधिक है, जिससे सरकार को अतिरिक्त कर राजस्व की प्राप्ति हो रही है।
वित्त वर्ष 2008-09 से वित्त वर्ष 2014 यानि 5 सालों के दौरान 2.48 करोड़ आयकर रिटर्न दाखिल किये गये, जबकि विगत 3 वर्षों यानि वित्त वर्ष 2014 से वित्त वर्ष 17 में 2.32 करोड़ रिटर्न दाखिल किये गये, जिसे बेहद ही प्रभावशाली प्रगति मानी जा सकती है। आय सीमा के अनुसार यदि इसे देखा जाये तो अधिकांश आयकर रिटर्न 5 लाख तक के वर्ग में दाखिल किये गये हैं। इस वर्ग में अप्रैल से अगस्त 2017 के दौरान 23% की वृद्धि दर्ज की गई।
गौरतलब है कि एक करोड़ से अधिक की आय सीमा में आयकर रिटर्न दाखिल करने वालों की संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वर्ष 2017 में अप्रैल से अगस्त महीने की अवधि में आयकर की 55,285 ई-फाइलिंग की गई, जो पिछले साल की समान अवधि से 19% ज्यादा है। इस तरह, इस साल लगभग 22 लाख नये करदाताओं ने आयकर रिटर्न दाखिल किया है। अगर आयकर ई-रिटर्न दाखिल करने वाले लोगों की संख्या में इसी रफ्तार से बढ़ोतरी होती है तो वित्त वर्ष 2018 में यह संख्या बढ़कर 6.5 करोड़ से भी अधिक हो जायेगी।
कहा जा सकता है कि मोदी सरकार की नीतियों के परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार में लगातार कमी आ रही है, लेकिन सरकार इस प्रक्रिया में और भी तेजी लाना चाहती है। लिहाजा, इस मामले में उसका रुख बहुत ही कड़ा है। नोटबंदी का मामला हो या फिर खोखा कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने का, सरकार का मकसद है भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना। पड़ताल से साफ है, भ्रष्टाचार के कम होने से निवेश, जिसमें विदेशी प्रत्यक्ष निवेश भी शामिल है, में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। साथ ही विकास के दूसरे मानकों में भी तेजी आई है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र, मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में मुख्य प्रबंधक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)