महंगाई के कम होने का सकारात्मक परिणाम औद्योगिक उत्पादन पर दिख रहा है। अप्रैल महीने में औद्योगिक उत्पादन 4.2 प्रतिशत रहा है, जबकि अप्रैल महीने में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) 6.7 प्रतिशत बढ़ा है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल महीने में विनिर्माण क्षेत्र में 4.9 प्रतिशत और खनन में 5.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अनुसार उपभोकता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति मई महीने में 4.25 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच गई। अप्रैल महीने में यह 4.7 प्रतिशत के स्तर पर थी, जबकि मई 2022 में यह 7.04 प्रतिशत थी। यह लगातार चौथा महीना है, जब खुदरा महंगाई में कमी आई है। वहीं, यह मुसलसल तीसरा महीना है, जब खुदरा महंगाई भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा महंगाई के लिए तय की गई अधिकतम सीमा 6 प्रतिशत से कम है। उल्लेखनीय है कि फरवरी महीने में खुदरा महंगाई 6.44 प्रतिशत थी, जबकि जनवरी महीने में यह 6.52 प्रतिशत थी।
विश्लेषण से पता चलता है कि खाद्य पदार्थों और ईंधन की कीमत में कमी आने की वजह से महंगाई के स्तर में कमी आई है। मई महीने में खाद्य मुद्रास्फीति 2.91 प्रतिशत थी, जबकि अप्रैल में 3.84 प्रतिशत थी। वहीं, ईंधन मुद्रास्फीति मई महीने में 4.64 प्रतिशत थी, जबकि अप्रैल महीने में 5.52 प्रतिशत थी। महंगाई का सीधा संबंध इंसान की खरीदने की क्षमता से है। उदाहरण के लिए, यदि महंगाई दर 10 प्रतिशत है तो आपको अपनी 100 रुपए की कमाई में से 10 रुपए सिर्फ वस्तुओं और खाद्य पदार्थों की बढ़ी हुई कीमत की वजह से ज्यादा खर्च करने होंगे।
महंगाई के कम होने का सकारात्मक परिणाम औद्योगिक उत्पादन पर दिख रहा है। अप्रैल महीने में औद्योगिक उत्पादन 4.2 प्रतिशत रहा है, जबकि अप्रैल महीने में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) 6.7 प्रतिशत बढ़ा है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल महीने में विनिर्माण क्षेत्र में 4.9 प्रतिशत और खनन में 5.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
महंगाई में नरमी आने की वजह से केंद्रीय बैंक ने ताजा मौद्रिक समीक्षा में रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर यथावत रखा है, जबकि पिछले साल के मई महीने से अब तक में रिजर्व बैंक ने रेपो दर में 250 आधार अंकों की बढ़ोतरी की है। इसके पहले रिजर्व बैंक ने लगातार 6 दफा रेपो दर में इजाफा किया था। रिजर्व बैंक के इस फैसले को अप्रत्याशित माना जा रहा है, क्योंकि हाल ही में फेडरल रिजर्व, यूरोपियन सेंट्रल बैंक, बैंक ऑफ इंग्लैंड समेत दुनिया के तमाम सेंट्रल बैंकों ने नीतिगत ब्याज दरों में इजाफा किया था।
रेपो दर को यथावत रखने से एक तरफ कर्जदारों को राहत मिलेगी तो दूसरी तरफ विकास की रफ्तार तेज होगी। रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में इजाफा नहीं करने से शेयर बाजार में बैंकों के शेयर में तेजी देखी गई है।
रिजर्व बैंक मुख्य तौर पर रेपो दर में बढ़ोतरी करके महंगाई से लड़ने की कोशिश करता है। जब रेपो दर अधिक होता है तो बैंकों को रिजर्व बैंक से महंगी दर पर कर्ज मिलता है, जिसके कारण बैंक भी ग्राहकों को महंगी दर पर कर्ज देते हैं। ऐसा करने से अर्थव्यवस्था में मुद्रा की तरलता कम हो जाती है और लोगों की जेब में पैसे नहीं होने की वजह से वस्तुओं की मांग में कमी आती है और वस्तुओं वाईए उत्पादों की कीमत अधिक होने के कारण इनकी बिक्री में कमी आती है, जिससे महंगाई में गिरावट दर्ज की जाती है।
इसी तरह अर्थव्यवस्था में नरमी रहने पर विकासात्मक कार्यों में तेजी लाने के लिए बाजार में मुद्रा की तरलता बढ़ाने की कोशिश की जाती है और इसके लिए भी रेपो दर में कटौती की जाती है, ताकि बैंकों को रिजर्व बैंक से सस्ती दर पर कर्ज मिले और सस्ती दर पर कर्ज मिलने के बाद बैंक भी ग्राहकों को सस्ती दर पर कर्ज दें।
अभी रिजर्व बैंक का लक्ष्य विकास और महंगाई के बीच संतुलन बनाना है, ताकि आम आदमी को परेशानी नहीं हो और विकास की रफ्तार में तेजी आये। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास के अनुसार कोरोना महामारी, भू-राजनीतिक संकट, महंगाई, वैश्विक अर्थव्यवस्था में नरमी के बावजूद बैंकिंग और गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थान (एनबीएफसी) भारत में मजबूत बने हुए हैं।
बीते महीनों में महंगाई में उल्लेखनीय कमी आने की वजह से जीडीपी 6.1 प्रतिशत रही, जबकि दिसंबर 2022 में मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने वित्त वर्ष 2022-23 की अंतिम तिमाही में जीडीपी के 4.2 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था। वित्त वर्ष 2022-23 की चौथी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर में बेहतरी आने से पूरे वित्त वर्ष की वृद्धि दर में भी सुधार दर्ज किया गया है. पहले वित्त वर्ष 2022-23 में एमपीसी ने जीडीपी के 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था, जो हकीकत में 7.2 प्रतिशत रही।
वित्त वर्ष 2022-23 में कृषि क्षेत्र में वृद्धि दर 5.5 प्रतिशत, होटल उद्योग में 9.1 प्रतिशत और निर्माण क्षेत्र में 10.4 प्रतिशत दर्ज की गई। इन तीन क्षेत्रों ने जीडीपी की वृद्धि दर को बेहतर करने में विशेष योगदान दिया है। जीडीपी में वृद्धि के साथ-साथ निवेश और खपत में भी तेजी देखी जा रही है। वर्ष 2023 की पहली तिमाही में निवेश दर में 18.3 प्रतिशत और खपत में 13.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। निवेश में वृद्धि का मुख्य कारण सरकार की “उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन” (पीएलआई) योजना है। इस योजना की वजह से कोरोना काल में कारोबारियों को मुश्किल दौर से बाहर निकलने में विशेष मदद मिली थी।
पड़ताल से साफ है, महंगाई की वजह से जीडीपी वृद्धि दर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अब महंगाई में गिरावट आ रही है। लिहाजा, कयास लगाये जा रहे हैं कि आगामी महीनों में भारत की विकास दर में और भी तेजी आयेगी और अर्थव्यवस्था भी क्रमशः मजबूत होती जायेगी।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। आर्थिक मामलों के जानकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)