भारत से मुकाबला करने का प्लान बनाते-बनाते पाकिस्तान अपनी आज़ादी एक ऐसे मुल्क के हाथों बेचने की तैयारी में लगा है, जिसके लिए मुनाफाखोरी ही धर्म और ईमान है। अच्छी बात यह है कि भारत ने न तो सीपीईसी का समर्थन किया है और न ही “वन बेल्ट वन रोड” का, जिसके ज़रिये चीन दुनिया भर को अपना उपनिवेश बनाने का कोरा ख्वाब देख रहा है। उचित होगा कि पाकिस्तान चीन की चाल को समझ ले और भारत विरोध में अपना बंटाधार न करे। अन्यथा भारत का तो वो कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा, मगर खुद चीन का गुलाम बनकर जरूर रह जाएगा।
आज पाकिस्तान की ज़मीन पर चीन की बढ़ती गतिविधियों से पाकिस्तान को तो भविष्य में खतरा है ही, लेकिन इकॉनोमिक कॉरिडोर के बहाने चीन ऐसी व्यूहरचना कर रहा है, जिससे भारत को भी अत्यधिक सावधान रहने की ज़रुरत है। इसी कारण भारत सरकार द्वारा इस कॉरिडोर का लगातार विरोध किया जाता रहा है। बहरहाल, हम यहाँ ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में यह समझने की कोशिश करेंगे कि किस तरह चीन का नव-उपनिवेशवादी रवैया पाकिस्तान को निगल जाएगा। आज के दौर में चीन की तुलना ईस्ट इंडिया कंपनी से क्यों की जा रही है? आखिर पाकिस्तान के सिनेटर्स चीन से क्यों डरे हुए हैं? हमें पहले इतिहास में झांकना होगा।
वर्ष 1600: इतिहास हमें सीख देता था, पिछले अनुभवों को नहीं भूलने की। इतिहास के छात्रों को याद होगा कि वर्ष 1600 में ईस्ट इंडिया कंपनी का गठन हुआ था, महारानी एलिजाबेथ ने इसे एक शाही पत्र देकर भारत में व्यापार करने की इजाज़त दी। कंपनी का मकसद था व्यपार करना और पैसा कमाना। लेकिन अंग्रेज तो अंग्रेज ठहरे, वह सिर्फ व्यापार नहीं करना चाहते थे। भारत के लोगों और तत्कालीन शासकों ने कंपनी के मकसद को नहीं समझा और उसे मनमानी करने की इजाज़त दे दी। 1612 में एक अंग्रेजी बेड़े ने आकर पुर्तगालियों के विरोध को कुचलकर रख दिया, साथ ही हमेशा-हमेशा के लिए व्यापार करने का अधिकार मुकम्मल कर लिया। अगले 100 वर्ष में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुग़लों को उखाड़ फेंका और पूरे हिंदुस्तान पर कब्ज़ा कर लिया। इस इतिहास के परिप्रेक्ष्य में पाकिस्तान में चीन की घुसपैठ को समझने की जरूरत है।
वर्ष 2017: पिछले साल पाकिस्तान के संसद में इस बात पर खूब बवाल हुआ कि चीन की मदद से पाकिस्तान इकनोमिक कॉरिडोर तो बना रहा है, लेकिन इसके लिए पकिस्तान को क्या कीमत चुकानी होगी? “चाइना पाकिस्तान इकनोमिक कॉरिडोर” (CPEC) चीन के लिए पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान से होते हुए मध्यपूर्व तक जाने का रास्ता खोल देता है।
नवाज़ शरीफ ने प्रोजेक्ट को इसलिए भी ज्यादा तवज्जो दी ताकि भारत से मुकाबले के लिए पाकिस्तान को चीन का हमेशा-हमेशा के लिए साथ मिल जाए। लेकिन पेंच यहीं फंस गया है। भारत से मुकाबले के अन्धोत्साह में पाकिस्तान अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मार रहा है। पाकिस्तान के सीनेटर ताहिर मशहदी ने अंदेशा जताया कि “चीन के साथ दोस्ती का स्वागत है, लेकिन पाकिस्तान में एक नयी ईस्ट इंडिया कंपनी खड़ी हो रही है। तकलीफदेह बात यह है कि पाकिस्तान सरकार अपने राष्ट्रीय हितों का ध्यान नहीं रख रही।”
पाकिस्तान के बहुत से हिस्सों, खासकर बलूचिस्तान में इस प्रोजेक्ट को लेकर स्थानीय स्तर पर बहुत ज़ोरदार विरोध देखने को मिल रहा है, इस प्रोजेक्ट को लेकर ट्राइबल लोगों का संघर्ष बदस्तूर जारी है। पाकिस्तान के प्लानिंग कमीशन के सचिव युसूफ नदीम खोखर ने अंदेशा जाहिर किया कि चीन सीपीईसी के लिए स्थानीय सरकारों से फंडिंग ले रहा है, जबकि फंडिंग खुद चीन को करना चाहिए था। क्या पाकिस्तान की गरीब जनता इस कॉरिडोर को बनाने में आ रहे खर्च का बोझ उठाएगी ? पाकिस्तान को टैक्स देने वाले लोगों पर इसका कितने सालों तक बोझ पड़ेगा ? आज के समय में यह सवाल पाकिस्तान के लोगों को डरा रहे हैं।
चीन प्रेम में डूबा पाकिस्तान लिख रहा अपनी बर्बादी की कहानी
तो क्या पाकिस्तान खुद अपने हाथों से अपनी बर्बादी का स्क्रिप्ट लिख रहा है ? पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से चीन पर निर्भर करता है, ऐसे में आगे अगर पाकिस्तान और चीन के बीच मतभेद हुए तो क्या होगा ? क्या पाकिस्तान चीन का विरोध कर पाएगा ? इस बात की सम्भावना बहुत कम लगती है। इन दिनों पाकिस्तान को लेकर चीन के 20 सूत्रीय ब्लूप्रिंट की खूब चर्चा हो रही है। सम्भावना इस बात की है कि पाकिस्तान आने वाले अगले 20 वर्षों में चीन का उपनिवेश बनकर रह जाएगा।
‘चीन पाकिस्तान इकनोमिक कॉरिडोर’ के जरिये चीन पाकिस्तान के हर सेक्टर की कमांड अपने हाथ में ले लेगा। मसलन पाकिस्तान सरकार 6500 हेक्टेयर ज़मीन इसके लिए चीन को पट्टे पर दे रही है, जिसपर चीन खेती करेगा और फ़ूड प्रोसेसिंग के लिए इंडस्ट्रीज लगेंगी। यहाँ कदम ज़माने के बाद चीन की नज़र खैबर और पख्तूनिस्तान पर भी होगी, जहाँ अकूत खनिज सम्पदा ज़मीन के नीचे मौजूद है।
अगर चीन पाकिस्तान में आकर खेती करेगा तो पाकिस्तान और नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस के लोग क्या करेंगे? ज़ाहिर है, पाकिस्तान के लोग चीन द्वारा संचालित प्रोजेक्ट में मजदूरी करेंगे और पाकिस्तान के तानाशाहों को उनकी तय खुराक मिलती रहेगी। चीनियों के लिए पाकिस्तान में दाखिला वीजा फ्री होगा, लेकिन पाकिस्तानी शहरियों को यह सुविधा उपलब्ध नहीं होगी। किसी भी सभ्यता का विकास तब होता है जब वहां की स्थानीय जनता अपनी खेती और अपनी संस्कृति का खुद ख्याल रखती है, लेकिन यहाँ हर चीज पर चीन का डंडा रहेगा। ऐसे में, पाकिस्तान को आने वाले सालों में चीन से आज़ादी के लिए युद्ध लड़ना पड़ेगा, लेकिन तब तक पाकिस्तान की कमर टूट चुकी होगी।
इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत से मुकाबला करने का प्लान बनाते-बनाते पाकिस्तान अपनी आज़ादी एक ऐसे मुल्क के हाथों बेचने की तैयारी में लगा है, जिसके लिए मुनाफाखोरी ही धर्म और ईमान है। यह अच्छी खबर यह है कि भारत ने न तो सीपीईसी का समर्थन किया है और न ही “वन बेल्ट वन रोड” का, जिसके ज़रिये चीन दुनिया भर को अपना उपनिवेश बनाने का ख्वाब देख रहा है। उचित होगा कि पाकिस्तान चीन की चाल को समझ ले और भारत विरोध में अपना बंटाधार न करे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। उनके निजी विचार हैं।)