ताज़ा घटना दिनांक 30 अप्रैल की है जब संघ के एक नवनिर्मित सेवा केंद्र को कन्नूर में उद्घाटन के महज २४ घंटों के अन्दर ही वामपंथी गुंडों के द्वारा तहस नहस कर दिया गया। इस केंद्र का शुभारम्भ जे नन्द कुमार जी ने किया था। रात्रि के तीसरे पहर में हुए आक्रमण में कार्यालय के अन्दर रखी सारी वस्तुएं तोड़ डाली गयीं; खिड़कियाँ, दरवाजे एवं ईमारत में लगे शीशे तोड़ डाले गए। भवन की बाहरी दीवार को भी लाल रंग से विकृत कर दिया गया। कन्नूर में सी.पी.एम. के कार्यकर्ताओं में राजनैतिक डर एवं असुरक्षा की भावना इस तरह से घर कर चुकी है कि विरोधियों पर शारीरिक आक्रमण या हिंसा ही उनके पास एक मात्र वामपंथी हथियार बचा है।
केरल में राजनैतिक संघर्ष और हिंसा का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि वहां पर वामपंथी पार्टियों का वजूद। जैसे-जैसे केरल में वामपंथी पार्टियों ने अपनी जड़ें मजबूत की, वैसे-वैसे वहां पर राजनैतिक हत्या और संघर्ष ही राजनीती की मुख्य धारा बनती चली गयी। गाँधी के इस अहिंसावादी देश में जहाँ सत्ता का रास्ता लोकतंत्र और जन समर्थन से होकर गुजरता है, ठीक उसके उलट जहाँ जहाँ वाम विचारधारा जिस भी रूप में मौजूद है, इसे राजनैतिक रूप से अस्वीकार ही करती आई है।
केरल हो या बंगाल, त्रिपुरा हो या फिर नक्सलवाद और माओवाद से जूझ रहे भारत के बहुसंख्य वनवासी गाँव, इन सभी जगहों पर शासन या परिवर्तन का तरीका भय, दमन, हिंसा या खून खराबा करके ही किया जा सकता है, ऐसी वामपंथियों की मनोवृत्ति बन चुकी है। उनका यह स्वभाव उनकी विचारधारा की उत्पत्ति एवं प्रतिक्रियावादी राजनीती की वजह से है। उनकी यह हिंसक राजनैतिक विचारधारा लाइलाज है। यह विचारधारा जब तक रहेगी तब तक शान्ति या सहिष्णुता देश के राजनैतिक परिदृश्य में असंभव सी जान पड़ती है। जिन राज्यों में ये पार्टियाँ राजनैतिक रूप से अशक्त हो जाती हैं, वहां भी इनकी वैचारिक हिंसा एवं प्रतिक्रियावादी राजनीती समाज और देश को तोड़ने या विघटनकारी शक्तियों को वैचारिक शक्ति प्रदान करने की ही होती है।
केरल में आज़ादी के बाद से ही लगातार हो रही हिंसा से देश भली-भांति भले वाकिफ है, परन्तु वहां के इस घटनाक्रम के गुण-दोष या उसपर राष्ट्रीय विमर्श से हम अब तक अछूते ही हैं| वजह है राष्ट्रीय पत्रकारिता के परिदृश्य में ख़बरों के साथ किया जा रहा छुआ-छुत। अब तक अकेले केरल में ही संघ की विचारधारा से सम्बन्ध रखने वाले 300 के लगभग कार्यकर्ताओं की जान जा चुकी है और हजारों गंभीर रूप से घायल हुए हैं या हमेशा के लिए अपंग हो गए हैं।
केरल में इस बार दिनांक 25 मई 2016 को जब से पिन्नाराई विजयन की वाम मोर्चा गठबंधन की सरकार सत्ता में आई है, तब से राजनैतिक विरोधियों के विरुद्ध हिंसा की घटनाएँ खतरनाक रूप से बढ़ गयी हैं। पहले वामपंथियों के राजनैतिक गुस्से का शिकार संघ/भाजपा के कार्यकर्ता ही होते थे जिनमें उनको गंभीर चोटें आती थी और कभी कभी उनकी जान भी चली जाती थी। लेकिन, जैसे-जैसे राष्ट्रवादी संगठन केरल में मजबूत होते जा रहे हैं, वैसे वैसे कार्यकर्ताओं की संपत्ति पर, संघ कार्यालयों पर, पार्टी कार्यालयों के ऊपर आक्रमण और उत्पात की घटना आम हो रही है। वामपंथियों के रैलियों में खुले आम संघ कार्यकर्ताओं के हाथ पैर काट लेने के नारे लगाये जा रहे हैं।
ताज़ा घटना दिनांक 30 अप्रैल की है जब संघ के एक नवनिर्मित सेवा केंद्र को कन्नूर में उद्घाटन के महज २४ घंटों के अन्दर ही वामपंथी गुंडों के द्वारा तहस नहस कर दिया गया। इस केंद्र का शुभारम्भ जे नन्द कुमार जी ने किया था। रात्रि के तीसरे पहर में हुए आक्रमण में कार्यालय के अन्दर रखी सारी वस्तुएं तोड़ डाली गयीं; खिड़कियाँ, दरवाजे एवं ईमारत में लगे शीशे तोड़ डाले गए। भवन की बाहरी दीवार को भी लाल रंग से विकृत कर दिया गया। कन्नूर में सी.पी.एम. के कार्यकर्ताओं में राजनैतिक डर एवं असुरक्षा की भावना इस तरह से घर कर चुकी है कि विरोधियों पर शारीरिक आक्रमण या हिंसा ही उनके पास एक मात्र वामपंथी हथियार बचा है।
राजनीति के तमाम लोकतान्त्रिक तरीकों से शुन्य हो चुके वाम नेता यहीं तक नहीं रुके, इस घटना के महज 3 दिन बाद ही इन्होंने उसी तहस-नहस किये गए संघ सेवा केंद्र के सामने से एक प्रतिरोध मार्च निकाला। इस मार्च में सी.पी.एम. के कार्यकर्ताओं ने खुले आम हिंसक नारे लगाये, जैसे : “अगर तुम हमारे विरुद्ध आओगे तो हम तुम्हारे हाथ, पैर यहाँ तक कि सिर भी काट लेंगे” “तुमलोगों को पता हो कि ये कौन कह रहा है; ये हम कह रहे हैं, ये हम कह रहे हैं“(विडियो)। देश में वामपंथियों की राजनीति का यह कन्नूर मॉडल है। यहाँ विदित हो कि कन्नूर केरल में ही नहीं, राजनैतिक हिंसा के लिए पुरे देश में सबसे ज्यादा कुख्यात है। साथ ही साथ कन्नूर को केरल में वामपंथ का गढ़ भी कहा जाता है। यह क्षेत्र केरल के मुख्यमंत्री विजयन का निर्वाचन क्षेत्र भी है। जब यहाँ के ये हालात हैं, तो प्रदेश के बाकी हिस्से का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।
इसी तरह की एक अन्य घटना में दिनांक 6 मई को केरल के नेमम से भाजपा के एक मात्र निर्वाचित विधायक 87 वर्षीय, ओ. राजगोपाल के कार्यालय को सी.पी.एम. के गुंडों ने तहस-नहस कर दिया। ये हालत तब है जबकि इनका कार्यालय प्रदेश की राजधानी तिरुअनंतपुरम में पड़ता है। इनके कार्यालय पर पत्थर भी फेंके गए, जिससे घर के शीशे टूट गए। इस हमले में राजगोपालन जी के कार्यालय के बाहर खड़ी गाड़ी के शीशे भी क्षतिग्रस्त हो गए। जहाँ पुलिस को इस घटना की जांच करनी चाहिए थी, वहीं उन्होंने इसे किरायेदारों का विवाद कह के पल्ला झाड़ लिया।
राजनैतिक विरोधियों के मन में भय एवं समाज में दमन का वातावरण बनाने के उद्देश्य से इस तरह की वारदातें लगातार की जा रही हैं। वामपंथियों की सोच है कि इससे वो भाजपा के बढ़ते जनाधार को थाम पाने में सफल हो जायेंगे। राजगोपालन जी ने बताया कि उन्हें घटना की जानकारी रात के 1 बजकर 30 मिनट को फ़ोन पे प्राप्त हुई। उन्होंने बताया कि सी.पी.एम. के गुंडों ने इसी तरह का हमला पिछले साल पप्पनमकोड स्थित प्रदेश भाजपा के नवनिर्मित कार्यालय पर भी किया था। उन्होंने पुलिस पर आरोप लगाते हुए ये भी कहा कि इस तरह के तमाम गुंडा तत्वों को प्रदेश की विजयन सरकार लगातार संरक्षण प्रदान कर रही है।
(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी शोध अधिष्ठान में रिसर्च एसोसिएट हैं।)