महागठबंधन एक बेमेल के राजनीतिक दलों का जुटान है। इसके दोनों बड़े घटक राजद और जदयू एकदूसरे के कट्टर विरोधी रहे हैं, लेकिन सत्ता के लोभ में आज गलबहियां कर रहे हैं। मगर, इससे वैचारिक विरोध तो समाप्त नहीं हो जाएगा। वो वैचारिक विरोध अब भी दोनों के बीच है, जिसकी बानगी जब-तब सामने आती रहती है। जदयू के नेताओं द्वारा अभी ताज़ा मामलों में लालू परिवार की संपत्ति पर सवाल उठाए गए तथा इसका हिसाब देने को भी कहा गया। तेजस्वी यादव का बवाल अलग है। दरअसल ऐसे बेमेल गठबंधन के साथ इस तरह की अंतर्कलह प्रत्याशित ही थी। अब देखना होगा कि इस अंतर्कलह में गठबंधन टूटता है या सुलह का कोई रास्ता निकल जाता है।
नीतीश कुमार की छवि एक ईमानदार राजनेता की रही है, लेकिन सत्ता और महत्वाकांक्षा को हासिल करने की चाहत ने उन्हें महागठबंधन का हिस्सा बनने के लिये मजबूर कर दिया, जबकि राजद के मुखिया लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार का ईमानदारी से दूर-दूर तक का नाता नहीं है। बावजूद इसके लालू प्रसाद यादव अपने परिवार को किसी भी तरह से सत्ता की कुर्सी पर बिठाकर रखना चाहते हैं। उनके परिवार के करोड़पति बनने की कहानी जग-जाहिर है, लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जब तक भ्रष्टाचार करना अदालत में साबित नहीं होता है तब तक वह केवल आरोपी होता है। बिहार में चल रहे सियासी हलचल के मूल में भी यही वस्तुस्थिति है।
बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर रेलवे में होटल के बदले जमीन घोटाले में एफआईआर किया गया है। चूँकि, नीतीश कुमार का दामन साफ-सुथरा है, इसलिए वे नहीं चाहते हैं कि एक आरोपी प्रदेश के उप मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहे, जबकि राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ऐसा नहीं चाहते हैं। इसी वजह से बिहार में सियासी पारा विगत कुछ दिनों से उफान पर है।
बहरहाल, राजद का कहना है कि उनपर एवं उनके परिवार के खिलाफ भाजपा द्वारा जानबूझकर कार्रवाई की जा रही है, जबकि वे सभी मामलों में पाक-साफ हैं। हालांकि लालू की इस दलील के पीछे कोई ठोस आधार नज़र नहीं आता। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस भी नीतीश कुमार के साथ सुर में सुर मिला रही है। जदयू ने राजद को तेजस्वी यादव को हटाने का फैसला करने के लिये 4 दिनों का समय दिया था, जो कि ख़त्म हो गया है। अब देखना होगा कि बिहार का ये महागठबंधन कौन सी करवट लेता है।
बिहार की राजनीति के सही आकलन के लिये बिहार की राजनीतिक पृष्ठभूमि और जातीय समीकरण को समझना आवश्यक है। बिहार में वोट को सिर्फ विकास से जोड़कर नहीं देखा जाता है। यहाँ की राजनीति में भले ही बहुत सारे फैक्टर काम करते हों, मगर मतदान सभी चुनावों में मोटे तौर पर जाति के आधार पर ही होता है। इसी आधार पर नीतीश कुमार की अगुआई में महागठबंधन का निर्माण किया गया, ताकि वोट प्रतिशत के बिखराव को रोका जा सके। नीतीश कुमार की रणनीति का सकारात्मक परिणाम विधानसभा के चुनावों में देखने को मिला। महागठबंधन की सरकार बनी।
लेकिन, महागठबंधन की सरकार आने के बाद बिहार में विकास की रफ्तार थम सी गई है और हिंसा की छोटी-बड़ी वारदातें फिर से होने लगी हैं, जिससे नीतीश कुमार की सुशासन बाबू की छवि दांव पर लगी हुई है। सच कहा जाये तो महागठबंधन में नीतीश कुमार अपनी छवि के अनुरूप काम नहीं कर पा रहे हैं।
नीतीश कुमार कुर्मी जाति से संबंध रखते हैं, लेकिन इस जाति की बिहार में जनसंख्या कुल मतदाताओं का महज 2.5 प्रतिशत ही है। दूसरी तरफ कुर्मी जाति यादव जाति की तरह आँख मूँद कर अपनी जाति के उम्मीदवार को वोट भी नहीं देती है। जहाँ फायदा दिखता है उन्हीं को वे वोट देते हैं।
ऐसे में नीतीश कुमार अपनी जाति के भरोसे राजनीति नहीं कर सकते हैं। वे अपने अच्छे शासन के दम पर ही बिहार की राजनीति के शीर्ष पर रह सकते हैं। पूर्व में इसीलिये नीतीश कुमार अपनी अहमियत को बरकरार रखने के लिये लीक से हटकर निर्णय लेते रहे हैं। जीतन मांझी को बिहार का मुख्यमंत्री बनाना भी उनका एक प्रयोग था। इसी तरह राष्ट्रपति के उम्मीदवार के तौर पर पहले उन्होंने प्रणव मुखर्जी का समर्थन किया और अब उन्होंने कोविंद का किया है।
खैर, महागठबंधन एक बेमेल के राजनीतिक दलों का जुटान है। इसके दोनों बड़े घटक राजद और जदयू एकदूसरे के कट्टर विरोधी रहे हैं, लेकिन सत्ता के लोभ में आज गलबहियां कर रहे हैं। मगर, इससे वैचारिक विरोध तो समाप्त नहीं हो जाएगा। वो वैचारिक विरोध अब भी दोनों के बीच है, जिसकी बानगी जब-तब सामने आती रहती है।
जदयू के नेताओं द्वारा अभी ताज़ा मामलों में लालू परिवार की संपत्ति पर सवाल उठाए गए तथा इसका हिसाब देने को भी कहा गया। तेजस्वी यादव का बवाल अलग है। दरअसल ऐसे बेमेल गठबंधन में इस तरह की अंतर्कलह प्रत्याशित ही थी। अब देखना होगा कि इस अंतर्कलह में गठबंधन टूटता है या सुलह का कोई रास्ता निकल पाता है।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉर्पोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसन्धान विभाग में मुख्य प्रबंधक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)