अयोध्या जी का नाम आते ही हर हिन्दू का मन बस एक ही प्रश्न करता था कि राम मंदिर कब बनेगा ? कब ख़तम होगा यह इंतज़ार ? यह वर्षो पुराना कार्य भी सफलता पूर्वक 5 अगस्त, 2020 को संपन्न हुआ जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अयोध्या जाकर भव्य-दिव्य राम मंदिर की आधारशिला रखी और करोड़ों भारतीयों का सपना साकार किया। जिस भारत के रोम रोम में श्री राम बसते हैं, उसके वासियों के लिए यह हर्ष- उल्लास, गौरव एवं धर्म की विजय का दिन था।
इस वर्ष भारत को स्वाधीन हुए 74 वर्ष पूर्ण हो गए हैं। भारत अपनी स्वाधीनता की 75 वीं वर्षगाँठ की ओर अग्रसर है। यह राष्ट्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के साथ-साथ सबसे प्राचीन लोकतंत्र भी है। इस राष्ट्र ने अपने लगभग 5 हज़ार वर्ष के सफर में राजनैतिक सफलता से लेकर व्यापारिक कुशलता तक सम्पूर्ण विश्व में अपना लोहा मनवाया है लेकिन यह कभी इसके आधार स्तम्भ नहीं रहे।
इसका आधार तो हमेशा से ही इसकी सांस्कृतिक पूँजी ही रही है जो आज हमारे सामने एक विरासत के रूप में है। चाहे वह पुरातात्विक स्त्रोत के अंतर्गत आने वाले प्राचीन मंदिर और अन्य सांस्कृतिक स्थल हों या फिर साहित्यिक स्त्रोत के रूप में वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत या पुराण।
स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि, “एक ओर, नया भारत कहता है, पाश्चात्य भाव, पाश्चात्य भाषा, पाश्चात्य खान-पान और पाश्चात्य आचार को अपनाकर ही हम पाश्चात्य राष्ट्रों के समान शक्तिशाली हो सकेंगे।” दूसरी ओर पुराना भारत कहता है, ”हे मूर्ख! कहीं नकल करने से भी दूसरों का भाव अपना हुआ है ? इसीलिए हमें अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति के साथ भारतीय मार्ग पर ही आगे बढ़ना होगा। हमें पश्चिम से सीखना जरूर चाहिए लेकिन हम उनका अंधानुकरण नहीं कर सकते।‘ हमें दुनिया भर में सबके विचारों को देखना होगा किन्तु उन्हें अपने तरीके से अवशोषित करना होगा।“
लेकिन वर्ष 2009 से 2014 इस देश के लिए सांस्कृतिक तौर पर घातक साबित हुए। एक तरफ तो ”हिन्दू आतंकवाद” का षड्यंत्र और दूसरी तरफ इस संस्कृति के आधार प्रभु श्री राम की ऐतिहासिकता पर सवाल उठना। शायद विभाजन के बाद यह पहला ऐसा मौका था जब हिन्दू समाज को एक बार फिर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के लिए उत्तेजित किया जा रहा था। परिस्थिति ऐसी बनने लगी थी कि अपने आप को हिन्दू बोलने से भी लोग सार्वजनिक स्थलों और सामाजिक मंचो पर बचते थे। जो स्थिति एक बार भारत की अंग्रेज़ो के राज में हो गई थी, हम कुछ हद तक वही पहुँच गए थे।
धीरे-धीरे वर्ष 2014 की ओर हम अग्रसर हो रहे थे। वर्ष 2014 इसलिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इस वर्ष आम चुनाव होने वाले थे। देश में भ्रष्टाचार की आंधी चल रही थी। आए दिन सरकार के अपने ही नौकरशाह उसको आरोपित कर रहे थे। इन सबके बीच में, इस घने अंधेरे के दौर में गुजरात से नरेंद्र मोदी के रूप में एक रौशनी की किरण दिखी।
मोदी ने अपने पिछले 12 वर्ष के गुजरात में किये हुए कार्य को ”गुजरात मॉडल” के तौर पर रखा जहां संस्कार और स्वावलंबन दोनों की उपस्थिति थी। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही देश में प्रगति और परिवर्तन की एक अभूतपूर्व बयार चल पड़ी है। देश के सांस्कृतिक पुनरुत्थान का स्वप्न भी साकार होने लगा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा भारत के सांस्कृतिक पुनरुथान के लिए उठाये गए कदम
सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण कार्य जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया वह था, 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के तौर पर मान्यता दिलवाना। अपने 27 सितम्बर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिए हुए भाषण के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने योग के विषय को सम्पूर्ण विश्व के सामने प्रखरता से रखते हुए अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का प्रस्ताव रखा जिसके बाद 11 दिसम्बर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र में 177 सदस्य देशों द्वारा 21 जून को “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” के रूप में मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई।
अयोध्या जी का नाम आते ही हर हिन्दू का मन बस एक ही प्रश्न करता था कि राम मंदिर कब बनेगा ? कब ख़तम होगा यह इंतज़ार ? यह वर्षो पुराना कार्य भी सफलता पूर्वक 5 अगस्त, 2020 को सम्पूर्ण हुआ जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अयोध्या जाकर भव्य-दिव्य राम मंदिर की आधारशिला रखी और करोड़ों भारतीयों का सपना साकार किया। जिस भारत के रोम रोम में श्री राम बसते हैं, उसके वासियों के लिए यह हर्ष- उल्लास, गौरव एवं धर्म की विजय का दिन था।
सरकार किस तरह से भारत की सांस्कृतिक विरासतों को संजो रही है, इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण हमें संस्कृति मंत्रालय के कार्यों में देखने को मिल सकता है। जी. किशन रेड्डी जोकि सांस्कृतिक मामलों के मंत्री हैं, उन्होंने 5 अगस्त, 2021 को राज्य सभा में एक लिखित उत्तर में जानकारी दी कि ”1976 से अब तक विदेशों से कुल 54 पुरावशेष प्राप्त किए गए हैं।“ उन्होंने अधिक जानकारी देते हुए कहा, “यह गर्व की बात है कि हम अपनी कई चोरी करके गईं विरासत की वस्तुओं को विदेशों से प्राप्त करने में सक्षम हैं”।
उनके अनुसार पिछले सात वर्षों में बरामद पुरावशेषों की संख्या अब तक की सबसे अधिक है। यदि हम तुलनात्मक रूप से देखें तो 1976-2014 तक कुल 13 पुरावशेष विदेश से भारत लाए गए जबकि 2014-2021 तक कुल 41 पुरावशेष भारत लाए जा चुके हैं।
इस तरह से हम समझ सकते हैं कि भारतीय कलाकृतियों और सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण भारत की विदेश नीति का एक अभिन्न अंग बन गया है। इन ऐतिहासिक वस्तुओं को वापस लाना भारत के गौरव को बहाल करने की एक प्रक्रिया है और हमारे देश के ऐतिहासिक गौरव की सराहना के लिए एक सक्रिय कदम है।
देश में मौजूद हमारी सांस्कृतिक विरासतों के प्रतीकों को जोड़ने का काम किस तरह से किया जा रहा है, इसे हम सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय तथा रेल मंत्रालय के ‘चारधाम परियोजना’ से भी समझ सकते हैं। उत्तराखंड में स्थित इन चार धामों – गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ तथा बद्रीनाथ को आपस में जोड़ने का कार्य रेल मंत्रालय तथा सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है।
वहीं सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने उत्तराखंड में चार-धाम (केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री) के लिए कनेक्टिविटी सुधार के लिए अलग कार्यक्रम शुरू किया है। चारधाम परियोजना के तहत कुल 889 किमी की कुल लंबाई को कवर करने वाले कुल 53 सिविल कार्यों में कुल परियोजना लागत स्वरूप 9474 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं। इसमें से 78 किमी सड़क का निर्माण मार्च 2019 तक पूरा हो चुका है तथा अन्य पर कार्य जारी है।
केंद्र की राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 में ‘भाषाओं के माध्यम से सांस्कृतिक एकीकरण’ को महत्वपूर्ण रूप से शामिल किया गया है। यह नीति भी दूरगामी परिणाम लाने के लिए तैयार है। हर युवा कैसे अपनी भाषा पर गौरव करे यह इस नीति के माध्यम से संभव हो सकेगा। सरकार के ऐसे अनेक प्रयासों से भारत अपनी सांस्कृतिक विरासत को पुनः जागृत करते हुए आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास के पथ पर अग्रसर है।
(लेखक विवेकानंद केंद्र के उत्तर प्रान्त के युवा प्रमुख हैं और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शोधकर्ता हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)