भारतीय अस्मिता और विकास को समर्पित थे दत्तोपंत ठेंगड़ी

भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने अपने पूरे जीवन को राष्ट्र पुनर्निमार्ण के लिए समर्पित कर दिया। उनका हर प्रयास भारतीय अस्मिता और विकास के लिए प्रेरित था। वो भारत के सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति भी सजग रहते थे। अपने लेखन और उद्बोधनों में वह अक्सर कहा करते थे कि हमारी संस्कृति का उद्देश्य संपूर्ण विश्व को मानवता की पथ पर अग्रसर करना है, जहां से हमारी राष्ट्र पुननिर्माण की भावना प्रबल होती है। वो महर्षि अरविंद के कथन की पुनरावृत्ति करते हुए कहते थे, ‘‘सनातन धर्म और हिंदू राष्ट्र दोनों अभेद्य हैं’’। पश्चिम का अंधानुकरण करने वाले इसे नहीं समझ सकते हैं। और यही वजह है कि उन लोगों द्वारा लगातार समाज में विभिन्न प्रकार की भ्रातिंया फैलायी जा रही हैं। इस बात का जिक्र करना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि जब-जब सनातन संस्कृति और हिंदु राष्ट्र की बात की जाती है, तब-तब देश के भीतर का एक तबका इसका प्रबल विरोध करने लगता है। हजारों कुतर्क गढ़ लिए जाते हैं तथा भ्रामक जानकारियां फैलायी जाने लगती हैं। एक घटना का जिक्र करते हुए ठेंगड़ी जी लिखते हैं, ‘‘एक बार एक स्वयंसेवक मित्र ने पूछा कि संघ का कार्य इतने वर्षों से चल रहा है, किन्तु उसका कोई प्रभाव नहीं दिखाई देता, ऐसे में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना कब होगी ? मैंने कहा – बेटा जब तुम्हारा जन्म होगा, इसपर उसने चैेंककर कहा – मेरा जन्म तो हो चुका है, तो मैंने कहा कि हिन्दू राष्ट्र भी तो ऋग्वेदपूर्व से चल रहा है, जब से इतिहास ने आँखें खोली हैं, तब से यह हिन्दू राष्ट्र है ही, तो नई स्थापना कौन सी होनी है ?”

दत्तोपंत जी ठेंगड़ी हर उस व्यक्ति और संस्था की सराहना करते थे, जिनका लक्ष्य विकसित भारत था। चाहे वह किसी भी देश-काल स्थिति का व्यक्ति हो। विनायक दामोदर सावरकर की एक उक्ति की चर्चा करते हुए वो लिखते हैं कि एक बार सावरकर जी ने कहा था  – तुम कहते हो कि तुम मुसलमान हो और मैं हिंदु हूं, इसलिए मै कहता हूं कि मैं हिंदू हूं और तुम मुसलमान हो, वरना मैं तो विश्व मानव हूँ – और सही अर्थों में हिंदु अपने आप में विश्व मानव है। उसे अपनी इस विशेषता को सिद्ध नहीं करना है क्योंकि सदियों पहले हमारे पूर्वजों ने अपने आचरण और व्यहार से इस बात को अक्षरशः सिद्ध कर दिया था।

आज देश में सक्रिय वामपंथ और इस्लामी संगठन भले ही इस बात को मानने से इनकार करें लेकिन यह सत्य है कि भारत आदिकाल से ही हिंदू राष्ट्र रहा है। ठेंगड़ी जी इस बात को तर्क से सिद्ध करने की पुरजोर कोशिश किया करते थे। वो कहा करते थे कि हिंदु राष्ट्र और अंधेरा कमरा दोनो एक जैसा ही हैं, जैसे अंधेरे कमरे में पड़ी वस्तुएं दीपक जलाने के बाद ही दिखते हैं, वैसे ही हिंदु राष्ट्र भी सत्य सनातन है, लेकिन कुछ लोगों की गलतफहमियों और भ्रामक जानकारी की वजह से नहीं दिखता है, इसी को दिखाने की कोशिश संघ परिवार कर रहा है।

दत्तोपंत जी ठेंगड़ी हर उस व्यक्ति और संस्था की सराहना करते थे, जिनका लक्ष्य विकसित भारत था। चाहे वह किसी भी देश-काल स्थिति का व्यक्ति हो। विनायक दामोदर सावरकर की एक उक्ति की चर्चा करते हुए वो लिखते हैं कि एक बार सावरकर जी ने कहा था  – तुम कहते हो कि तुम मुसलमान हो और मैं हिंदु हूं, इसलिए मै कहता हूं कि मैं हिंदू हूं और तुम मुसलमान हो, वरना मैं तो विश्व मानव हूँ – और सही अर्थों में हिंदु अपने आप में विश्व मानव है। उसे अपनी इस विशेषता को सिद्ध नहीं करना है क्योंकि सदियों पहले हमारे पूर्वजों ने अपने आचरण और व्यहार से इस बात को अक्षरशः सिद्ध कर दिया था। हमने कभी किसीसे अपने स्वार्थ और विस्तार की लड़ाई नहीं लड़ी, बल्कि जब भी शस्त्र ग्रहण किया मानवता की रक्षा के लिए ही किया। इतिहास में इसके हजारों उदाहरण पड़े हैं।  हमारे पूर्वजों ने मानव का विचार हमेशा मानव के रूप में ही किया ऋग्वेद काल से लेकर वर्तमान तक हमारी कल्पना का हिस्सा ही विश्व कल्याण रहा है। आज भी यज्ञ अथवा किसी वैदिक कार्यक्रम के बाद ‘‘विश्व का कल्याण हो और प्राणियों में सद्भावना हो’’ का ही जय घोष होता है। जिस धर्मशास्त्र में इतना बृहद् दर्शन निहित हो, उसको किसी के द्वारा प्रमाणिकता की क्या आवश्यकता है।  हम हिंदु हैं, हम विश्व मानव हैं, यह हम नहीं हमारे संस्कार और आचरण कहते हैं और सिद्ध भी  करते हैं।

(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च एसोसिएट हैं। स्रोतः- दत्तोपंत ठेंगड़ी जीवन दर्शन, दत्तोपंत ठेंगड़ी विचार दर्शन, पांचजन्य, विश्व संवाद केन्द्र भोपाल।)