धर्म, आस्था और विश्वास से जुड़े ऐसे पुराने और जटिल मामले में शायद इससे सुन्दर कोई निर्णय नहीं हो सकता था। कितना अद्भुत है न कि इतने लम्बे समय तक चले मामले में जब निर्णय आता है तो उसे न कोई पक्ष अपनी जीत मानता है और न किसीकी हार, बल्कि राष्ट्र को आगे ले जाने के अवसर के रूप में सभी पक्ष उसको स्वीकार करते हैं। क्रिकेटर मोहम्मद कैफ ने इस मामले पर ट्विट करते हुए बहुत सही बात लिखी है कि, “ऐसा केवल भारत में ही हो सकता है, जहाँ एक जस्टिस अब्दुल नज़ीर सर्वसम्मति से लिए फ़ैसले में शामिल थे और एक केके मोहम्मद ने ऐतिहासिक दस्तावेज़ दिए। भारत की संकल्पना सब विचारधाराओं से बहुत बड़ी है।“
9 नवंबर, 2019 की तारीख भारतीय इतिहास में सामाजिक सद्भाव को बढ़ाने वाले एक ऐतिहासिक दिन के रूप में दर्ज हो चुकी है। इस दिन एक तरफ माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने लम्बे समय से चले आ रहे रामजन्मभूमि विवाद पर निर्णय देकर उसका समाधान किया तो वहीं दूसरी तरफ भारत-पाकिस्तान के बीच सिख समुदाय की आस्था से जुड़े करतारपुर कॉरिडोर की शुरुआत हुई।
सर्वोच्च न्यायालय ने 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटने के फैसले को बदलते हुए पूरी विवादित जमीन हिन्दू पक्ष को देने का फैसला सुनाया। यानी कि रामलला विराजमान अब अपने स्थान पर विराजमान रहेंगे। साथ ही न्यायालय ने मुस्लिमों को अयोध्या में ही अन्यत्र पांच एकड़ भूमि, जो कि विवादित भूमि की लगभग दोगुनी है, मस्जिद निर्माण के लिए देने का आदेश भी सरकार को दिया।
संविधान पीठ के पाँचों न्यायाधीशों ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया जिसका देश भर में सभी पक्षों और सम्प्रदायों द्वारा स्वागत हो रहा है। अब सरकार तीन महीने में ट्रस्ट बनाकर मंदिर निर्माण की दिशा में कार्य शुरू कर देगी। मुस्लिम भी कह रहे कि पांच एकड़ में वे भारत की सबसे बड़ी और आलिशान मस्जिद बनाएंगे। जाहिर है, न्यायालय के निर्णय ने सबको संतुष्ट कर दिया है।
लगभग पांच सौ सालों से चले आ रहे इस विवाद का इस प्रकार से न्यायिक समाधान होना जब-तब उठने वाले अनेक सवालों के बावजूद, भारतीय न्याय प्रणाली की शक्ति का ही सूचक है। इस विवाद को लेकर एक प्रकार से लोगों के मन में यह धारणा पैठ गयी थी कि इसका हाल-फिलहाल सरलता से कोई अंत नहीं हो सकेगा, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने जिस प्रकार इस पर नियमित सुनवाई करके एक शानदार फैसला दिया है, वो दिखाता है कि देश की न्याय व्यवस्था में देर भले हो जाए, मगर न्याय की भावना दुरुस्त है।
रामजन्मभूमि विवाद, कानूनी रूप से बेशक एक भूमि-विवाद था, लेकिन हिन्दू समुदाय के लिए इसमें उसकी आस्था और विश्वास का विषय भी था। मुस्लिम समुदाय के लिए भी यही स्थिति थी। अच्छी बात यह रही कि न्यायालय ने मामले की सुनवाई से लेकर फैसले तक आस्था से जुड़े विषयों को भी नजरंदाज नहीं किया और तथ्यों पर भी नजर बनाए रखी।
न्यायालय ने माना कि रामजन्मभूमि को लेकर हिन्दुओं की आस्था कि यहाँ भगवान् राम का जन्म हुआ था, निर्विवाद है। आस्था का विषय न्यायालय ने संज्ञान में अवश्य रखा, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि आस्था के आधार पर निर्णय नहीं हो सकता है। न्यायालय के निर्णय का आधार तथ्य, प्रमाण और क़ानून ही रहे।
पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट के आधार पर यह सिद्ध हो गया कि मस्जिद किसी खाली जगह पर नहीं बनी थी, उसके नीचे मंदिर था। लेकिन यह सिद्ध नहीं हुआ कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को तोड़कर हुआ था। ऐसे जटिल मामले में जन्मभूमि पर हिन्दुओं को अधिकार देते हुए मुस्लिमों को अलग जमीन देने का निर्णय सुनाकर न्यायालय ने न्याय का एक उत्कृष्ट उदाहरण ही प्रस्तुत किया है।
विचार करें तो न्यायालय के इस निर्णय में हमें रामराज्य में परिचालित सभी प्रकार के भेदभावों से मुक्त समानता की भावना के दर्शन होते हैं, जो कि वास्तव में भारतीय संस्कृति की भावना भी है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस में रामराज्य के सामाजिक सद्भाव का वर्णन करते हुए लिखा है, ‘बयरु न कर काहू सन कोई, राम प्रताप विषमता खोई… खग मृग सहज बयरु बिसराई, सबन्हि परस्पर प्रीति बढ़ाई’ यानी कि राजा रामचंद्र का शासन ऐसा था कि जिसमें मनुष्य तो मनुष्य, पशु-पक्षियों के बीच भी आपस में कोई वैरभाव नहीं रह गया था। सभी प्राणियों के बीच की विषमता समाप्त हो गयी थी, इसलिए किसीको किसीसे भय-ईर्ष्या आदि नहीं रह गए थे और सब परस्पर प्रेम से रहते थे।
कह सकते हैं कि यह महाकवि तुलसी की भक्ति से प्रेरित और काव्य की शक्ति से पुष्ट एक रूपक है, लेकिन इसके माध्यम से उन्होंने सामाजिक सद्भाव और समानता के जिस आदर्श रूप का संदेश दिया है, वर्तमान समय में अपने सभ्य होने का गौरव करने वाले आधुनिक मनुष्य का लक्ष्य उसी सद्भाव और समानता को साकार करना होना चाहिए। इसके अलावा भगवान् राम के चरित्र में सबको जोड़कर चलने की सर्वसमावेशी दृष्टि भी है।
वन में सीता-हरण के पश्चात् अपने राज्य अयोध्या से सेना बुलाने की बजाय वहां की स्थानीय वानर, रीछ, लंगूर आदि विविध जातियों में एकता का संगठन करके अपने राष्ट्र पर चढ़े आ रहे राक्षसों का उनके गढ़ में जाकर अंत करते हैं। सुखद है कि इन भगवान् राम के मंदिर को लेकर आज जब सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आया है, तो उसके भीतर भी हमें राम-चरित्र में निहित समानता और सर्समावेशिता की दृष्टि के दर्शन होते हैं।
यह इस निर्णय की शक्ति ही है कि जिस मामले ने अबतक समाज में एक प्रकार से तनाव पैदा करने का काम किया था और माना जा रहा था कि इसका फैसला समाज में अशांति ही पैदा करेगा, वो फैसला समाज में सद्भाव और सौहार्द बढ़ाने का कारक बनकर उभरा है।
धर्म, आस्था और विश्वास से जुड़े ऐसे पुराने और जटिल मामले में शायद इससे सुन्दर कोई निर्णय नहीं हो सकता था। कितना अद्भुत है न कि इतने लम्बे समय तक चले मामले में जब निर्णय आता है तो उसे न कोई पक्ष अपनी जीत मानता है और न किसीकी हार, बल्कि राष्ट्र को आगे ले जाने के अवसर के रूप में सभी पक्ष उसको स्वीकार करते हैं। क्रिकेटर मोहम्मद कैफ ने इस मामले पर ट्विट करते हुए बहुत सही बात लिखी है कि, “ऐसा केवल भारत में ही हो सकता है, जहाँ एक जस्टिस अब्दुल नज़ीर सर्वसम्मति से लिए फ़ैसले में शामिल थे और एक केके मोहम्मद ने ऐतिहासिक दस्तावेज़ दिए। भारत की संकल्पना सब विचारधाराओं से बहुत बड़ी है।“
इस फैसले के बाद भारत और उसके इतिहास की धारा बदल जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह केवल एक मंदिर या मस्जिद के निर्माण की बात नहीं है, बल्कि इसके माध्यम से भारत में साम्प्रदायिक सद्भाव की जो भावना हाल के समय में कुछ अप्रिय घटनाओं के कारण प्रश्नांकित हो रही थी, उसपर भी शायद विराम लग जाए।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)