अरुणाचल प्रदेश में हिंदू जनसंख्या के सन्दर्भ में केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू के बयान पर कुछ लोग विवाद खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं। जबकि उनका बयान एक कड़वी हकीकत को बयां कर रहा है। आश्चर्य की बात यह है कि उनके बयान पर वो लोग हायतौबा मचा रहे हैं, जो खुद को पंथनिरपेक्षता का झंडाबरदार बताते हैं। हिंदू आबादी घटने के सच पर विवाद क्यों हो रहा है, जबकि यह तो चिंता का विषय होना चाहिए। जनसंख्या असंतुलन आज कई देशों के सामने गंभीर समस्या है, लेकिन हमारे नेता इस गम्भीर चुनौती को भी क्षुद्र मानसिकता के साथ देख रहे हैं।
अरुणाचल प्रदेश में ईसाई आबादी में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की गई। यह वृद्धि साफतौर पर ईसाई मिशनरीज की ओर से बड़े स्तर पर पूर्वोत्तर के राज्यों में चलाये जा रहे सुनियोजित मतांतरण के खेल की कलई खोलती है। किसी एक संप्रदाय की आबादी में 11.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी सहज नहीं हो सकती। अरुणाचल प्रदेश में वर्ष 2001 में ईसाई आबादी 18.5 प्रतिशत थी, जो 2011 में बढ़कर 30 प्रतिशत हो गई, जबकि हिंदू आबादी 2001 में 34.6 फीसदी थी जो कि घटकर 2011 में केवल 29 प्रतिशत रह गई। इतनी तेजी से जनसंख्या में आ रहे बदलाव सहज नहीं माने जा सकते। इस बदलाव को गंभीरता से लेने की जरूरत है।
केंद्रीय मंत्री के बयान पर राजनीतिक हल्ला कर रहे लोग कांग्रेस के आरोप पर मुंह में गुड़ दबा कर क्यों बैठ गए थे ? रिजिजू ने अपनी तरफ से कुछ नहीं कहा है, बल्कि कांग्रेस के झूठे आरोप पर अरुणाचल प्रदेश की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत की है। उल्लेखनीय है कि अरुणाचल प्रदेश कांग्रेस समिति ने नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार पर अरुणाचल प्रदेश को एक हिंदू राज्य में बदलने की कोशिश करने का आरोप लगाया था। कांग्रेस का यह आरोप आपत्तिजनक ही नहीं, बल्कि घोर निंदनीय है। कांग्रेस के इस आरोप के सन्दर्भ में ही गृह राज्यमंत्री का यह बयान आया है। उन्होंने कांग्रेस के इन आरोपों के जवाब में कई ट्वीट कर कहा कि क्यों कांग्रेस इस तरह के गैर जिम्मेदाराना बयान दे रही है? अरुणाचल प्रदेश के लोग एक-दूसरे के साथ शांतिपूर्ण तरीके से एकजुट होकर रहते हैं। कांग्रेस को ऐसे उकसाने वाले बयान नहीं देने चाहिये। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। सभी धार्मिक समूह आजादी से और शांतिपूर्ण तरीके से रहते हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भारत में हिंदू आबादी कम हो रही है, क्योंकि हिंदू कभी लोगों का धर्म परिवर्तन नहीं कराते जबकि कुछ अन्य देशों के विपरीत हमारे यहां अल्पसंख्यक फल-फूल रहे हैं।
रिजिजू अरुणाचल प्रदेश के रहने वाले हैं और बौद्ध धर्म के अनुयायी है। वह प्रदेश की हकीकत को करीब से जानते हैं। यह सच सब जानते हैं कि भारत में कुछ संस्थाएं सुनियोजित ढंग से मतांतरण के कार्य में लिप्त हैं। यही कारण है कि भारत के कई राज्यों, खासकर सीमावर्ती राज्यों में हिंदू जनसंख्या निरंतर कम होती गयी है। इतिहास गवाह है कि देश के जिस हिस्से में भी हिंदू आबादी कम हुई है, वह हिस्सा भारत से टूटकर अलग हो गया। आज भी जिन हिस्सों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, वहां भारत विरोधी गतिविधियां सिरदर्द बनी हुई हैं। इसलिए किसी राज्य में जनसंख्या असंतुलन पर राजनीतिक वितंडावाद खड़ा करने की अपेक्षा देशहित में सार्थक विमर्श आवश्यक है। ऐसे में विपक्षी नेताओं को अपने क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर जनसंख्या असंतुलन के गंभीर खतरों से निपटने के उपाय सोचने चाहिए।
केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने जो भी कहा है, जनगणना के आंकड़े भी उसकी पुष्टि करते दिखते हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में हिंदुओं की आबादी 79.80 प्रतिशत रह गई है, जबकि 2001 में देश में हिंदू आबादी 80.5 प्रतिशत थी। वहीं, मुस्लिम आबादी 13.4 प्रतिशत से बढ़कर 14.23 प्रतिशत हो गयी है। अगर हम अरुणाचल प्रदेश की बात करें तो यहाँ की स्थिति और भी चिंताजनक होती जा रही है। अरुणाचल प्रदेश में ईसाई आबादी में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की गई। यह वृद्धि साफतौर पर ईसाई मिशनरीज की ओर से बड़े स्तर पर पूर्वोत्तर के राज्यों में चलाये जा रहे सुनियोजित मतांतरण के खेल की कलई खोलती है। किसी एक संप्रदाय की आबादी में 11.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी सहज नहीं हो सकती। अरुणाचल प्रदेश में वर्ष 2001 में ईसाई आबादी 18.5 प्रतिशत थी, जो 2011 में बढ़कर 30 प्रतिशत हो गई, जबकि हिंदू आबादी 2001 में 34.6 फीसदी थी जो कि घटकर 2011 में केवल 29 प्रतिशत रह गई। इतनी तेजी से जनसंख्या में आ रहे बदलाव सहज नहीं माने जा सकते। इस बदलाव को गंभीरता से लेने की जरूरत है।
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)