दिल्ली चुनाव के समय दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शिला दीक्षित के घोटालों के खिलाफ तीन सौ पन्ने के सबूत अपने साथ लेकर घूमने वाले अरविन्द केजरीवाल जब पूर्ण बहुमत के साथ दिल्ली की सत्ता में आए तो वे तीन सौ पन्ने के सबूत की बात केजरीवाल ऐसे भूले कि फिर कभी उनके श्रीमुख से उनका जिक्र भी सुनने में नहीं आया। आज वे लगभग डेढ़ साल से दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन शिला दीक्षित के विरुद्ध एक जांच का आदेश तक नहीं दिए हैं। बल्कि शिला सरकार के समय के घोटाले से सम्बंधित जांच का आदेश केंद्र सरकार के प्रतिनिधि उपराज्यपाल की तरफ से एसीबी को दिया गया है और जांच चल भी रही है। इन दिनों केजरीवाल पंजाब चुनाव की तरफ लगे हैं और वहाँ सत्ता में आते ही प्रकाश सिंह बादल वगैरह को जेल भेजने की बात कर रहे हैं। बिलकुल वैसे ही, जैसे शिला सरकार के विषय में कहा करते थे। उनसे पुछा जाना चाहिए कि शिला दीक्षित को देश की किस जेल में भेजकर आए हैं, जो अब बादल को भेजने की बात कह रहे हैं ?
अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी दोनों के ही अंदर किसी भी स्तर पर किसी भी प्रकार का स्थायित्व नहीं है। इनके लिए सिर्फ अपना लाभ सर्वोपरि है, जिसके लिए ये किसी भी हद तक बेशर्मी के साथ पेश आ सकते हैं। तभी तो जिन बातों को दिल्ली के मतदाताओं से करके वे अबतक पूरा न कर सके, अब वही बातें पंजाब की जनता के सामने दुहरा रहे हैं। क्या उन्हें ऐसा लगता है कि इस देश की जनता मूर्ख है, जो हर बार उनके झांसे में आ जाएगी। यह उनकी बड़ी गलतफहमी है, जो पंजाब चुनाव के बाद वैसे ही दूर हो जाएगी जैसे खुद को राष्ट्रीय नेता समझने की उनकी गलतफहमी बनारस में मोदी के खिलाफ चुनाव हारकर दूर हुई थी।
केजरीवाल यह भी कह रहे हैं कि पंजाब में खूंटा गाड़कर बैठ जाऊंगा। याद्दाश्त पर जोर डालें तो इसीसे मिलती-जुलती बात वे दिल्ली चुनाव के समय दिल्ली के मतदाताओं से भी कहे थे और उसके बाद ४९ दिन की सरकार छोड़ बनारस में मोदी का मुकाबला करने निकल पड़े थे। कुल मिलाकर कहने का मतलब यह है कि अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी दोनों के ही अंदर किसी भी स्तर पर किसी भी प्रकार का स्थायित्व नहीं है। इनके लिए सिर्फ अपना लाभ सर्वोपरि है, जिसके लिए ये किसी भी हद तक बेशर्मी के साथ पेश आ सकते हैं। तभी तो जिन बातों को दिल्ली के मतदाताओं से करके वे अबतक पूरा न कर सके, अब वही बातें पंजाब की जनता के सामने दुहरा रहे हैं। क्या उन्हें ऐसा लगता है कि इस देश की जनता मूर्ख है, जो हर बार उनके झांसे में आ जाएगी। यह उनकी बड़ी गलतफहमी है, जो पंजाब चुनाव के बाद वैसे ही दूर हो जाएगी जैसे खुद को राष्ट्रीय नेता समझने की उनकी गलतफहमी बनारस में मोदी के खिलाफ चुनाव हारकर दूर हुई थी। उसके बाद दिल्ली की जनता के सामने आकर अपने किए के लिए माफ़ी मांगने का स्वांग किए थे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने केजरीवाल सरकार के २१ संसदीय सचिवों की नियुक्ति को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया है। बता दें कि इन स्वघोषित ईमानदार मुख्यमंत्री महोदय ने अपने विधायकों को ही इन पदों पर भी बिठा दिया था। बहरहाल, इसके बाद दिल्ली सरकार के काम-काज में कैसी समस्या आ सकती है और दिल्ली की जनता को कितनी दिक्कत हो सकती है, शायद यह सोचने की केजरीवाल को आवश्यकता ही नहीं लग रही। दूसरी तरफ उनके पूर्व मंत्री संदीप कुमार के सेक्स सीडी प्रकरण जिसमें आए दिन नए-नए खुलासे हो रहे हैं। यहाँ तक कि अब तो संदीप कुमार यह भो कबूल चुके हैं कि वे खुद कहकर इस तरह के विडियो बनवाते थे। और ऐसे संदीप कुमार के बचाव में आप के प्रवक्ता आशुतोष उनकी तुलना गांधी, लोहिया और वाजपेयी जैसे महान नेताओं से करने लगते हैं। मतलब कि संगठन से लेकर सरकार तक केजरीवाल के नेतृत्व का सबकुछ एकदम डांवाडोल हालत में है, लेकिन उन्हें तो जैसे इन सब की कोई परवाह ही नहीं है, तभी तो दिल्ली को छोड़ पंजाब में खूंटा गाड़ने में लगे हुए हैं। लेकिन उन्हें अंदाज़ा नहीं है कि पंजाब में तो खैर उनकी सरकार बनने वाली नहीं है, लेकिन इस रहन के साथ तो अगले चुनाव में दिल्ली भी बड़ी बुरी तरह से उनके हाथ से खिसक जाएगी। पार्टी तो अपने पतन की ओर अभी से अग्रसर है। दरअसल ऐसे अस्थिर और अराजक राजनीतिक दल का यही हश्र अपेक्षित भी होता है। चूंकि, ऐसे दल न केवल लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए घातक हैं, बल्कि भारतीय राजनीति की शुचिता के लिए हानिकारक भी हैं। इनका राजनीतिक रूप से हाशिये पर रहना ही ठीक है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)