राहुल गांधी और सोनिया गांधी दोनों स्वयं जमानत पर छूटे हुए हैं और घोटाले के आरोपी होकर बेखौफ घूम रहे हैं। बात-बात पर और अक्सर बिना किसी बात के ही मोदी सरकार की मीनमेख निकालने वाले राहुल गांधी कभी अपने गिरेबान में झांकना उचित नहीं समझते हैं कि नेशनल हेराल्ड मामले में उन्होंने कितनी बातें छुपाकर रखी हैं। राहुल गांधी ने इस मामले में शुरू से तथ्य छुपाए हैं। उन्होंने यह कभी नहीं बताया कि वे यंग इंडिया नामक कंपनी के डायरेक्टर थे।
नेशनल हेराल्ड हाउस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने आखिर महत्वपूर्ण आदेश दे ही दिया। इस आदेश के अनुसार कांग्रेस आलाकमान सोनिया-राहुल के स्वामित्व वाली कंपनी एजेएल को हेराल्ड हाउस खाली करना होगा। यह बात अलग है कि फिलहाल कोर्ट ने भवन को खाली करने की समय सीमा तय नहीं की है लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस पर इसे खाली करने का दबाव तो रहेगा ही। यदि कांग्रेस ऐसा नहीं करती है तो उसकी किरकिरी होना तय है।
भवन खाली करने के संबंध में हाईकोर्ट ने पिछले साल दिसंबर में ही आदेश जारी कर दिया था लेकिन इस फैसले को चुनौती दे दी गई थी। अब दो महीने बाद फिर बात वहीं पर आ गई है। केंद्र सरकार 56 साल पुरानी लीज को खत्म करते हुए हेराल्ड हाउस को खाली करने को पहले ही कह चुकी है, बावजूद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सोनिया गांधी के कानों पर जूं नहीं रेंग रही। भवन खाली करवाने के पीछे सरकार के तर्क बिल्कुल साफ-सुथरे और व्यवहारिक हैं। यह इमारत प्रिंटिंग कार्य के लिए नियत थी, लेकिन अब जब यहां प्रिंटिंग होती नहीं है, ऐसे में इसे खाली करना ही चाहिये।
राहुल गांधी और सोनिया गांधी दोनों स्वयं जमानत पर छूटे हुए हैं और घोटाले के आरोपी होकर बेखौफ घूम रहे हैं। बात-बात पर और अक्सर बिना किसी बात के ही मोदी सरकार की मीनमेख निकालने वाले राहुल गांधी कभी अपने गिरेबान में झांकना उचित नहीं समझते हैं कि नेशनल हेराल्ड मामले में उन्होंने कितनी बातें छुपाकर रखी हैं। राहुल गांधी ने इस मामले में शुरू से तथ्य छुपाए हैं। उन्होंने यह कभी नहीं बताया कि वे यंग इंडिया नामक कंपनी के डायरेक्टर थे। बताया जाता है कि इसी कंपनी ने पूरे 5 हजार करोड़ जैसी बड़ी राशि का गबन किया और देश को बड़ा आर्थिक नुकसान पहुंचाया।
बेहतर होता कि केंद्र सरकार पर अंगुली उठाने से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी स्वयं के गिरेबान में झांककर देख लेते और नेशनल हेराल्ड पर वस्तुस्थिति साफ़ करते। उन्होंने यंग इंडिया कंपनी के ज़रिये एक अहम वित्तीय मसला समाचारों से छुपाए रखा जिसके चलते व्यापक पैमाने पर कालेधन को सफेद करने की कारगुजारी की संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
कम से कम तथ्य और दृष्टांत तो यही इशारा करते हैं, अन्यथा क्या जरूरत थी कि 2011 में कांग्रेस ने अपने शासन के दौरान उक्त कंपनी को कथित तौर पर 90 करोड़ रुपए का कर्ज दिया और इसकी सारी देनदारियां स्वयं ले लीं। इसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों ने हिस्सेदारी ली थी। नेशनल हेराल्ड मामले में उनके साथ मोतीलाल वोरा, सैम पित्रोदा, आस्कर फर्नांडीस और सुमन दुबे जैसे कांग्रेसी नेतागण भी आरोपी हैं। कहने का आशय यह है कि इस गोरखधंधे में पार्टी के ऊपर से लेकर नीचे तक के नेता सवालों के घेरे में हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट की सिंगल बेंच के गत आदेश को चुनौती देने वाली एसोसिएट जर्नल्स लिमिटेड की याचिका को भी हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। एजेएल के वकील अभिषेक मनु सिंघवी का तर्क था कि शेयर होल्डर होने का अर्थ संबंधित कंपनी का मालिक होना नहीं हो सकता, भले ही उसका सौ प्रतिशत शेयर होल्ड हो, जबकि सरकार का सीधा सा कहना है कि जिस ढंग से शेयर स्थानांतरित हुए हैं, उस पर न्यायालय को अवश्य संज्ञान लेना चाहिये। आखिर हुआ भी वही। अदालत ने आदेश जारी करते हुए कांग्रेस को हेराल्ड भवन खाली करने को कहा है।
क्या राहुल गांधी इस ओर देखेंगे या नहीं? क्या अब राहुल गांधी देश को इसका जवाब देना उचित समझेंगे या नहीं? क्या बात-बात पर मीडिया से मुखातिब होने वाले कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरेजवाला अब प्रेस वार्ता बुलाकर इस आदेश की जानकारी दे सकेंगे या नहीं? क्या देश के प्रधानमंत्री को रोज अपशब्द कहने वाले बड़बोले राहुल गांधी स्वयं को उसी विशेषण से संबोधित करेंगे या नहीं? इन सारे सवालों का जवाब ना में ही हो सकता है, क्योंकि सच बोलने और दोष स्वीकारने के लिए आत्मबल और नैतिकता की दरकार होती है, और कांग्रेस में इसका पूरी तरह से अभाव है।
जो कांग्रेस खुद घोटालों और अनियमितताओं के कीचड़ में आकंठ डूबी है, वह किस मुंह से केंद्र सरकार पर अंगुली उठाती है। यह बहुत ही हैरान करने वाली और शर्मनाक हरकत है। अब यदि राहुल गांधी में जरा भी साहस और समझदारी है तो उन्हें स्वयं नैतिक आधार पर अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिये।
हेराल्ड हाउस मामले में भी कांग्रेस का असली चेहरा जनता के सामने आ चुका है और अब कांग्रेस इस किरकिरी से ध्यान हटाने के लिए दूसरे प्रपंच लंबे समय तक करने में असफल रही है। देखना यह है कि अब अपनी फजीहत से बचने के लिए खिसियाये और बौखलाए राहुल गांधी नया क्या बहाना खोजते हैं और अपनी इस फजीहत का ठीकरा किसके सिर फोड़ते हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)