दिल्ली दंगों पर गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में कहा था, ‘‘दिल्ली पुलिस इतनी कठोर कार्यवाही करेगी कि दंगा करने वालों के लिए यह एक सबक होगा।’’ लेकिन अब जब दिल्ली दंगों के आरोपियों पर कार्यवाही की जा रही है तो हमेशा की तरह असहिष्णुता गिरोह आरोपियों के बचाव में लगा हुआ है।
इस वर्ष की शुरुआत में सीएए विरोध के नाम पर दिल्ली को जलाने की साजिश की गई थी। लेकिन, अब जब पुलिस द्वारा कार्यवाही की जा रही है तो आरोपियों द्वारा ‘विक्टिम कार्ड’ खेला जा रहा है। गौरतलब है कि दिल्ली हिंसा मामले में हाल ही में पुलिस की स्पेशल सेल ने दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की है।
यह चार्जशीट कुल 17,500 पन्नों की है। पुलिस ने कोर्ट को बताया कि दिल्ली हिंसा के मामले में उसने अभी तक कुल 747 लोगों को गवाह बनाया है, जबकि 15 लोग इसमें आरोपी हैं। इनमें आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन समेत 15 लोगों के नाम शामिल हैं।
पुलिस की इस चार्जशीट में कांग्रेस की पूर्व पार्षद इशरत जहां, राजद के युवा विंग के मीरान हैदर के नाम भी शामिल हैं। गौरतलब है कि इस मामले में पुलिस ने पूछताछ के बाद उमर खालिद को भी गिरफ़्तार किया है। इस चार्जशीट में शरजील इमाम समेत छह अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार किया गया है। लेकिन चार्जशीट में फ़िलहाल उनके नाम इसलिए नहीं हैं क्योंकि उन्हें कुछ दिन पहले ही गिरफ्तार किया गया है।
पुलिस इस सभी के नामों के साथ सप्लिमेंट्री चार्जशीट भी जल्द फाइल करेगी। इन सभी के खिलाफ स्पेशल सेल की एसआईटी ने अनलॉफुल एक्टिविटी प्रीवेंशन एक्ट (UAPA) के तहत चार्जशीट दाखिल किया है। स्पेशल सेल के मुताबिक इन सभी पर दिल्ली में हिंसा की साजिश रचना के आरोप हैं। जिनमें समुदाय विशेष को भड़काना, हिंसा की योजना के लिए व्हाट्सएप ग्रुप, अन्य सोशल मीडिया के जरिए लोगों को उकसाना तथा हिंसा भड़काने के लिए हथियारों को जमा करना शामिल है।
ये चार्जशीट उस हिंसा का हिस्सा है जिसमें सीएए के नाम पर दिल्ली को आग लगाने का षडयंत्र रचा गया और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के भारत दौरे के दौरान सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया ताकि विश्वपटल पर देश का नाम ख़राब किया जा सके।
पुलिस की चार्जशीट के मुताबिक, दंगे फैलाने तथा एक विशेष समुदाय के लोगों की हत्या, आगजनी करने के लिए एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया था, जिसमें 125 लोगों को जोड़ा गया था। ज्ञातव्य हो कि यह ग्रुप हिंसा से एक दिन पहले बनाया गया था, जिसमें एक व्हाट्सएप ग्रुप के मेंबर ने यहाँ तक कहा था कि ‘‘मैं गंगा विहार का रहने वाला हूं। अगर कोई दिक्कत आए, लोग कम पड़ें तो मुझे बताना मैं पूरी फौज लेकर आ जाऊंगा। हमारे पास सब समान है, गोली बंदूक सब कुछ। अभी-अभी दो मारे भी हैं और नाले में फेंका है’’।
चार्जशीट में यह भी लिखा है कि 25-26 फरवरी को दंगों के दौरान जोहरीपुर नाले के पास से जो लोग गुजर रहे थे। उनसे नाम पूछा जा रहा था, उसके बाद मुस्लिम समुदाय का नहीं होने पर उनकी हत्या कर शव को नाले में बहा दिया था।
चार्जशीट के मुताबिक व्हाट्सएप ग्रुप का मुख्य आरोपी अब तक फरार है और पुलिस उसकी तलाश कर रही है। गौरतलब है कि अरविंद केजरीवाल की पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन के ऐसे कई विडियो सामने आए जिनमें वो हथियार लेकर घूमते नजर आ रहे हैं। इन दंगों में मारे गए आईबी के कॉन्स्टेबल अंकित शर्मा के भाई ने ताहिर हुसैन पर दंगे में शामिल होने का आरोप लगाया है।
एक तरफ तो अरविंद केजरीवाल की पार्टी के लोग दिल्ली दंगों की साजिश में शामिल रहते हैं, जिस पर चुनाव होने के कारण तब केजरीवाल चुप्पी साधे रहते हैं और सत्ता मिलते ही अपना दोमुंहापन दिखाते हुए विज्ञापन छापते हैं कि दंगा पीड़ितों को मुआवजा लेने के लिए पहचान पत्र दिखाने होंगे।
गौरतलब है कि ताहिर हुसैन ने खुद यह माना है कि ‘‘दिल्ली दंगे हिन्दुओं को सबक सिखाने के लिए किए गए थे।’ उसने पीएफआई जैसे संगठनों द्वारा दंगों में फंडिंग को स्वीकारा है। लेकिन सिर्फ ताहिर हुसैन ही क्यों केजरीवाल की पार्टी के और भी नेता इसमें संलिप्त थे।
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की रिपोर्ट के मुताबिक आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह के तार भी पीएफआई से जुड़े हुए थे। इसमें कहा गया है कि संजय सिंह पीएफआई के अध्यक्ष मोहम्मद परवेज अहमद से लगातार संपर्क में थे। ईडी ने कहा है कि संजय सिंह और परवेज के बीच व्हाट्सएप चैट भी की गई थी और दोनों ने एक-दूसरे से मुलाकात भी की थी।
ज्ञातव्य हो कि दिल्ली दंगों पर गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में कहा था कि ‘‘दिल्ली पुलिस इतनी कठोर कार्यवाही करेगी कि दंगा करने वालों के लिए यह एक सबक होगा।’’ लेकिन अब जब दिल्ली दंगों के आरोपियों पर कार्यवाही की जा रही है तो हमेशा की तरह असहिष्णुता गिरोह आरोपियों के बचाव में लगा हुआ है।
हाल ही में जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद की गिरफ़्तारी पर ऐसा माहौल बनाया गया मानो देश पर आपातकाल छा गया हो। इसमें वही पुराने चेहरे हैं जो खुद को लोकतंत्र का रक्षक घोषित किए फिरते हैं। जिनके लिए अल्पसंख्यक का अर्थ महज एक संप्रदाय से है, इस खास संप्रदाय के लोग चाहे पूरे देश में आग ही क्यों न लगा दें। परन्तु मजाल हो किसी की जो इन्हें कोई एक शब्द बोल दे! पूरे देश में असहिष्णुता हावी हो जाएगी।
ज्ञातव्य हो कि यह वही उमर खालिद है जिसके पिता सैय्यद कासिम इलियास स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) के सदस्य रह चुके हैं। इस ‘शांतिप्रिय’ संगठन का मुख्य उद्देश्य ‘भारत को आजाद कर इस्लामिक राष्ट्र बनाना है’।
अगर कपिल मिश्रा ने रोड से हटने का आह्वान किया तो वो सांप्रदायिक हैं, क्योंकि दंगों की आड़ में सड़क जाम करना और जनता को परेशान करना शांतिदूतों का काम है और अगर सोनिया गाँधी रोड पर आने की वकालत करें तो यह भी जायज ही है।
गौरतलब है कि भारत समेत पूरे विश्व में जहाँ कहीं भी विशेष संप्रदाय द्वारा हिंसा भड़काई जाती है तो उसके तुरंत बाद ही यह झूठ भी फैलाया जाता है कि यह संप्रदाय कितना शांतिप्रिय है और ये तो कभी कुछ गलत कर ही नहीं सकते हैं।
इस तरह का प्रोपेगेंडा फ़ैलाने वालों को पहचानना बहुत सरल है आप महज एक विशेष संप्रदाय की कोई खामी बता दीजिए, ये आग बबूला हो जायेंगे और तब तक शांत नहीं होंगे जबतक सामने वाले को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पाठ नहीं पढ़ा देते क्योंकि इनके हिसाब से अभिव्यक्ति की आजादी सीमित लोगों को ही मिली है।
उदाहरण के लिए दिल्ली दंगों पर दो किताबें लिखी जाती हैं। एक है ‘Delhi Riots 2020: The Untold Story’ जिसे पब्लिशिंग हाउस ब्लूम्सबरी छापने वाला था, मगर एन वक्त पर रद्द कर दिया और एक अन्य किताब शाहीन बाग़ को केंद्र में रखते हुए लिखी गई जिसे ब्लूम्सबरी ने बिना किसी रोक के प्रकाशित किया। जाहिर है, इस पुस्तक को पश्चिम से लेकर भारत तक के लिबरल गैंग द्वारा स्वीकृति मिली थी, क्योंकि अभिव्यक्ति की आजादी का ठेका पूरी दुनिया में इन्हें के पास है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)