अब जम्मू-कश्मीर-लद्दाख के अनुसूचित जातियों और जनजातियों को केन्द्रीय कानून के आधार पर आरक्षण का लाभ मिल सकेगा जिससे उन्हें काफी राहत मिलने वाली है और उनके सशक्तिकरण में यह मील का पत्थर साबित होने वाला है।
मियां अल्ताफ अहमद की गिनती जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेन्स के बड़े नेताओं में होती है। जब नेशनल कांफ्रेन्स की सरकार थी प्रदेश में तो वे मंत्री हुआ करते थे। लगभग दस साल पहले कश्मीर में उनसे मुलाकात हुई थी तो इन पंक्तियों के लेखक ने उनसे दलितों के आरक्षण पर बात की थी, वे इस प्रश्न को सुनने को तैयार नहीं हुए। बाद में यह कह दिया कि कश्मीर में इसकी आवश्यकता नहीं है। जबकि वही स्थानीय मुसलमानों को पिछड़े क्षेत्र के नाम पर आरक्षण दिया जा रहा था।
दूसरी तरफ कश्मीर में दलित और वंचित समाज दोयम दर्जे की जिन्दगी जी रहा था क्योंकि अनुच्छेद-370 की वजह से दलित समाज कश्मीर के अंदर अपने लिए बराबरी का दर्जा हासिल नहीं कर पा रहा था।
चौंकाने वाली बात है कि यह प्रश्न कभी दलित के नाम पर चल रहे संगठनों, चर्चो और उनकी फंडिंग एजेन्सियों, राजनीतिक संगठनों को बहस के काबिल नहीं लगा। कभी उन्होंने इस मुद्दे पर देश में एक कैंडल मार्च तक नहीं निकाला। किसी निष्पक्ष कांग्रेसी इको सिस्टम के पत्रकार ने इस पर संपादकीय नहीं लिखा।
कांग्रेस सरकार की विशेष कृपा जिस एनडीटीवी पर रही, उन्हें यह जरूरी मुद्दा नहीं लगा। सरल शब्दों में कहने का अर्थ यह है कि जम्मू—कश्मीर—लद्दाख में अल्पसंख्यक दलित और वंचित समाज के मुद्दे को छोड़ दिया गया था, अपने हाल पर।
बात इतनी ही नहीं थी, मुद्दा यह भी था कि देश अपनी आजादी के जब 73 साल पूरे कर चुका है, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उसके बावजूद 370 और 35ए जैसे कानूनों में जकड़े हुए थे। जिससे वहां की तरक्की रुकी हुई थी। भारत का अभिन्न हिस्सा होने के बावजूद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अलग—थलग पड़ गए थे। घाटी तो मानो पिछले 70 से अधिक सालों से आतंकवाद और दहशतगर्दी का प्रशिक्षण शिविर ही बन गया था।
देश के इस हिस्से को मोदी सरकार में पिछले 31 अक्टूबर को दूसरी आजादी मिली। वर्ना 35 ए की वजह से यहां निवेश पर रोक लगी हुई थी, जिसका बुरा प्रभाव राज्य में रोजगार के नए अवसरों पर पड़ रहा था। वहां के युवाओं को कई लाभ सरकार चाहकर भी देने में अक्षम साबित हो रही थी क्योंकि राज्य में 35 ए लगा हुआ था।
35ए हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर के युवाओं को हर वह लाभ मिल सकता है जो दूसरे राज्यों के छात्रों को मिल रहा है। अब राज्य में बाहर से निवेश भी आ सकता है और युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर भी तैयार हो सकते हैं। जब राज्य में निवेश बढ़ेगा, निश्चित तौर पर रोजगार भी बढ़ेगा। और जब रोजगार होगा तो खुशहाली भी होगी और समृद्धि भी।
पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थी जो बंटवारे के समय जम्मू—कश्मीर में आकर बस गए थे। उन्होंने सदा भारत को अपना घर माना। उन्होंने तकलीफ उठाना स्वीकार किया लेकिन पाकिस्तान में रहना नहीं। उन्होंने भारत की मिट्टी से अपने प्रेम की कीमत पर आजादी के बाद से इस देश में नारकीय जीवन जिया है। मोदी सरकार के आने बाद आजादी के बाद उपेक्षित पड़े इन देश प्रेमियों के मुद्दे को सुलझाया गया।
पश्चिमी पाकिस्तान से बंटवारे के समय आए भारत प्रेमियों को अब देश की नागरिकता ही नहीं मिल रही बल्कि उन्हें जम्मू—कश्मीर राज्य का स्थायी निवासी होने का प्रमाण पत्र भी दिया जाएगा। यह अधिकार शरणार्थियों के साथ-साथ राज्य में रहने वाले वाल्मीकि समाज के लोगों को, गोरखाओं, केन्द्र सरकार के कर्मचारियों, सशस्त्र सेना के अधिकारियों, विश्वविद्यालय, केन्द्रीय संस्थान और पीएसयू के कर्मचारियों को मतदान अधिकार के साथ-साथ प्रदान किया जाएगा।
तमाम कथित दलितवादी संगठन इस मौके पर भी चर्च में कैंडल जला रहे हैं। चूंकि उन्हें इशारा नहीं मिला, इसलिए उन्होंने बयान नहीं दिया। वे वास्तव में कांग्रेस प्रमुख, चर्च और एफसीआरए के पैसों पर बयान देने वालों की भूमिका में ही नजर आते हैं। यदि वे वास्तव में दलितों की आवाज होते तो जम्मू—कश्मीर-लद्दाख में दलितों के जीवन में जो परिवर्तन आया है, उसकी सराहना जरूर करते।
यह आप भी मानेंगे कि केन्द्र सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति का परिणाम था कि जम्मू—कश्मीर को 35 ए जैसे काले कानून से मुक्त किया जा सका। अब वहां कश्मीर का नहीं, भारत का संविधान लागू है। भाषा, जाति, लिंग के आधार पर वहां अब कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।
35 ए की विदाई के बाद अब अनुसूचित जातियो—जनजातियों और अल्पसंख्यकों को किस प्रकार का लाभ मिल सकेगा। आइए जानते हैं:-
- अबसे अनुसूचित जातियों और जनजातियों को केन्द्रीय कानून के आधार पर आरक्षण का लाभ मिल सकेगा जिससे उन्हें काफी राहत मिलने वाली है और उनके सशक्तिकरण में यह मील का पत्थर साबित होने वाला है।
- अत्याचार निवारण (Prevention of Atrocities) या अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम अब लागू होगा। मोदी सरकार द्वारा लाए गए संशोधन के साथ। यह परिवर्तन वंचित वर्ग के जीवन में बड़ा सुधार लाने वाला साबित होगा।
- अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के लोग अब वन अधिकार कानून का भी लाभ जम्मू-कश्मीर-लद्दाख क्षेत्र में ले सकेंगे। जंगल में रहने वाली ऐसी अनुसूचित जनजातियों और अन्य परम्परागत निवासियों को जो ऐसे वनों में पीढि़यों से निवास कर रहे है, उन्हें यह कानून जंगल में रहने अधिकार देता है।
- पहाड़ी समुदाय को पहली बार जम्मू-कश्मीर-लद्दाख में नौकरी के अंदर आरक्षण प्राप्त होगा।
- पहली बार अंतरराष्ट्रीय सीमा पर रहने वालों को आरक्षण मिलने जा रहा है, जैसा पहले लाइन आफ कंट्रोल के आसपास रहने वालों को मिला करता था।
- अल्पसंख्यकों के लिए राष्ट्रीय आयोग कानून, अब राज्य में लागू होगा। लंबे समय से चली आ रही मांग अब पूरी होगी। जिसके लिए समय-समय पर अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा ज्ञापन और अभ्यावेदन प्रस्तुत किए जा रहे थे। गौरतलब है कि सामाजिक कार्यकर्ता अंकुर शर्मा के पीआईएल से यह स्पष्ट हो गया था कि कश्मीर मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं हैं। संख्या के आधार पर वह जम्मू-कश्मीर के अंदर एक बहुसंख्यक आबादी है।
- आरक्षण कानून और नियमों में संशोधन करके, पहाड़ी और अंतराष्ट्रीय सीमावर्ती क्षेत्रों के निवासियों और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को भी उसमें शामिल कर लियया गया है और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आय सीमा 5 लाख से 8 लाख कर दी गई है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)