फरीदाबाद के बल्लभगढ़ की छात्रा निकिता की कॉलेज के बाहर ही गोली मारकर हत्या कर दी गई लेकिन दुर्भाग्य से इस मामले में न तो राहुल-प्रियंका राजनीतिक पर्यटन पर ही निकले और न ही असहिष्णुता गैंग की ही आवाज सुनाई दी क्योंकि यहाँ आरोपी मुसलमान है।
लोकतान्त्रिक समाज में सभी को अपनी बात रखने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है लेकिन जब इस अधिकार का प्रयोग जाति-धर्म-सरकार को देखकर किया जाने लगे तो यह उस अभिव्यक्ति के अधिकार की व्यापकता को सीमित करता है। पिछले कुछ दिनों इस तरह के कई उदाहरण सामने आए। ऐसा ही एक उदाहरण हाल ही में फरीदाबाद में हुई हत्या के मामले में भी देखा जा सकता है।
पिछले दिनों हाथरस में जब एक बच्ची के बलात्कार का मामला सामने आया था तो हमने देखा कि तथाकथित लिबरल गैंग न्याय के लिए पूरा तामझाम लेकर जुट गया था। लेकिन उसी हाथरस की घटना के दौरान जब राजस्थान में एक बलात्कार का मामला आया तो उस पर इस लिबरल गैंग के लोगों के कानों में जूं तक नहीं रेंगी। यहाँ तक कि मुद्दाहीन कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी इस हाथरस मामले में पीड़ित से संवेदना जताने के बहाने राजनीतिक पर्यटन पर निकल पड़े।
इसका एक मात्र कारण है कि वे किसी भी अपराध में न्याय की गुहार लगाने से पहले अपने राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि और पीड़ित एवं अभियुक्त के जाति-धर्म और सत्तारूढ़ दल को देखते हैं। यदि वह मामला उनके राजनीतिक स्वार्थ को सिद्ध करता है और उनके तुष्टिकरण के सांचे में फिट बैठता है तभी वे अपना विरोध जाहिर करते हैं अन्यथा नहीं करते।
अब फरीदाबाद का मामला हमारे सामने है। फरीदाबाद के बल्लभगढ़ की छात्रा निकिता की कॉलेज के बाहर ही गोली मारकर हत्या कर दी गई लेकिन दुर्भाग्य से इस मामले में न तो राहुल-प्रियंका राजनीतिक पर्यटन पर ही निकले और न ही असहिष्णुता गैंग की ही आवाज सुनाई दी क्योंकि यहाँ आरोपी मुसलमान है।
इसलिए यह मामला उनका राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध नहीं करता है और उनके लिबरल सांचे में फिट नहीं बैठता है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 22 वर्षीय तौसीफ और 21 वर्षीय रेहान ने उस छात्रा को कॉलेज के बाहर गन पॉइंट पर कार में जबरदस्ती बैठाने का प्रयास किया और जब उस बच्ची ने विरोध किया तो उन्होंने उसे गोली मार दी।
कारण कि तौसीफ उस छात्रा से प्रेम करता था और छात्रा का धर्म परिवर्तन करा के उससे निकाह करना चाहता था लेकिन छात्रा ने ऐसा करने से मना कर दिया था। इसलिए उसकी हत्या कर दी गयी।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार तौसीफ एक रसूखदार परिवार से संबंध रखता है और कांग्रेस के विधायक आफताब अहमद से उसके घरेलू संबंध हैं। तौसीफ और आफ़ताब अहमद रिश्ते में आपस में चचेरे भाई लगते हैं। लेकिन आश्चर्य है कि कांग्रेस ने इस मामले पर खामोशी ओढ़ी हुई है।
हाथरस में पाबन्दी के बावजूद राजनीतिक पर्यटन पर निकल पड़ने वाले राहुल-प्रियंका दिल्ली से महज 30-40 किमी दूर फरीदाबाद स्थित पीड़ित परिवार के घर जाने की जहमत नहीं उठा सके हैं। राहुल-प्रियंका तो छोड़िये, कांग्रेस का कोई अन्य नेता भी नहीं गया है।
इस पूरे प्रकरण में गांधी परिवार की चुप्पी का कारण समझने के लिए तौसीफ़ की पृष्ठभूमि को समझना बहुत आवश्यक है। पहली बात तो यह की तौसीफ़ मुसलमान है। इससे भी बड़ी बात यह है कि तौसीफ़ कांग्रेस के एक बड़े नेता चौधरी कबीर अहमद का पोता है, जो कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं। इसके अतिरिक्त तौसीफ के चाचा चौधरी खुर्शीद अहमद भी हरियाणा कांग्रेस के बड़े नेता रह चुके हैं।
इसके साथ ही तौसीफ़ का चचेरा भाई चौधरी आफताब अहमद भी वर्तमान में हरियाणा में कांग्रेस पार्टी से विधायक है। वे पूर्व में कांग्रेस की सरकार में परिवहन मंत्री भी रह चुके हैं और हरियाणा कांग्रेस उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। सो इस मामले में कांग्रेस की चुप्पी समझना कोई राकेट साइंस नहीं है।
लेकिन हद तो तब हो गई जब उसी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता ये कहते हैं कि हरियाणा में कानून व्यवस्था की स्थिति दयनीय है। उनको यह याद दिलाना चाहिए कि स्वयं अभियुक्त को उन्हीं की पार्टी के नेताओं से संरक्षण मिल रहा था।
समग्रतः फरीदाबाद में हुई निकिता की हत्या पर न असहिष्णुता गैंग को न्याय चाहिए न ही विपक्षी दल को। यह पहली बार नहीं है जब विपक्षी दल इस तरह की दोहरी मानसिकता वाली राजनीति कर रहे हैं, महाराष्ट्र में साधुओं की हत्या भी उनके समीकरण से बाहर थी सो उसपर भी वे खामोश ही रहे।
अनेक बलात्कार की घटनाओं सहित इस तरह के अन्य कई उदहारण हैं। कांग्रेस ऐसे हर मामले में हमेशा से ही तुष्टिकरण की राजनीति करती रही है और आज भी वे वोट बैंक के लिए इसी तुष्टिकरण की नीति का प्रयोग करने का प्रयास कर रहे हैं।
लेकिन कांग्रेस को इस बात को समझ लेना चाहिए कि अब तुष्टिकरण की राजनीति इस देश में नहीं चलने वाली है। लोकतंत्र में सर्वोपरि जनता कांग्रेस पार्टी के इस दोहरे चरित्र और इसके पीछे की गंदी राजनीति को समझ गई है और यही कारण है कि वो राजनीतिक रूप से लगातार गर्त में जा रही है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)