तय कीजिये आतंक का मज़हब, वर्ना ये आपका मजहब तय कर देगा

आज जब पूरी दुनिया में आतंकवाद की परिभाषा देने की बात हो रही है, ऐसे में हमें सजग होना पड़ेगा और दुनिया को खुलकर बताना पड़ेगा कि आतंकवाद भी एक मजहबी जंग की परिणति है। क्योंकि, आज पूरा विश्व आतंकवाद की विभीषका को झेल रहा है, दुनिया का कोई भी देश इससे अछूता नहीं है। किसी ना किसी रूप में आतंकवाद लोगों को ग्रस रहा है। और इसके पीछे लगभग एक ही मजहब को मानने वाले हैं। फिर भी दुनिया में आज तक इसके महजब  की घोषणा नहीं हो पायी। हर आतंकवादी घटना  के बाद शोक व्यक्त करने की रस्मअदायगी के बाद यही जुमला बोला जाता है कि आतंक का कोई मजहब  नहीं होता। जबकि दुनिया के जितने भी पीड़ित देश हैं और जहां-जहां हमले होते हैं, वहां एक ही मज़हब  के लोग खास तौर पर संलिप्त रहते हैं।

हर आतंकवादी घटना  के बाद शोक व्यक्त करने की रस्मअदायगी के बाद यही जुमला बोला जाता है कि आतंक का कोई मज़हब नहीं होता। जबकि दुनिया के जितने भी आतंक से पीड़ित देश हैं और जहां-जहां हमले होते हैं, वहां वारदात में एक ही मज़हब  के लोग खास तौर पर संलिप्त रहते हैं। सीरिया और इराक को अपनी मूल भूमि बनाकर पूरी दुनिया पर आतंक और बन्दूक के बल पर खलीफा का राज्य स्थापित करने का स्वप्न देखने वाले बगदादी का मज़हब  क्या है?  वर्षों तक आतंक का पर्याय बने रहे ओसामा का क्या मज़हब  था? तालिबानियों का मज़हब क्या है?  इन सभी सवालों का जवाब सिर्फ एक है। फिर भी हम इस पर खुलकर बोलने से कतरा क्यों रहे हैं?

सीरिया और इराक को अपनी मूल भूमि बनाकर पूरी दुनिया पर आतंक और बंदुक के बल पर खलीफा का राज्य स्थापित करने का स्वप्न देखने वाले बगदादी का मज़हब क्या है?  वर्षों तक आतंक का पर्याय बने रहे ओसामा का क्या मज़हब  था ? तालिबानियों का मज़हब क्या है ?  इन सभी सवालों का जवाब सिर्फ एक है। फिर भी हम इस पर खुलकर बोलने से कतरा क्यों रहे हैं। आखिर उसी मज़हब  के नाम पर तो शार्लि हब्दों के कार्टूनिस्ट समेत कई कर्मचारियों को मौत के घाट उतार दिया गया। तब भी हमें उसके मज़हब का पता नहीं चला ?

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साभार : गूगल

ढाका में हुए आतंकवादी हमलों में उन सभी लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया, जिनको कुरान की आयतें याद नहीं थी। ऐसा ही कुछ विगत दिनों बांग्लादेश की राजधानी ढाका के रेस्तरां में भी हुआ। भारत में भी आए दिन हमले होते रहते हैं। कश्मीर में लाखों हिन्दू इसी आतंक के डर से वर्षों पहले घाटी  छोड़ने पर मजबूर हो गए थे, उस समय भी पंडितों के खिलाफ मस्जिदों से तकरीरें हो रही थी। यह समस्या जब सीमा पार कर जाती है, तो इसका रूप और विकराल हो जाता है। और यह अपने पोषण कर्ता को ही निगलने पर आमदा हो जाते हैं। जिन सीरियायी शरणार्थियों को जर्मनी ने मानवता के नाम पर शरण दिया, आज वही लोग उसके लिए नासूर बने हुए हैं। आए दिन आतंकी हमला और बेटी-बहनों के साथ दुराचार से जर्मनी और फ्रांस दोनो आहत हैं। 31 दिसंबर 2015 की रात को जब जर्मनी के म्यूनिख शहर में में लोग नए साल के स्वागत तैयारी में जश्न मना रहे थे तब सीरिया के शरणार्थियों ने जिहादी नारे लगाते हुए लोगों पर हमले कर दिए। फिर फरमान यह आया कि इस्लाम में यह सब जायज नहीं है। वहीं एक चर्च के सामने जश्न मना रहे लोगों पर हमला बोला गया। कई महिलाओं के साथ दुराचार भी किया गया (पांचजन्य 7 अगस्त)। जिस मज़हब के लोग अपने सबसे बुरे दौर में भी अपनी मज़हबी कट्टरता को नहीं छोड़ रहे हैं और दूसरे धर्मों के लिए जानलेवा समस्या पैदा कर रहे हैं, वे लोग जहां बहुसंख्यक होंगे, वहाँ पर उनका व्यवहार कैसा रहता होगा इसका भी सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।  

अब दुनिया के हर उस इंसान को जो खुद से  यह कहकर धोखा कर रहा है कि आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं होता है, सावधान हो जाना चाहिए। और आतंक के आकाओं से आंखे मिलाकर उसके मजहब की घोषणा करनी होगी। यह इसलिए कि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को एक भयमुक्त और सुरक्षित समाज और दुनिया प्रदान करें। वर्ना एक दिन ऐसा भी आएगा कि यह आतंकवाद हमारा अस्तित्व ना मिटा दे। आज अगर आतंक का मजहब तय नहीं किया गया, तो कल ये दुनिया का मज़हब तय करने लगेगा।

(ये लेखक के निजी विचार हैं. नेशनलिस्ट डॉट कॉम का इससे सहमत होना अनिवार्य नहीं है)