सरकारी पूँजीगत व्यय में वृद्धि से विकास को मिलेगी गति

“निजी अंतिम उपभोग व्यय”और “सरकारी अंतिम उपभोग व्यय” में वृद्धि होने पर जीडीपी में भी वृद्धि होती है और जीडीपी में वृद्धि होने से अर्थव्यवस्था में अमूमन बेहतरी आती है, क्योंकि अर्थव्यवस्था के हर घटक का एक-दूसरे के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संबंध होता है। अतः इन उपभोग व्ययों में वृद्धि के लिए सरकार पूँजीगत व्यय को बढ़ाने की कोशिश कर रही है, ताकि जीडीपी में वृद्धि सुनिश्चित की जा सके।

पिछले दिनों वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा केंद्र सरकार के सभी विभागों और सावर्जनिक क्षेत्र की गैर-बैंकिंग कंपनियों के प्रमुखों से अगली चार तिमाहियों में अपनी पूंजीगत व्यय की जरूरतों का पूरा खाका तैयार करने को कहा गया। वित्त मंत्री ने सभी विभागों और सावर्जनिक क्षेत्र की गैर-बैंकिंग कंपनियों के प्रमुखों से अगली चार तिमाहियों के लिए पूंजीगत व्यय की उनकी योजना के बारे में जानकारी देने को कहा है, ताकि पता चले कि पूंजीगत व्यय कितना और किन क्षेत्रों में हो रहा है और किस क्षेत्र में कितनी पूँजीगत व्यय बढ़ाने की जरूरत है।

बकाया की भुगतान मंजूरी

पूँजीगत व्यय बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ते हुए मंत्रालयों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और सरकार की एजेंसियों ने आपूर्तिकर्ताओं और ठेकेदारों के 60,000 करोड़ रुपये के लंबित भुगतान में से करीब 40,000 करोड़ रुपये के भुगतान की मंजूरी दी है। शेष बची हुई रकम जो 20,000 करोड़ रूपये है, के भुगतान की मंजूरी भी आगामी कुछ दिनों में दे दी जायेगी।

पूंजीगत व्यय का लक्ष्य और मौजूदा स्थिति 

व्यय सचिव श्री मुर्मू ने कहा कि बुनियादी ढांचा क्षेत्र से जुड़े मंत्रालयों ने चालू वित्त वर्ष के लिए अपने पूंजीगत व्यय लक्ष्य को 50 प्रतिशत हासिल कर लिया है। श्री मुर्मू के अनुसार   सरकार बजट के लक्ष्य को हासिल कर लेगी। वित्त वर्ष 2019-20 के बजट में 3.39 लाख करोड़ रुपये पूंजीगत व्यय और 2.07 लाख करोड़ रुपये पूंजीगत संपत्तियों के निर्माण अनुदान में व्यय करने का अनुमान लगाया गया है।

व्यय सचिव के मुताबिक कुल 5.45 लाख करोड़ रुपये में से 2.18 लाख करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के मुताबिक सरकार चालू वित्त वर्ष के अंत तक राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल कर लेगी। पूंजीगत व्यय को बढ़ाने के लिये वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के बकाये के 90 प्रतिशत का भुगतान भी सरकार कर चुकी है। 

निजी अंतिम उपभोग व्यय में ठहराव

जून, 2019 में कंज्यूमर कॉन्फिडेंस सर्वे (सीसीएस) अहमदाबाद, बेंगलुरु, भोपाल, चेन्नई, दिल्ली, गुवाहाटी, हैदराबाद, जयपुर, कोलकाता, लखनऊ, मुंबई, पटना, तिरुवनंतपुरम आदि शहरों में कराई गई थी, जिससे पता चला कि “निजी अंतिम उपभोग व्यय” में ठहराव आ गया है।

पूंजीगत व्यय में वृद्धि से विकास को मिलेगा बल

सरकार पूंजीगत व्यय में वृद्धि पर इसलिये ज़ोर दे रही है, क्योंकि इसकी मदद से विविध उत्पादों की मांग में बढ़ोतरी हो सकती है। किसी वस्तु की मांग में जब इजाफा होगा तो उस वस्तु का मांग के अनुरूप उत्पादन किया जायेगा, जिससे आर्थिक गतिविधियों में तेजी आयेगी।

क्या है सरकारी अंतिम उपभोग व्यय

सरकारी कार्यों या सरकार द्वारा किये जाने वाले अंतिम उपभोग व्यय, मसलन, कर्मचारियों को दिया जाने वाला मुआवजा, सरकारी कार्यों से जुड़े टिकाऊ व गैर-टिकाऊ वस्तुओं एवं सेवाओं आदि को “सरकारी अंतिम उपभोग व्यय” कहा जाता है। वित्त वर्ष 2018-19 में “निजी अंतिम उपभोग व्यय” में वृद्धि वर्ष दर वर्ष के आधार पर 8.1% की दर से हुई, जो वित्त वर्ष 2017-18 में 7.4% की दर से हुई थी। 

वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान “सरकारी अंतिम उपभोग व्‍यय” में वर्ष दर वर्ष आधार पर 5.8% की दर से वृद्धि हुई, जो वित्त वर्ष 2017-18 में बढ़कर लगभग तिगुनी हो गई। हालाँकि, वित्त वर्ष 2018-19 में “सरकारी अंतिम उपभोग व्‍यय” में कमी आई और यह 9.2% के स्तर पर पहुँच गई लेकिन इसमें वृद्धि की उम्मीद बनी हुई है।   

निजी अंतिम उपभोग व्यय और सरकारी अंतिम उपभोग व्यय का जीडीपी के साथ संबंध

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर को बढ़ाने में “निजी अंतिम उपभोग व्यय” और “सरकारी अंतिम उपभोग व्यय” का सीधे तौर पर योगदान होता है। “निजी अंतिम उपभोग व्यय” व “सरकारी अंतिम उपभोग व्यय” एवं जीडीपी की गणना तिमाही आधार पर तथा वर्तमान व स्थिर मूल्यों पर की जाती है। “निजी अंतिम उपभोग व्यय” की गणना में भोजन, पेय पदार्थ, कपड़ा, फुटवेयर, आवास, पानी, बिजली, गैस,अन्य ईंधन, साज-सज्जा के सामान, घरेलू उपस्कर,रख-रखाव के सामान, स्वास्थ्य, परिवहन, संचार, शिक्षा आदि से जुड़े उत्पादों पर किये जाने वाले खर्च को शामिल किया जाता है, जो जीडीपी गणना के भी आधार होते हैं। 

वित्त वर्ष 2011-12 और वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान कुल जीडीपी में “निजी अंतिम उपभोग व्यय” का औसत हिस्सा 57.5% रहा और इस अवधि में इसकी वृद्धि दर औसतन 6.8% रही। “निजी अंतिम उपभोग व्यय” हमेशा से जीडीपी वृद्धि का महत्वपूर्ण कारक रहा है। सिर्फ वित्त वर्ष 2016-17 में “निजी अंतिम उपभोग व्यय” का जीडीपी वृद्धि में दो तिहाई का योगदान रहा। इस दौरान “सरकारी अंतिम उपभोग व्यय” का जीडीपी में योगदान 29% रहा, जिसका कारण सातवें वेतन आयोग की सिफ़ारिशों के बाद सरकारी कर्मचारियों को अधिक वेतन का भुगतान करना था। 

आंकड़ों से साफ हो जाता है कि “निजी अंतिम उपभोग व्यय” और “सरकारी अंतिम उपभोग व्यय” के योगदान के बिना जीडीपी में बढ़ोतरी नहीं हो सकती है। चूँकि, जीडीपी में वृद्धि विकास दर में बढ़ोतरी का सूचक है। इसलिये, इनकी महत्ता स्वयंसिद्ध है।   

निष्कर्ष 

“निजी अंतिम उपभोग व्यय”और “सरकारी अंतिम उपभोग व्यय” में वृद्धि होने पर जीडीपी में भी वृद्धि होती है और जीडीपी में वृद्धि होने से अर्थव्यवस्था में अमूमन बेहतरी आती है, क्योंकि अर्थव्यवस्था के हर घटक का एक-दूसरे के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संबंध होता है। इन उपभोग व्ययों में वृद्धि के लिए सरकार पूँजीगत व्यय को बढ़ाने की कोशिश कर रही है, ताकि जीडीपी में वृद्धि सुनिश्चित की जा सके।

(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र मुंबई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में कार्यरत हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)