सर्वे के अनुसार नकदी का प्रयोग एक साल पहले 33 प्रतिशत था जो कि अब 31 पर आ गया है। संभावना है कि एक साल बाद यह घटकर 25 प्रतिशत तक पहुंच जाए। गत सितंबर के दौरान डेबिट और क्रेडिट कार्डों के माध्यम से भुगतान 84 फीसद उछलकर 74,090 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। जबकि तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो गत सितंबर, 2016 में यही आंकड़ा 40,130 करोड़ रुपये था।
इसमें कोई शक नहीं है कि अब भारत क्रमिक रूप से और तेजी से डिजिटल होता जा रहा है। इस डिजिटल क्रांति का सबसे प्रभावी और सकारात्मक असर अर्थव्यस्था पर ही पड़ा है। पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित की गई नोटबंदी के बाद से ही देश में ऑनलाइन ट्रांजेक्शन का ग्राफ बढ़ गया था। हालांकि विपक्षी दलों ने इसे विवशता करार दिया और कहा कि यह सरकार की विफलता है, लेकिन ग्लोबल पेमेंट सॉल्यूशन कंपनी वीजा द्वारा जारी ताजा आंकड़े सिरे से इस बात को झुठलाते हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि देश तेजी से डिजिटल अर्थव्यवस्था को अपनी आदत में ढाल चुका है। भारतीय लोग केशलैस भुगतान में खासी दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
कंपनी वीजा ने यूजीओवी के साथ एक सर्वे किया था, जिसमें यह खुलकर सामने आया कि देश के 78 लोग ऑनलाइन ट्रांजेक्शन करते हैं। इस सर्वे में यह पाया गया कि अब लोग ना केवल डिजिटल पेमेंट का उपयोग कर रहे हैं, बल्कि इसके एक से अधिक प्रकारों, माध्यमों को लगातार जानने में दिशा में भी प्रवृत्त हैं। रिपोर्ट में इस खास बात पर जोर दिया गया है कि चूंकि डिजिटल पेमेंट की प्रक्रिया आसान होती है, इसलिए लोगों को इसका इस्तेमाल करने में असुविधा नहीं होती। सर्वे में 86 प्रतिशत लोगों ने इसी बात को स्वीकारा है।
आज का दौर वैसे भी युवाओं का दौर है। तकरीबन हर क्षेत्र में युवाओं का बोलबाला है। ऐसे में युवा वर्ग खुलकर पैसा कमा रहा है और खुलकर खर्च भी कर रहा है। युवा वर्ग तकनीकी प्रधान और तकनीक का जानकार है। उन्हें डिजिटल ट्रांजेक्शन बहुत आसान प्रतीत होता है, इसलिए वे इसे ही तरजीह देते हैं। सर्वे में यह जानना चाहा गया कि भारत के ग्राहक डिजिटल इकोनॉमी को किस प्रकार देखते हैं।
41 प्रतिशत लोग ऐसे थे, जिन्होंने कहा कि अभी भी दुकानदार अपना भुगतान कैश में ही चाहते हैं। 39 प्रतिशत ने इस पर आशंका व्यक्त की जबकि 81 प्रतिशत का बड़ा वर्ग ऐसा था जिसने सुरक्षा को प्राथमिकता पर रखा। रोचक बात यह निकलकर सामने आई कि तीस से चालीस वर्ष की आयु के ग्राहक सर्वाधिक रूप से केशलैस ट्रांजेक्शन का उपयोग कर रहे हैं।
सप्ताहांत पर परिवार, दोस्तों, रिश्तेदारों के साथ रेस्तरां में खाना खाने वाले अधिकांश लोग अपना बिल डिजिटली ही चुकाते हैं। यही कारण है कि बड़े-बड़े होटल व रेस्तरां भी पेमेंट ऑप्शन में पेटीएम, मोबीक्विक जैसे यूजर फ्रेंडली ऐप का क्यूआर कोड सामने रखते हैं। वे बिल काउंटर पर पीओएस मशीन भी रखते हैं और एटीएम से कार्ड स्वाइप करके भुगतान प्राप्त करते हैं। यह सब एक बहुत आम परिदृश्य हो चला है। लेकिन नोटबंदी के पहले यह सब इतना सहज और व्यापक नहीं था। निश्चित ही नोटबंदी के बाद से देश में डिजिटली अर्थव्यस्था ने पैर पसारे हैं।
ग्रासरी स्टोर, डिर्पाटमेंटल स्टोर पर कपड़े, किराना आदि खरीदकर लोग अब कार्ड से ही भुगतान कर रहे हैं, क्योंकि अधिक कैश साथ में लेकर चलना अब पुराने दौर की बात हो गई है। सर्वे के अनुसार नकदी का प्रयोग एक साल पहले 33 प्रतिशत था जो कि अब 31 पर आ गया है। संभावना है कि एक साल बाद यह घटकर 25 प्रतिशत तक पहुंच जाए। गत सितंबर के दौरान डेबिट और क्रेडिट कार्डों के माध्यम से भुगतान 84 फीसद उछलकर 74,090 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। जबकि तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो गत सितंबर, 2016 में यही आंकड़ा 40,130 करोड़ रुपये था।
इसके अलावा एक और अध्ययन में यही बात सामने आई है। यह अध्ययन यूरोपी पेमेंट सॉल्यूशन प्रोवाइडर कंपनी वर्ल्डलाइन का है, जिसके अनुसार गैर नकदी कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। वर्ल्डलाइन ने रिजर्व बैंक के आंकड़ों के हवाले से यह बात कही है कि गत सितंबर माह तक डिजिटल लेनदेन का यह प्रतिशत तुलनात्मक रूप से बहुत तेजी से बदला है। सिंतबर 2016 में यह 20 करोड़ पर था, लेकिन सितंबर 2017 में इसमें 85 फीसदी का तेज उछाल आया और अब यह बढ़कर 37 करोड़ पर पहुंच गया है। वर्ल्डलाइन के साउथ एशिया और सेंट्रल ईस्ट के सीईओ दीपक चंदनानी ने कहा कि जब से नोटबंदी हुई है, बहुधा लोग अपने दैनिक खर्च का भुगतान डिजिटली ही कर रहे हैं।
ऐसे में बैंकों, एटीएम में कैश पर्याप्त मात्रा में तो रखा है, लेकिन पहले की तुलना में अब उसके उपयोग में कमी आ गई है। अगस्त, 2014 में प्रधानमंत्री जन धन योजना शुरू हुई थी, जिसके तहत करोड़ों भारतीयों के खाते खोले गए। उसके बाद कार्ड से भुगतान को महत्व दिया जा रहा है। इस साल सितंबर महीने तक देश में कुल 85 करोड़ कार्ड थे, जिनमें 3 करोड़ क्रेडिट व 81 करोड़ डेबिट कार्ड थे। अध्ययन के अनुसार अब कार्डों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। वर्ष 2016 व 2017 में क्रेडिट कार्ड की वृद्धि की दर 24 प्रतिशत रही, जबकि वर्ष 2011 से 2016 के बीच यह केवल 9 प्रतिशत ही थी।
कुल मिलाकर यह निष्कर्ष निकल रहा है कि डिजिटल पेमेंट को अपनाने में भारतीय अब खुलकर सामने आ रहे तेजी से ऑनलाइन पेमेंट का बाजार पनप रहा है और स्वाइप मशीनों का चलन बढ़ गया है। वैश्विक सर्वे कंपनियों ने भी इस बात पर मुहर लगा दी है और साबित कर दिया है कि यह नोटबंदी की आशातीत सफलता ही है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)